नैनीताल। सुप्रीमकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को झटका देते हुए गुरुवार को जारी अपने महत्वपूर्ण आदेश में चिकित्सकों में पद्धति के आधार पर भेद को गलत ठहराया है और सभी को समान वेतनमान का हकदार माना है।
इसी के साथ शीर्ष अदालत ने उत्तराखंड सरकार की विशेष अपील को भी खारिज कर दिया। इस प्रकरण की सुनवाई न्यायाधीश विनीत सरन और न्यायमूर्ति महेश्वरी की युगलपीठ में हुई। मामले के अनुसार राज्य सरकार की ओर से वर्ष 2012 में 25000 रुपए प्रतिमाह वेतन व पांच प्रतिशत वार्षिक वृद्धि के अनुबंध पर बतौर चिकित्साधिकारी के रूप में एलोपेथिक व आयुष चिकित्सकों की नियुक्ति की गई।
कुछ समय बाद ऐलोपेथिक चिकित्सकों का वेतन 5 प्रतिशत की दर से बढ़ाकर 50,000 कर दिया गया लेकिन आयुष चिकित्सकों को छोड़ दिया गया। आयुष चिकित्सक सरकार के इस भेदभाव के खिलाफ उच्च न्यायालय पहुंच गए और उच्च न्यायालय ने सरकार के भेदभाव को गैर संवैधानिक बताते हुए आयुष चिकित्सकों के हक में फैसला दिया और आयुष चिकित्सकों को भी समान वेतन का हकदार बताया माना।
राज्य सरकार उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय पहुंच गई और विशेष याचिका दायर कर कहा कि ऐलोपेथिक चिकित्सकों का कार्य अधिक महत्वपूर्ण व जिम्मेदारी युक्त है। दोनों अलग-अलग पद्धति से उपचार करते हैं।
आयुष चिकित्सकों के अधिवक्ता डा. कार्तिकेय हरिगुप्ता ने बताया कि पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार की दलील को खारिज कर दिया और कहा कि चिकित्सकों में पद्धति के आधार पर भेद नहीं किया जा सकता है। अदालत ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन मानते हुए राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया।