सबगुरु न्यूज। राजस्थान की भूमि त्याग, तपस्या, बलिदान, वीरता और चमत्कार के रूप में सदियों से जानी जाती है। इस मरूधरा के जैसलमेर में लगभग सात सौ साल पहले एक ऐसे महान और चमत्कारी संत बाबा रामदेव जी का जन्म अवतार हुआ है जिनके चमत्कारों का मेला आज भी आस्था और श्रद्धा के साथ पोकरण तहसील के ग्राम रूणीचे में भरता है।
पूरे भादवा के महीने में 50 लाख से ज्यादा की संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं और बाबा रामदेव जी की समाधि के दर्शन करते हैं। भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया से दशमी तक मेला भरता है। वैसे हर दिन वहां साल से हजारों श्रद्धालु जन बाबा रामदेव जी की समाधि के दर्शन करने आते रहते हैं।
तात्कालिक समय समाज में भारी मात्रा में सामाजिक कुरीतियों और छुआ-छूत, जाति पांति का भेदभाव होता था। बाबा रामदेव जी ने इन्हीं कुरीतियों का अंत किया और दलितों-गरीबों के मसीहा बने। कलयुग की दुनिया में भी उन्होंने अपने चमत्कारों से देश व दुनिया को अचंभे में डाल दिया। मक्का से पधारे पांच पीरों ने इनके चमत्कार को देख कर ही बाबा रामदेव जी को पीरों का पीर राम सा पीर की उपाधि से नवाजा।
क्षत्रियों के तंवर राजपूत वंश में जन्म अवतार लेने वाले बाबा रामदेव जी का जीवन सामाजिक सुधारों मे ही लगा रहा। कहा जाता है कि मूलत: यह वंश दिल्ली के तंवर राजपूत का था जो बाड़मेर और जैसलमेर में आकर बस गया। बाबा रामदेव जी ने कम ही उम्र में जीवित समाधि जैसलमेर के पोकरण तहसील के ग्राम रूणीचे में ले कर इस जगत से विदाई ले ली। उनकी इसी समाधि पर वर्ष भर श्रद्धा व आस्था के मेले लगते हैं।
तंवर वंश के हिन्दू राजा अजमल जी के घर में बाबा रामदेव जी का अवतार हुआ था। बाबा रामदेव जी का जन्म अवतार राजस्थान राज्य के बाडमेर ज़िले के गांव उणडू काश्मीर में विक्रम संवत 1409 अर्थात सन 1352 में भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की दूज के दिन हुआ था। 33 साल की अल्प आयु में ही उन्होंने विक्रम संवत 1442 में जीवित समाधि ले ली।
मध्य कालीन भारतीय इतिहास में उस समय लूटपाट डकैती चोरी तथा हिन्दु मुस्लिमों के बैर चल रहे थे। समाज छूआछूत, जातिवाद, धर्मवाद की अनेक बुराइयों से पीड़ित था। ऐसे समय में बाबा रामदेव जी का जन्म अवतार होना ओर बाबा की सराहनीय सेवा से उन कुरीतियों का अंत करना महत्व पूर्ण सफलता थी।
जैसलमेर के पोकरण में तंवर अजमल जी की राजधानी थी। वहां एक भैरव राक्षस का आतंक था। बाबा रामदेव बाल्य काल से ही अपनी लीला दिखाते रहे तथा अपने चमत्कार से भैरव राक्षस का वध किया। कपड़े के घोड़े पर बैठ उसे आसमान में उड़ा दिया। मिश्री के टैक्स की चोरी व्यापारी ने की नमक बताकर तो उसका मिश्री सें नमक बना दिया।
समुद्र में व्यापारी की नाव डूबने पर उसके याद करते ही बचा दिया। पांचों पीरों के बरतन उडाकर मक्का से मंगाए। अपनी बहन सुगना का बच्चा मरने पर जिन्दा कर दिया। रूपादे की भक्ति सें खुश हो थाली में बाग लगा दिय आदि अनेक चमत्कार जनश्रुति के अनुसार कहे हैं।
वे गरीब, बेसहारा व दलितों के मसीहा बने। रोगी और बीमारों को ठीक किया। दलित डाली बाईं उनके साथ धर्म की बहन बन कर रहीं। पोकरण के पास गांव रामदेवरा में अपना निवास बनाया। वहां बावड़ी ख़ुदवाई तथा एक तालाब बनवाया।
अंत में सभी गांव वासियों को एकत्र कर हाथ में नारियल ले सभी के सामने भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन जीवित समाधि ले इस दुनिया से विदा हो गए।
उनका जन्म भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की दूज के दिन हुआ तथा समाधि भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को हुई। इस कारण दूज से दशमी तक रामदेव जी का मेला रामदेवरा में लगता है जहां लाखों की संख्या में श्रदालु जन बाबा रामदेव जी के दर्शन करते हैं।
वास्तव में राजस्थान का यह मेला एक महाकुंभ है जहां केवल भाद्रपद मास में लगभग पचास लाख से ज्यादा श्रदालु आते हैं तथा वर्ष भर बाबा के श्रदालुओं का ताता लगा रहता है।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणिया धाम पुष्कर