Warning: Constant WP_MEMORY_LIMIT already defined in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/18-22/wp-config.php on line 46
राम के धर्म की ध्वजा लेकर सुख शांति देने वाला भारत बनाना है : भागवत - Sabguru News
होम UP Ayodhya राम के धर्म की ध्वजा लेकर सुख शांति देने वाला भारत बनाना है : भागवत

राम के धर्म की ध्वजा लेकर सुख शांति देने वाला भारत बनाना है : भागवत

0
राम के धर्म की ध्वजा लेकर सुख शांति देने वाला भारत बनाना है : भागवत
rss chief mohan bhagwat at bhoomi pujan ceremony for ram temple in ayodhya
rss chief mohan bhagwat at bhoomi pujan ceremony for ram temple in ayodhya

अयोध्या। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने आज कहा कि अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के साथ ही लोगों को अपना मन भी अयोध्या की तरह बनाना है और श्री राम के आदर्शों पर आधारित सबको जोड़ने वाले, ऊपर उठाने वाले, सबकी उन्नति करने वाले तथा सबको अपना मानने वाले धर्म की ध्वजा को अपने कंधे पर लेकर संपूर्ण विश्व को सुख-शांति देने वाले भारत का निर्माण करना है।

डॉ भागवत ने यहां श्रीराम जन्मभूमि परिसर में मंदिर निर्माण के पूर्व भूमिपूजन अनुष्ठान में शामिल होने के बाद उपस्थित संत समुदाय एवं अन्य प्रमुख लोगों को संबोधित किया। सरसंघचालक ने कहा कि आज हम सबके लिए आनंद का क्षण है।

तत्कालीन संघ के सरसंघचालक बाला साहब देवरस ने कहा था कि बहुत लग के बीस-तीस साल काम करना पड़ेगा। तब कभी ये काम होगा और यही हुआ। तीसवें साल के प्रारंभ में हमको संकल्प पूर्ति का आनंद मिल रहा है। उन्होंने कहा कि इस आंदोलन में जी-जान से अनेक लोगों ने बलिदान दिए हैं। वे प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित नहीं हो सकते पर सूक्ष्म रूप में यहां उपस्थित हैं।

उन्होेंने कहा कि ऐसे भी हैं जो हैं, लेकिन यहां आ नहीं सकते, रथ यात्रा का नेतृत्व करने वाले लालकृष्ण आडवाणी अपने घर पर बैठकर इस कार्यक्रम को देख रहे होंगे। कितने ही लोग हैं जो आ भी सकते हैं, लेकिन बुलाए नहीं जा सकते, परिस्थिति ऐसी है लेकिन वे भी अपनी-अपनी जगह कार्यक्रम देख रहे होंगे।

पूरे देश में आनंद की लहर है और ये सदियों की आस पूरी होने का आनंद है लेकिन सबसे बडा आनंद है, भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जिस आत्मविश्वास और आत्मभान की आवश्यकता थी उसका सगुण-साकार अधिष्ठान बनने का शुभारंभ आज हो रहा है।

उन्होंने कहा कि वो अधिष्ठान आध्यामिक दृष्टि का है। सारे जगत को अपने में देखने और अपने में जगत को देखने की भारत की दृष्टि, जिसके कारण उसके प्रत्येक व्यक्ति का व्यवहार आज भी विश्व में सबसे अधिक सज्जनता का व्यवहार होता है और उस देश का सामूहिक व्यवहार सबके साथ वसुधैव कुटुम्बकम का होता है।

ऐसा स्वभाव और ऐसे अपने कर्तव्य का निर्वाह, व्यावहारिक जगत के माया के दुविधा में से रास्ते निकालते हुए जितना हो सके सबको साथ लेकर चलने की जो विधि एक बनती है, उसका अधिष्ठान आज यहां पर बन रहा है।

उन्होंने कहा कि परमवैभव संपन्न और सबका कल्याण करने वाले भारत के निर्माण का शुभारंभ उनके हाथ से हो रहा है जाे इस व्यवस्था के प्रमुख हैं। इसलिए उन सबका स्मरण होता है, लगता है अशोक सिंघल जी यहां रहते तो कितना अच्छा होता, महंत परमहंस दास जी आज होते तो कितना अच्छा होता, लेकिन जो इच्छा उसकी है वैसा होता है।

लेकिन मेरा विश्वास है जो हैं वो मन से और जो नहीं हैं, वे सूक्ष्म रूप से आज यहां उस आनंद को उठा रहे हैं। उस आनंद को सौ गुना भी कर रहे हैं। लेकिन इस आनंद में एक स्फुरण है, एक उत्साह है, हम कर सकते हैं, हमको करना है, वही करना है।

डॉ. भागवत ने एक श्लोक पढ़ा -‘एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः। स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः।’ उन्होंने कहा कि अभी कोरोना का दौर चल रहा है, सारा विश्व अंतर्मुख हो गया है। विचार कर रहा है, कहां गलती हुई, कैसे रास्ता निकले। दो रास्तों को देख लिया, तीसरा रास्ता कोई है क्या, हां है, हमारे पास है, हम दे सकते हैं, देने का काम हमको करना है, उसकी तैयारी करने के संकल्प करने का भी आज दिवस है।

उसके लिए आवश्यक तप पुरुषार्थ हमने किया है। प्रभु श्रीराम के चरित्र से आज तक हम देखेंगे तो सारा पुरुषार्थ, पराक्रम, वीरवृत्ति हमारे रग-रग में है, उसको हमने खोया नहीं है, वह हमारे पास है। हम शुरू करें, हो जाएगा। इस प्रकार का विश्वास, प्रेरणा, स्फुरण आज हमको इस दिन से मिलती है। सारे भारतवासियों को मिलती है, कोई भी अपवाद नहीं है क्योंकि सबके राम हैं और सबमें राम हैं।

उन्होंने कहा कि इसलिए अब यहां भव्य मंदिर बनेगा, सारी प्रक्रिया शुरू हो गई है। दायित्व बांटे गए हैं, जिनका जो काम है वे करेंगे। उस समय हम सब लोगों को क्या काम रहेगा, हम सब लोगों को अपने मन की अयोध्या को सजाना-संवारना है। उन्होंने कहा कि भव्य राम मंदिर बनाने का काम भारतवर्ष के लाखों मंदिरों में और एक मंदिर बनाने का काम नहीं है। उन सारे मंदिरों में मूर्तियों का जो आशय है, उस आशय के पुनर्प्रकटीकरण और उसका पुनर्स्थापन करने का शुभारंभ हुआ है।

उन्होंने कहा कि इस भव्य कार्य के लिए प्रभु श्रीराम जिस धर्म के विग्रह माने जाते हैं, वह जोड़ने वाला, धारण करने वाला, ऊपर उठाने वाला, सबकी उन्नति करने वाला धर्म, सबको अपना मानने वाला धर्म, उसकी ध्वजा को अपने कंधे पर लेकर संपूर्ण विश्व को सुख-शांति देने वाला भारत हम खड़ा कर सकें, इसलिए हमको अपने मन की अयोध्या बनाना है। यहां पर जैसे-जैसे मंदिर बनेगा, वो अयोध्या भी बनती चली जानी चाहिए और इस मंदिर के पूर्ण होने पहले हमारा मन मंदिर बनकर तैयार रहना चाहिए।

उन्होंने कहा कि वह मन मंदिर कैसा रहेगा, गोस्वामी तुलसीदास ने बताया है–काम कोह मद मान न मोहा। लोभ न छोभ न राग न द्रोहा॥ जिन्ह के कपट दंभ नहिं माया। तिन्ह के हृदय बसहु रघुराया॥ जाति-पाँति धनु धरमु बड़ाई। प्रिय परिवार सदन सुखदाई॥ सब तजि तुम्हहि रहइ उर लाई। तेहि के हृदय रहहु रघुराई॥

डॉ. भागवत ने कहा कि हमारा हृदय भी राम का बसेरा होना चाहिए, इसलिए सभी दोषों से, विकारों से, द्वेषों से, शत्रुता से मुक्त, दुनिया की माया कैसी भी हो उस में सब प्रकार के व्यवहार करने के लिए समर्थ हो और हृदय से सब प्रकार के भेदों को तिलांजलि देकर, केवल अपने देशवासी ही नहीं, संपूर्ण जगत को अपनाने की क्षमता रखने वाला इस देश का व्यक्ति और समाज को गढ़ने के काम का एक सगुण साकार प्रतीक, जो सदैव प्रेरणा देता रहेगा वो यहां खड़ा होने वाला है।

भारतीय संस्कृति की आधुनिकता का प्रतीक होगा राम मंदिर : मोदी