आबूरोड(सिरोही)। सिरोही जिले के आबूरोड में आदिवासी बहुल उपलागढ़ में आयोजित बाबा गेर नृत्य में डोलाराम की नृत्य कलाकारी, स्वांग रचको की अठखेलियाे पर खूब हंसी के ठहाके लगे।
वाद्य यंत्रों के साथ पारंपरिक वेशभूषा में नृत्य कर रही महिलाओं के सिर पर रखे ज्वारे आदिवासी संस्कृति की फिजा में जीवंतता घोल रहे थे।
उपलागढ़ स्थित बाबा का गेर नृत्य मेला रविवार को दो साल बाद भरा। कोविड काल में महामारी के कारण लगी बंदिशों का ग्रहण इस मेले को भी लगा।
इस बार फिर संस्कृति, आस्था, लोक कलाकारी, एवं वाद्य यंत्रों की ध्वनि के साथ आदिवासी संस्कृति के मूल रंग-रूप में मेला आयोजन हुआ।
मेले में प्रसिद्ध डोलाराम की कलाकारी और बाबा का घोड़ा आकर्षण का केंद्र रहे। दोपहर बाद स्वांग रचकों के अलग-अलग दलों के रूप में आने के साथ ही उपलागढ़ चौराहे के बाबा धाम स्थान पर बाबा गेर नृत्य का प्रदर्शन शुरू हुआ।
दूर पहाड़ियों तक जमा आदिवासी ग्रामीण डोलाराम के प्रदर्शन को एकटक निहार रहे थे। कलाकार का बदला पहनावा, श्रृंगार के जेवरात, हाथों में तलवार, सिर पर कलश, मुंह में निकलती हुई आग की ज्वाला, ढोल थाली का वाद्य यंत्रों की गूंज माहौल में मस्ती का रस घोल रही थी।
इसके अलावा बाबा घोड़ा नृत्य, ढोल वादन के साथ महिलाओं द्वारा ज्वारा नृत्य व स्वांग रचको के प्रदर्शन आगंतुक दर्शकों का खास आकर्षण बने रहे।
जमीन पर पैर रखने को नहीं जगह, पहाड़ियों पर चढ़े लोग
गौरतलब है कि धुलंडी के बाद प्रतिवर्ष होने वाला यह वार्षिक गैर बाबा मेला परंपरागत रूप से आयोजित होता है। विभिन्न बाबा प्रदर्शनों को लेकर यह मेला इतना लोकप्रिय हो गया है कि समीपवर्ती राज्य गुजरात के साबरकांठा बनासकांठा एवं सिरोही जिले के आदिवासी इलाकों के दर्शक बड़ी संख्या में पहुंचते हैं।
मौके की नजाकत बता रही है कि सांस्कृतिक प्रदर्शनों को देखने के लिए दर्शकों के पैर रखने की जगह नहीं मिल पाने से वे ऊंचाई पर जाकर भी कार्यक्रमों को देखते हैं।
पुलिस व्यवस्था के माकूल इंतजाम
व्यवस्था शांति एवं सुरक्षा के तौर पर पुलिस तैनात रही। प्रदर्शन के दौरान स्वयं सेवकों, मेला कमेटी, स्थानीय जनप्रतिनिधि सरपंच भवना राम एवं कानाराम आदि दर्शकों की सुविधाओं के लिए हर संभव तत्पर रहे।