सबगुरु न्यूज। नौ ग्रहों में उनके बलाबल पर व्याख्या करते हुए वराह लिखते हैं की जन्मकुंडली में सूर्य की मजबूत स्थिति आत्मबल को बढ़ाती है, व्यक्ति के मान-सम्मान व प्रतिष्ठा में वृद्धि करती है। चंद्रमा के बली होने पर व्यक्ति निर्णय लेने की क्षमता में मजबूत यश व कीर्ति को प्राप्त होने वाला,योग्य तथा धन व कीर्ति को पाने वाला होता है।
मंगल के बली होने पर साहस, पराक्रम व उत्साह बढ़ता है तथा व्यक्ति साहसिक कार्य कर जोखिम उठाता है। बुध का बलि होना व्यक्ति को तकनीकी शिक्षा, ललित कला में निपुण बनाता है। बृहस्पति ग्रह के बलवान होने पर धर्मप्रेमी, बलवान व यशस्वी होता है। शुक्र का बलवान होना विलासिता प्रिय व कवित्व की क्षमता को बढ़ाता है शनि के बलवान होने पर व्यक्ति महत्वपूर्ण समाज सुधारक, यशस्वी, धनवान और यशस्वी बनता है।
कहीं यदि जन्म काल में यह ग्रह कमजोर होता है तो इसके विपरीत गुण जातक को मिलते हैं। यह ग्रह किस प्रकार के अपने प्रभावों को देते हैं इस विषय में वराह लिखते हैं कि इन शुभाशुभ फलों का निर्धारण दशाओं की युक्ति के समय होता है। दशा पद्धति की विस्तृत समीक्षा वराह ने वृहज्जातक में की है।
ग्रहों के कमजोर होने पर क्या पडता है प्रभाव
सूर्य-
अपयश, निर्धनता, ज्वर,दाद खुजली, हड्डी व जोड़ों के दर्द, हृदय रोग, शूल रोग, अग्निकांड, विस्फोटक आदि देता है।
चंद्रमा-
जलोदर रोग,नेत्र रोग, मानसिक कष्ट, उन्माद, अशांति।
मंगल-
दुर्घटना, खून की कमी ,निर्बलता, रक्त विकार, अभिचार, अग्निकांड, रक्तचाप, सूखा रोग, अण्डकोष का रोग।
बुध-
गला, नाक, आंत में रोग, पांडु रोग, सन्निहित, मूर्खता, भान्ति, निर्बलता।
गुरु-
विद्या, धन, धर्म, यश की कमी, लीवर में खराबी, बहार गूंगापन, कफ संबंधी रोग।
शनि-
पपक्षाघात, सन्निपात, वात रोग, मन्दाग्नि, धन हानि, मान हानि आदि को देता है।
राहू-
विष ,भय, खुजली, विषैला भोजन, कुष्ठ रोग, पैर में चोट।
केतु-
गुप्त रोग, यजुमय, कैंसर, अल्सर, दुर्घटना, प्रेत बाधा, अग्निकांड, अपमृत्यु।
इस प्रकार वराह ने ज्योतिष के फलित हेतु ग्रहों की प्रकृति,ग्रहों का शुभाशुभत्व, उनकी उच्चस्थ राशि, निम्न राशि, स्वराशि, मित्र श्रेणी, शत्रु श्रेणी आदि का फल उनकी दशाएं आने पर प्राप्त होते हैं।
प्रारंभिक काल से ही फलित ज्योतिष के विषय में विद्वानों में एक स्वरुप पता नहीं रही। अपने अनुभव, अपनी शोधों और अपने गुरुकुल प्रथाओं के अनुसार फलित ज्योतिष पर कार्य करते हुए उन्होंने अपने-अपने सिद्धांत इनस विषय पर प्रतिपादित किए।
ज्योतिष गणित पर जहां विधानों में एकरूपता थी फलित ज्योतिष पर एकरूपता नहीं होने के कारण, जिस विध्दान,संप्रदाय या स्कूल में जिस प्राचीन मत का अनुसरण किया उसे ही श्रेष्ठ मानते हुए वर्तमान तक कार्य कर रहे हैं।
वराह सिद्धांत, पाराशरी सिद्धांत, जैमिनी मत, गर्ग मत के अतिरिक्त की वसिष्ठ, लोमश संहिता ज्योतिष शास्त्र के आरंभ के 18 अठारह प्रवर्तकों की मान्यता भविष्य फल कथन कहे जा रहे हैं।
बदलते परिवेश में ज्योतिष के मूल फलित सिद्धांतों से समय-समय पर आधुनिक ज्योतिष सिद्धांत के विद्वानों द्वारा वृद्धि की जा रही है। आधुनिक विज्ञानों, खगोल शास्त्रों के वास्तविक अध्ययनों में तथा दिन-प्रतिदिन होने वाली शोधों में नए-नए ग्रहों आकाशीय पिंडों की खोज कर फलित के सिद्धांत में नियमित वृद्धि की जा रही है।
ज्योतिष शास्त्र के अतिरिक्त इससे जुड़ी भविष्य ज्ञान की जानकारी बताने वाले शास्त्रों ने भी फलित ज्योतिष पर हस्तक्षेप किया है। वर्तमान के परिवेश में अनिष्ट ग्रहों के दोषों को दूर करने, अशुभ दिशाओं के फल कम करने तथा प्राणी को हर तरह से सुख-समृद्धि रखने हेतु उपचारों का जखीरा जातकों के सामने रख दिया।
ज्योतिष ज्ञान पर ये शास्त्र वर्तमान परिपेक्ष में लगातार भारी होते दिखाई दे रहे है। यंत्र-मंत्र-तंत्र, टोना टोटका, दुर्लभ वस्तुओं से ग्रहों की दोष निवारण, फेंगशुई या अन्य भविष्य ज्ञान बताने वाली शास्त्रों के उपचार उपायों ने फलित ज्योतिष को गहरा आघात पहुंचाया।
वर्तमान में बड़े स्तर के ज्योतिष सम्मेलन भी, ज्योतिष पर निष्कर्ष निकाल कर किसी एक पर नहीं पहुंच पा रहे हैं। अधिकांशत: ज्योतिष सम्मेलन में विद्वानों के विचार सुनने और उन्हें सम्मानित करने की औपचारिकता वाले बनकर रह गए।
सौजन्य : भंवरलाल