आज हम बात करेंगे रांगेय राघव के जीवन परिचय के बारे में। इनका मूल नाम तिरूमल्लै नंबाकम वीर राघव आचार्य था, लेकिन उन्होंने अपना साहित्यिक नाम ‘रांगेय राघव’ रखा। इनका जन्म 17 जनवरी, 1923 को श्री रंगाचार्य के घर हुआ था। इनकी माता श्रीमती कनकवल्ली और पत्नी श्रीमती सुलोचना थीं। इनका परिवार मूलरूप से तिरुपति, आंध्र प्रदेश का निवासी था। जब देश स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत तब इन्होंने मातृभाषा हिंदी से ही देशवासियों के मन में देश के प्रति निष्ठा और स्वतंत्रता का संकल्प जगाया। उनकी सृजन-यात्रा सर्वप्रथम चित्रकला में प्रस्फुटित हुई और 1936-37 के आस-पास वह साहित्य की ओर उन्मुक हुई।
उन्होंने सबसे पहले कविता के क्षेत्र में कदम रखा। इसे संयोग ही कहा जाएगा कि उनकी रचनात्मक अभिव्यक्ति का अंत भी मृत्यु पूर्व लिखी गई उनकी एक कविता से ही हुआ लेकिन उन्हें प्रतिष्ठा मिली एक गद्य लेखक के रूप में। सन् 1946 में प्रकाशित ‘घरौंदा’ उपन्यास के जरिए वे प्रगतिशील कथाकार के रूप में चर्चित हुए। 1962 में वे कैंसर रोग से पीड़ित हो गए और 12 सितंबर को उन्होंने बंबई में देह त्यागी।
रचनाएँ-
उनके बहुआयामी रचना संसार में कहानी संग्रह: देवदासी, समुद्र के फेन, जीवन के दाने, इंसान पैदा हुआ, पांच गधे, साम्राज्य का वैभव, अधूरी मूरत, ऐयाश मुर्दे, एक छोड़ एक, धर्म संकट; उपन्यास: मुर्दों का टीला, हुजूर, रत्न की बात, राय और पर्बत, भारती का सपूत, विषाद मठ, सीधा-सादा रास्ता, लखिमा की आंखें, प्रतिदान, काका, अंधेरे के जुगनू, लोई का ताना, उबाल, कब तक पुकारूं, पराया, आंधी की नावें, धरती मेरा घर, अंधेरे की भूख, छोटी-सी बात, बोलते खंडहर, पक्षी और आकाश, बौने और घायल फूल, राह न रुकी, जब आवेगी काली घटा, पथ का पाप, कल्पना, प्रोफ़ेसर, दायरे, मेरी भाव बाधा हरो, पतझड़, धूनी का धुआं, यशोधरा जीत गई, आखिरी आवाज़, देवकी का बेटा खास हैं.
रांगेय राघव ने जो चर्चित नाटक लिखे, उनमें स्वर्ग का यात्री, घरौंदा, रामानुज और विरूदक; आलोचना: भारतीय पुनर्जागरण की भूमिका, संगम और संघर्ष, प्रगतिशील साहित्य के मानदंड, काव्यदर्श और प्रगति, भारतीय परंपरा और इतिहास, महाकाव्य विवेचन, समीक्षा और आदर्श, तुलसी का कला शिल्प, काव्य कला और शास्त्र, आधुनिक हिन्दी कविता में विषय और शैली, भारतीय संत परंपरा और समाज, आधुनिक हिन्दी कविताओं में प्रेम और श्रृंगार, गोरखनाथ और उनका युग.
कविता संग्रह –
पिघलते पत्थर, श्यामला, अजेय, खंडहर, मेधावी, राह के दीपक, पांचाली, रूपछाया,
हिन्दी कविताएँ-
डायन सरकार, फ़िर उठा तलवार, खुला रहने दो, अर्धचेतन अवस्था में कविता, नास्तिक, श्रमिक, अन्तिम कविता, पिया चली फगनौटी कैसी गंध उमंग भरी।
रांगेय राघव के रचनाकर्म को देखें तो उन्होंने अपने अध्ययन से, हमारे दौर के इतिहास से, मानवीय जीवन की, मनुष्य के दुःख, दर्द, पीड़ा और उस चेतना की, जिसके भरोसे वह संघर्ष करता है, अंधकार से जूझता है, उसे ही सत्य माना, और उसी को आधार बनाकर लिखा। वे अपनी रचनाओं के माघ्यम से समाज को बदलने का झूठा दम्भ नहीं पालते यद्यपि बदलाव के वे आकांक्षी जरूर रहे। ऐसे प्रगतिशील, यथार्थवादी रचनाकार को काल नें बहुत ही अल्पकाल यानी 39 वर्षों में ही हमसे 12 जनवरी 1962 को छीन लिया।