अयोध्या में मंदिर बनाने का रास्ता साफ, सुन्नी वक्फ बोर्ड को भी 5 एकड़ जमीन
अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है । कोर्ट ने इस फैसले में विवादित जमीन राम जन्मभूमि न्यास को देने का फैसला किया है यानी विवादित जमीन राम मंदिर के लिए दे दी गई है । जबकि मुस्लिम पक्ष को अलग स्थान पर जगह देने के लिए कहा गया है । यानी कोर्ट ने अयोध्या में ही मस्जिद बनाने के लिए अलग जगह जमीन देने का आदेश दिया है । राम मंदिर निर्माण के लिए कोर्ट ने केंद्र सरकार को तीन महीने के अंदर ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया है । चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने यह फैसला सर्वसम्मति से दिया है । अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसला सुनाने पर उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी ।
बहुत ही नपा-तुला रहा फैसला
देश की सर्वोच्च अदालत ने अयोध्या विवाद को लेकर जो फैसला सुनाया है वह बहुत ही नपा-तुला रहा । अयोध्या विवाद को लेकर आज देश ही नहीं पूरे विश्व की निगाहें सर्वोच्च अदालत के फैसले पर लगी हुई थी । सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि विवादित जमीन रामलला की है । कोर्ट ने इस मामले में निर्मोही अखाड़े का दावा खारिज कर दिया । कोर्ट ने कहा कि तीन पक्ष में जमीन बांटने का हाईकोर्ट फैसला तार्किक नहीं था ।
कोर्ट ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ की वैकल्पिक जमीन दी जाए । इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को भी वैकल्पिक जमीन देना जरूरी है । कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार तीन महीने में ट्र्स्ट बना कर फैसला करे । ट्रस्ट के मैनेजमेंट के नियम बनाए, मन्दिर निर्माण के नियम बनाए । विवादित जमीन के अंदर और बाहर का हिस्सा ट्रस्ट को दिया जाए । कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ की वैकल्पिक जमीन मिले । या तो केंद्र 1993 में अधिगृहित जमीन से दे या राज्य सरकार अयोध्या में ही कहीं दे ।
अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाने वाली पीठ में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस धनंजय वाई चन्द्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल रहे । सुप्रीम कोर्ट में 16 अक्टूबर 2019 को अयोध्या मामले पर सुनवाई पूरी हुई थी । 6 अगस्त से लगातार 40 दिनों तक इस पर सुनवाई हुई थी ।
आज सुप्रीम कोर्ट ने पांच मुख्य मुकदमों पर सुनाया अपना फैसला
अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना पांच अहम मुकदमों पर अपना फैसला सुनाया । वह इस प्रकार है । इस केस में पहला सूट गोपाल सिंह विशारद का है जो 1950 में दाखिल हुआ था । इसमें गोपाल सिंह विसारत जो उस वक्त स्थानीय हिन्दू महासभा के नेता थे । उन्होंने राम की पूजा का अधिकार मांगा था । ऐसे में सूट नंबर एक में मांग है कि उसी जगह पर राम विराजमान रहें और पूजा का अधिकार मिले ।
सूट नंबर दो परमहंस रामचंद्र दास ने 5 दिसंबर 1950 में किया था । परमहंस रामचंद्र दास ने मुकदमें में वही मांगें रखी थीं जो विशारद के मुक़दमे में थीं । हालांकि इस मुकदमें में केवल एक अंतर था कि इसमें सीपीसी के सेक्शन 80 के तहत नोटिस दिया गया था । बाद में इसे विशारद के मुक़दमे के साथ ही जोड़ दिया गया । सूट नंबर तीन है निर्मोही अखाड़ा है।
इसका मतलब यह हुआ कि सूट नंबर दो के वापस लेने के बाद कोर्ट में सूट नंबर एक के बाद तीन है । निर्मोही अखाड़ा का कहना है कि मंदिर बने लेकिन कंट्रोल हमारा रहे । सूट नंबर चार सुन्नी वक्फ बोर्ड और तमाम मुस्लिम पक्षों का है । इसमें कहा गया है कि विवादित जगह पर मस्जिद थी और वही रहनी चाहिए । अगर मंदिर को जगह दी भी गई तो उन्हें पूरी तरह से बाहर नहीं किया जा सकता है ।
सूट नंबर पांच काफी महत्वपूर्ण है । यह साल 1989 में दाखिल किया गया और इसने पूरे केस का परिदृश्य बदल दिया । यह सूट रामलला विराजमान के नाम से है । इसमें कहा गया है कि रामलला शिशु के रूप में विराजमान है और उनके अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता है । विवादित जगह पूरी तरह राम की है । इसी केस में यह भी दावा किया गया है कि श्रीराम जन्मस्थान भी एक व्यक्ति है और उसका भी बंटवारा नहीं कर सकते हैं ।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार