गुवाहाटी। असम विधानसभा ने बोडो को राज्य की एक सहायक आधिकारिक भाषा बनाने पर बुधवार को सहमति दे दी।
असम आधिकारिक भाषा (संशोधन) विधेयक, 2020 को विधानसभा के तीन दिवसीय शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन सर्वसम्मति से पारित किया गया, जिसके बाद बोडो असम के सभी हिस्सों में सहायक भाषा बन गई। इससे पहले, यह बोडो बहुमत वाले क्षेत्रों की एक आधिकारिक भाषा थी।
राज्य भर में बंगाली भाषा की समान स्थिति के लिए विधेयक में संशोधन को आगे बढ़ाते हुए विपक्षी कांग्रेस विधायक कमलाख्या देव पुरकायस्थ ने कहा कि 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार असम में 90 लाख से अधिक बंगाली भाषी लोग हैं और बोडो भाषी आबादी की संख्या14 लाख से थोड़ा अधिक है।
उन्होंने कहा कि हमें बोडो को सहयोगी आधिकारिक भाषा का दर्जा दिए जाने से कोई समस्या नहीं है लेकिन हम बंगाली भाषा के लिए भी यही दर्जा मांगते हैं। हमें लगता है कि बंगाली भाषा की उपेक्षा की जा रही है और उसके साथ भेदभाव किया जा रहा है।
पुरकायस्थ को जवाब देते हुए संसदीय कार्य मंत्री चंद्र मोहन पटवारी ने कहा कि इसी वर्ष हुए बोडो शांति समझौते के खंड 6.2 को ध्यान में रखते हुए यह संशोधन लाया गया है, जिसमें बोडो को राज्य भर की आधिकारिक भाषा बनाने का उल्लेख है।
यह बताते हुए कि राज्य में बराक घाटी के तीन जिलों में बंगाली आधिकारिक भाषा है, पटवारी ने कहा कि एक अध्ययन के अनुसार दुनिया भर में 22 करोड़ बंगाली भाषी हैं, जबकि 1.5 करोड़ से अधिक असमिया भाषी नहीं हैं। बंगाली एक विकसित भाषा है, रवींद्रनाथ टैगोर को बंगाली में नोबेल पुरस्कार मिला था।
नए विधेयक पर विपक्ष से सरकार के साथ होने का आग्रह करते हुए मंत्री ने कहा कि राज्य में 33 आदिवासी भाषाओं के लिए पर्याप्त नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि बोडो समझौते ने हमें राज्य की एकता को बनाए रखने में सक्षम बनाया है। अब, सभी खंडों को लागू करने की हमारी बारी है।
सरकार के रुख का बचाव करते हुए राज्य के शिक्षा, स्वास्थ्य एवं वित्त मंत्री डॉ. हिमंत विश्व शर्मा ने कहा कि आदिवासी मिट्टी के बेटे हैं। जब सरकार उन्हें कुछ विशेषाधिकार देने की कोशिश करती है, तो हमें इसका विरोध नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे उन्हें नकारात्मक संकेत मिलेगा। उन्होंने कहा कि बंगाली एक वैश्विक भाषा है और मुझे यकीन है कि बंगाली भाषी लोग इसे सहायक भाषा बनाने के लिए सहमत नहीं होंगे।