अजमेर। यूं तो राम से जुडे हर पात्र अदभुत और अलौकिक भूमिका लिए हुए हैं, लेकिन इनमें भरत चरित्र सर्वाधिक प्रेरणा देने वाला है। हनुमान राम कथा की शक्ति है। लक्ष्मण का जीवन समर्पित भाव वाला रहा है, उन्हें राम का सान्निध्य मिला। भरत को वियोग में श्रीराम की सेवा करने को मिली। राम से दूर रहकर राम के करीब रहना ही भरत को श्रेष्ठ स्थान दिलाता है। भरत वियोग में सेवा के आदर्श रूप हैं। लक्ष्मण का राम के प्रति प्रेम व्यक्तिनिष्ठ है लेकिन भरत का राम के प्रति प्रेम तत्वनिष्ठ है।
यह बात श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र अयोध्या के कोषाध्यक्ष एवं श्रीकृष्ण जन्मभूमि मथुरा के उपाध्यक्ष राष्ट्रसंत गोविंददेव गिरीजी महाराज ने बुधवार को अंतराष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन की ओर से हंस पैराडाइज में आयोजित कार्यक्रम में भरत चरित्र कथा का उल्लेख करते हुए कही।
उन्होंने भगवान श्रीराम के छोटे भाई भरत जी के चरित्र को वर्तमान जीवन दर्शन में परिवारों में आत्मसात करने वाला तथा जीवनोपयोगी बताते हुए कहा कि भरत आध्यात्मिक चेतना के अग्रदूत हैं। भरत कथा साध्य नहीं बल्कि साधना है। भरत चरित्र पारिवारिक संयोजन के लिए उपयोगी है।
उन्होंने कहा कि राम कथा का हर पात्र हमारा मार्गदर्शन करता है। राम को रिझाने का सबसे उत्तम तरीका भरत हैं। राम के प्रिय भरत हैं। संसार राम को याद करता है पर राम भरत को याद करते हैं। यह भी कहना उचित होगा कि राम का वन गमन जग को भरत चरित्र दिखाने के लिए ही हुआ है। उन्होंने छोटे भाई भरत के लिए राज त्यागा और वन गमन किया।
उधर, राम के वन से 14 साल पहने ना लौटने की जिद पर भरत ने कहा कि राज्य की सेवा मैं करूंगा लेकिन सिंहासन पर राम की चरण पादुकाएं बिराजेंगी। जितने नियमों का पालन राम ने वनवास के दौरान किया उतने ही नियमों का पालन भरत ने नंदीग्राम में रहकर किया। भरत ने कभी खुद को अयोध्या का कभी राजा नहीं माना बल्कि न्यासी के तौर पर भूमिका निभाई।
ठीक इसी तरह हम इतना ध्यान कर लें कि हम इस संपती के मालिक नहीं हैं। सब परमात्मा का है। हमें बस विवेक से इसका उपयोग करना है। ऐसा दृष्टिकोण जीवन में अपनाते ही समस्त कष्ट दूर हो जाएंगे। भरत जैसे विचार आते ही मन सात्विक हो जाएगा। उन्होंने कहा कि भाइयों को संपत्ति और धन से ज्यादा भाई को प्रेम करना चाहिए। अगर भाइयों में प्रेम होगा तो परिवार तरक्की के रास्ते पर चलता रहेगा। भरत ने अयोध्या का राजा भगवान श्रीराम को माना व स्वयं को उनका दास बताया।
कार्यक्रम के आरंभ में विष्णु सत्यनारायण चौधरी, कालीचरण सर्राफ, रमेश तापडिया, सतीश बंसल, ओम प्रकाश, अशोक कुमार गर्ग, गिरधारीलाल मंगल, कमलेश मंगल, एडवोकेट लोकेश अग्रवाल, विनीता अग्रवाल, पवन मिश्रा, विष्णु मिश्रा, उमेश गर्ग, त्रिलोक चंद, सीताराम शर्मा, हरीश चंद मिश्रा, राजेन्द्र मिश्रा ने व्यासपीठ पर बिराजे गोविंददेव गिरीजी महाराज का स्वागत किया। सुनील दत्त जैन ने परिचय कराया। वेदपाठी छात्रों ने स्वस्ती वाचन किया।
भाग्यशाली है वर्तमान पीढी
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का कार्य आरंभ हो जाने पर खुशी व्यक्त करते हुए गोविंददेव गिरीजी महाराज ने कहा कि शक्ति और भक्ति के ज्वार की बदौलत भगवान राम का मंदिर बन रहा है। लंबे कालखंड के बीच चले संघर्ष और आक्रांताओं के संत महात्माओं पर अत्याचार के बाद भी सनातन संस्कृति अपने मूल स्वरूप में बनी रही। यह सब राम के प्रति आस्था और विश्वास ही है। राम इस देश के प्राण तत्व हैं। वर्तमान की पीढी भाग्यशाली है जो भगवान श्रीराम का मंदिर बनते अपने जीवन काल में देख रही है। राम को देखो, राम को जानों तो धर्म खुद समझ आ जाएगा।