
भरतपुर। रक्षाबंधन के त्यौहार पर जब चारों तरफ हर्षोल्लास के माहौल में भाई-बहनों के बीच खुशियों की बारिश हो रही थी तब राजस्थान के भरतपुर में एक ऐसा मामला भी सामने आया जब चार महीनों से लापता भाई का पता तो लगा लिया लेकिन वह उसकी कलाई पर राखी नहीं बांध पाई।
प्राप्त जानकार के अनुसार जब बहन को भाई के बारे में पता लगा तब वह इस दुनिया में नहीं था। कोरोनाकाल में भरतपुर की एक स्वयंसेवी संस्था ने दिल्ली में सड़क पर बेहोशी की हालत में पड़े मदन मोहन को अस्पताल ले गए लेकिन कोरोना काल में अस्पतालों में जगह नहीं होने के कारण उसे 28 जून को भरतपुर लाया गया। वह कुछ भी बोल नहीं पा रहा था। उसका भरतपुर के स्वयंसेवी संस्था के आश्रम में इलाज किया गया।
पहचान नहीं होने के कारण उसका नाम रामचरण रखा गया। रामचरण की तबीयत खराब होने के कारण गत पांच जुलाई को मौत हो गई। इस बीच दिल्ली निवासी सुषमा अपने भाई मदन मोहन की काफी दिनों से तलाश कर रही थी। सुषमा के पास उसके भाई की केवल एक तस्वीर थी। उसे जहां भी कोई आश्रम दिखता वहां अपने भाई के बारे में पूछती।
गत सप्ताह ही उसे पता लगा कि मदन मोहन को भरतपुर की एक संस्था अपने साथ ले गई है तो वह रक्षाबंधन पर अपने बिछुड़े भाई की कलाई पर राखीं बांधने और उसे अपने साथ वापस ले जाने के लिए जब भरतपुर पहुंची तो उसे पता चला कि उसका भाई अब इस दुनिया मे नहीं है। तब वह सन्न रह गई और फूट-फूट कर रोने लगी।
मदन मोहन की मौत होने के बाद संस्था ने उसके अंतिम संस्कार के साथ उसकी अस्थियां भी विसर्जित कर दी इसलिए उसकी बहन सुषमा को अपने भाई की अस्थियां भी नसीब नहीं हो सकी।