सबगुरु न्यूज। माघ मास की शुक्ल पंचमी का ऋतुराज बसंत के आगमन का दिन है। बंसत पंचमी के आगमन के साथ ही प्रकृति इस धरा पर सौंदर्य बिखरने लगती है और सर्वत्र प्रसन्नता मादकता व प्रेम का आगमन शुरू हो जाता है। बंसत ऋतु को आनंद ही नहीं वरन् ज्ञान, बुद्धि व स्मरण शक्ति तथा मेघा शक्ति का भी प्रतीक माना जाता है।
बंसत ऋतु में प्रकृति के तत्व आकाश, भूमि, आग, हवा व पानी का अनुकूल संतुलन प्रकृति और जीवों में हो जाता है। सर्वत्र एक सकारात्मक ऊर्जा बहने लगती है। यही ऊर्जा जीव व जगत को हर तरह से पूर्ण करके एक उन्नत औषधि का काम करती है, यह मानव शरीर के हर अंग को पुष्ट बनाती है। इसी कारण व्यक्ति में ज्ञान बुद्धि ओर मेधा शक्ति जागरूक हो जाती हैं।
धार्मिक दृष्टिकोण से बंसत पंचमी को बुद्धि की देवी सरस्वती का दिन भी माना जाता है। ज्ञान, कला व विद्या की देवी सरस्वती का पूजन इस दिन किया जाता है। कई स्थानों पर पर इस दिन राधा और कृष्ण के प्रेम की रास लीला मनाई जाती है तो कहीं पर भगवान विष्णु की पूजा उपासना की जाती है। कहीं सौंदर्य के देव कामदेव व रति की पूजा की जती है।
इस दिन नए अन्न में घी व गुड मिलाकर पितृ दोष दूर करने के लिए पितरों का तर्पण किया जाता है। वाणी की देवी सरस्वती से ही ज्ञान का उदय होता है और कला का विकास होता है। बंसत पंचमी का दिन विद्या आरम्भ की मुख्य तिथि होती हैं।
इस दिन सरस्वती पूजन के लिए दूध, दही, मक्खन, धान का लावा, तिल के लड्डू, गन्ना, सफ़ेद रंग की मिठाई, केला, नारियल, मूली, अदरक, बेर और उपलब्ध ऋतु फल तथा सफेद रंग का वस्त्र व पुष्प आदि सामग्री से करना चाहिए। सामर्थ हो तो चांदी का जेवर व चंदन का इत्र अर्पण करे।
देवी भागवत पुराण में यह बताया गया है कि पुष्कर क्षेत्र में परशुराम जी ने शुक्र को सरस्वती मंत्र व पूजन का उपदेश दिया। मरीच ने बृहस्पति को ब्रह्मा जी ने भृगु को। शिव ने आनंद में आकर कण्व मुनि को और सूर्य ने याज्ञवल्क्य तथा कात्यायन ऋषि को सरस्वती मंत्र व पूजन का उपदेश दिया।
श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा
ऐसी मान्यता है कि बुद्धि और स्मरण शक्ति, वाणी सिद्धि व स्वार्थ सिद्धि के लिए व सुखद दाम्पत्य जीवन के लिए सरस्वती की पूजा उपासना लाभदायक होतीं हैं।
मान्यताएं जो भी हों, बंसत ऋतु के आगमन पर सर्दी खत्म हो जाती हैं और शरीर को मौसम की सुखद अनुभूति होती है। हर कार्यो को करने के लिए एक उत्साह उत्पन्न होता है। पीले रंग के वस्त्र पहन कर और पीले मीठे चावल का भोजन करके लोग बंसत पंचमी को नई शक्ति के पर्व के रूप मे मानते हैं।
सौजन्य : भंवरलाल