नई दिल्ली। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने उच्चतम न्यायालय में एक अर्जी दायर करके भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की सर्वोच्च परिषद तथा इंडियन प्रीमियर लीग की संचालन परिषद से इस आधार पर बाहर होने की अनुमति मांगी है कि इनमें उसका प्रतिनिधि स्वतंत्र रूप से अपना काम नहीं कर पा रहा है।
सीएजी ने अपनी याचिका में शीर्ष अदालत से 18 जुलाई, 2016 के आदेश में संशोधन करने की गुहार लगाई है, जिसमें शीर्ष अदालत ने बीसीसीआई की सर्वोच्च परिषद और आईपीएल की संचालन परिषद में सीएजी के एक सदस्य को शामिल करने के न्यायमूर्ति आरएम लोढा की सिफारिश पर अपनी मोहर लगाई थी।
सीएजी ने कहा है कि न्यायालय अपने आदेश में संशोधन करके उसके सदस्य को बोर्ड की सर्वोच्च परिषद और आईपीएल की संचालन परिषद से बाहर आने की अनुमति प्रदान करे। सीएजी का यह कदम उसके प्रतिनिधि की इस सप्ताह उस आपत्ति के बाद आया है जिसमें उन्होंने 17 जुलाई को होने वाली सर्वोच्च परिषद की बैठक में बीसीसीआई के सचिव जय शाह के शामिल होने पर सवाल उठाया था।
गत चार जुलाई को सीएजी प्रतिनिधि अलका रेहानी भारद्वाज ने बीसीसीआई के अध्यक्ष सौरभ गांगुली को पत्र लिखकर पूछा था कि वह यह सुनिश्चित करें कि केवल योग्य पदाधिकारी ही सर्वोच्च परिषद की बैठक में हिस्सा ले पाएं। भारद्वाज ने हालांकि कोई नाम नहीं लिया था लेकिन उनका पत्र यह सवाल उठाता है कि क्या शाह इस बैठक में हिस्सा ले सकते हैं क्योंकि एक पदाधिकारी के तौर पर वह छह साल पूरे कर चुके हैं और बीसीसीआई संविधान के तहत अब उन्हें तीन साल की कूलिंग अवधि में जाने की जरूरत है।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने कहा कि चार दिसंबर, 2019 के बाद पिछले छह माह में इसके नामित सदस्यों को प्राप्त अनुभवों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सीएजी के सदस्य को नामित करने का शीर्ष अदालत का उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है, क्योंकि अल्पमत में होने के कारण प्रबंधन का ही फैसला मान्य होता है और सीएजी प्रतिनिधि निगरानी की अपनी भूमिका को भूलकर प्रबंधन के फैसले का हिस्सा बन जाते हैं और शीर्ष अदालत का उद्देश्य निष्फल रह जाता है।
सीएजी ने हालांकि यह स्पष्ट किया है कि वह वार्षिक या द्विवार्षिक तौर पर बीसीसीआई और राज्य क्रिकेट संघों के वित्तीय, नियमों पर अमल एवं प्रदर्शन संबंधी अंकेक्षण करते रहेंगे। याचिकाकर्ता ने कहा है कि 35 राज्यों के क्रिकेट संघों में से केवल 18 ने ही सीएजी के प्रतिनिधित्व को लेकर आग्रह किया है, जिसपर सीएजी ने अमल किया है। अभी 17 राज्यों की ओर से कोई अनुरोध पत्र प्राप्त नहीं हुआ है।
सीएजी ने कहा है कि सीएजी को अंकक्षेण में विशेषज्ञता है, इसलिए इसे बीसीसीआई/राज्य क्रिकेट संघों के अंकेक्षण के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए, चाहे नियमित तौर पर हो, या वार्षिक अथवा द्विवार्षिक या न्यायालय के निर्देशानुसार।