सबगुरु न्यूज। प्रकृति अपनी धरा पर बंसत ऋतु के रूप में बहार बन कर आती है और धरा का चप्पा चप्पा, हर कण एक मस्ती से जीवंत हो उठता है। दिलकश हवाएं उस धरती पर वन उपवन जगत और जीव को जब स्पर्श करती है तो ऐसा लगता है कि समुद्र मंथन के समय निकले अमृत का कलश छलक गया हो और अमृत की कुछ बूंदें इस धरा पर गिर कर एक नवीन ऊर्जा नवीन मेघा शक्ति और स्मरण शक्ति को बढ़ा कर नवाचार का संदेश जीवन को दे रही है।
प्रकृति के यही नवाचार जीव व जगत में स्वार्थ सिद्धि ओर वाणी का संगम कर, दिलो में प्यार की नई बहार बन कर आते हैं और यहीं बहारे जीवन को आशा रूपी प्रेम मे जकड़ कर शक्ति बन कर समृद्धि और विकास की ओर ले जातीं हैं।
वन उपवन और खेत खलियान प्रकृति की बसंत ऋतु से संगम कर एक फल, फूल वनस्पति और खाद्यान्नों से इस जगत को भर देते हैं और संदेश देते हैं पतझड़, सावन, बंसत बहार के बाद प्रेम रूपी संगम का फल देने की ऋतु आ गईं है। ऐसे में एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को बार बार कहता है कि तुम छत पर आओ और प्रकृति के इस नज़ारे को देखो, मै इस चांद के बहाने तुझे देखूं।
एक किसान जब बंसत ऋतु में अपने खेत को देखता है तो उसका दिल आनंद से झूम जाता है और वह अपनी जीवन संगिनी को कहता है कि हे गोरी तू छत पर आ जा क्योंकि मै खुशियों से लदा हुआ हूं और तू मेरा दिल है।
मैं तुझे इस खुशियों का भागीदार मानता हूं और इन खुशियों मे तूझे शरीक करना चाहता हूं। तू शरम मत कर और कोई पूछे कि छत पर क्यों जा रही हो तो कह देना आज नया चांद निकला है। उसके दर्शन करने जा रहीं हूं। मैं भी फसलों की इस हरियाली को देखने के बाद खुशहाली के नए चांद के रूप मे तेरा चेहरा देखना चाहता हूं।
उत्साह और उमंग की इस कहानी का नाम ही है बंसत ऋतु। संत जन कहतें है कि हे मानव वर्ष मे प्रकृति जीव व जगत मे एक बार समा कर इसमे बंसत रूपी बहारों को लाकर इसे नव जीवन प्रदान करती है और मानव को संदेश देती हैं कि हे मानव तू बुद्धि वाला है, स्मरण शक्ति वाला हैं और मेरा ही अभिन्न अंग है। इसलिए तू भी बहार बन कर किसी ज़िन्दगी में जा और उसके गुलशन को रोशन कर तूझे आनंद आएगा और तुझमे हम की भावना पैदा होगी तथा सर्वत्र बंसत ऋतु की बहार पीली सरसों की फैल जाएगी। इसलिए हे मानव तू इस बंसत का आनंद ले और मन में बनीं दूरियों को मिटा ताकि सब एक होकर यह गा सके मेरा रंग दे बसंती चोला…।
सौजन्य : भंवरलाल