बीकानेर । राजस्थान विधानसभा में इस बार बीकानेर पश्चिम से कांग्रेस के कद्दावर नेता और पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डा. बी डी कल्ला की चुनावी प्रतिष्ठा के साथ उनका राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा हैं।
बीकानेर पश्चिम विधानसभा चुनाव क्षेत्र से डा. कल्ला लगातार तीसरी बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वयोवृद्ध विधायक गोपाल कृष्ण जोशी का सामना करेंगे। पांच बार चुनाव जीत चुके डा. कल्ला इस क्षेत्र से मजबूत और ताकतवर नेता माने जाते हैं। वह मंत्री रहे हैं और एक बार प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं लेकिन वह जोशी से वर्ष 2008 और 2013 के चुनाव में लगातार दो बार हार चुके हैं।
इस बार उन्हें टिकट मिलना ही विवादास्पद रहा है। पार्टी नेतृत्व ने शुरूआत में उनका टिकट काटकर शहर जिलाध्यक्ष और युवा नेता यशपाल गहलोत को थमा दिया। इस पर उनके समर्थकों ने हंगामा खड़ा कर दिया। इससे दबाव में आये पार्टी नेतृत्व ने उनको फिर से पार्टी उम्मीदवार घोषित किया। इससे यशपाल गहलोत के समर्थक भड़क गये। इस घटनाक्रम के चलते कल्ला को कुछ नुकसान उठाना पड़ सकता है।
इस बार के चुनाव में कल्ला की चुनावी प्रतिष्ठा के साथ ही उनका राजनीतिक भविष्य भी दांव पर लगा है। इस चुनाव में जीत कल्ला को जहां पार्टी मे पुनर्स्थापित कर देगी, वहीं लगातार तीसरी हार उन्हें राजनीति के उस बियावान में धकेल देगी जहां उनकी आवाज सुनने वाला शायद कोई न हो।
यह ऐसा विधानसभा क्षेत्र है जहां आजादी के बाद देश की एकमात्र बड़ी और लोकप्रिय पार्टी होने के बावजूद शुरूआत के तीन चुनावों में कांग्रेस को सफलता नहीं मिली थी। वर्ष 1952 में हुए प्रथम विधानसभा चुनाव में यहां से मोतीचंद खजांची निर्दलीय के रूप में विधायक चुने गये थे। वर्ष 1957 और 1962 के चुनावों में क्षेत्र के सम्मानित नेता मुरलीधर व्यास तत्कालीन प्रजा सोसलिस्ट पार्टी के टिकट पर लगातार दो बार निर्वाचित हुए। इसके बाद कांग्रेस ने जातिगत समीकरण बिठाते हुए 1967 के चुनाव में गोकुल प्रसाद पुरोहित को व्यास के मुकाबले उतारा। इसमें बाजी पुरोहित के हाथ लगी और कांग्रेस पहली बार यहां अपना खाता खोलने में कामयाब हो गई।
वर्ष 1972 में गोपाल कृष्ण जोशी ने कांग्रेस की सफलता को बरकरार रखा। वर्ष 1977 में कांग्रेस विरोधी लहर में जनता पार्टी की ओर से महबूब अली विधायक बने। दिवंगत महबूब अली बीकानेर जिले के अब तक के चुनावी इतिहास में एकमात्र अल्पसंख्यक विधायक रहे हैं।
इसके बाद वर्ष 1980 के चुनाव में अपने चुनावी सफर की शुरूआत करते हुए डा. कल्ला कांग्रेस की ओर से मैदान में उतरे और उन्होंने फिर से यहां कांग्रेस का परचम लहराया। इसके बाद कल्ला का 1985 और 1990 के चुनावों में जीत का सिलसिला जारी रखा। उन्हें पहली बार मजबूत चुनौती वर्ष 1993 के चुनावों में मिली जब भाजपा ने क्षेत्र के मतदाताओं पर खासा प्रभाव रखने वाले नंदलाल व्यास को उनके खिलाफ मैदान में उतारा। इस चुनाव में डा. कल्ला को पहली बार हार का सामना करना पड़ा और भाजपा को अपने अस्तित्व में आने के बाद यहां खाता खोलने का मौका मिल गया। इसके बाद डा. कल्ला ने दमदार वापसी करते हुए 1998 और 2003 के विधानसभा चुनावों में व्यास को हराकर बदला चुकाया।
इस विधानसभा क्षेत्र में इस बार कांग्रेस के बागी नेता गोपाल गहलोत भी चुनाव मैदान में हैं। मतदाताओं के एक वर्ग पर उनका प्रभाव है। वह मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इस क्षेत्र में इस बार कुल दो लाख आठ हजार 39 मतदाता हैं, इनमें एक लाख आठ हजार 266 पुरुष और 99 हजार 773 महिलायें हैं। यहां चार निर्दलियों सहित कुल 12 उम्मीदवार चुनावी भाग्य आजमा रहे हैं। इनमें बहुजन समाज पार्टी के नारायण हरी, अभिनव राजस्थान पार्टी के चेतन प्रकाश पणिया, शिव सेना से पुखराज, आम आदमी पार्टी से रितेश कुमार, अनारक्षित समाज पार्टी के शिव शंकर ओझा और दलित क्रांति दल की ओर से हाजी मोहम्मद शामिल हैं।