अयोध्या। करीब पांच सदियाें के लंबे इंतजार के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की जन्मस्थली में भव्य राम मंदिर का करोड़ों रामभक्तों का सपना पांच अगस्त को मूर्त रूप ले लेगा और इसके साथ ही धार्मिक पर्यटन के महत्वपूर्ण केन्द्र बनकर उभरे अयोध्या में विकास की एक नई गाथा का अध्याय शुरू होगा।
रामजन्मस्थली पर राम मंदिर निर्माण की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। पांच अगस्त को अभिजीत मुहूर्त में मध्यान्ह बाद 12:30 बजे से 12:40 बजे के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रामलला के मंदिर का भूमि पूजन करेंगे।
अयोध्या में लम्बे समय से रामलला के मंदिर के लिए चले आ रहे संघर्ष की यात्रा अब समाप्त होती नजर आ रही है। यहां से राम मंदिर निर्माण के रूप में एक नई शुरुआत होगी, जिसमें आस्था ही नहीं बल्कि विकास और प्रगति की एक नई राह खुलने की कई योजना आएंगी।
अयोध्या में रामजन्मभूमि पर राम मंदिर निर्माण के लिए एक व्यापक आंदोलन का इतिहास रहा है जिसमें भारत विजय के बाद मुगल शासक बाबर द्वारा 434 वर्ष पहले अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थल पर मस्जिदनुमा ढांचे का निर्माण कराया गया था जिसे सुधारते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर का मार्ग प्रशस्त कर दिया और अब पांच अगस्त से देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा उसका भूमि पूजन होने जा रहा है।
इतिहासकारों के अनुसार 1528 में अयोध्या में हिंदू मंदिर को हटाकर मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट ने किया था, इसलिये इसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था। 1853 में पहली बार इस जगह के पास साम्प्रदायिक दंगे हुए थे जिसके बाद 1859 में ब्रिटिश शासकों ने विवादित स्थल पर बाड़ लगा दी और परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिंदुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दे दी।
वर्ष 1885 में निर्मोही अखाड़े के महंत रघुवर दास ने राम चबूतरे पर मंदिर निर्माण की अनुमति के लिये मुकदमा किया था और अदालत से मांग थी कि चबूतरे पर मंदिर बनाने की अनुमति दी जाय। यह मांग खारिज हो गई और 1946 में विवाद उठा कि बाबरी मस्जिद शियाओं की है, या सुन्नी को तो यह फैसला हुआ कि बाबर सुन्नी था इसलिए सुन्नियों की मस्जिद है।
1949 जुलाई में प्रदेश सरकार ने मस्जिद के बाहर राम चबूतरे पर मंदिर बनाने की कवायद शुरू की लेकिन यह भी नाकाम रही। इसी साल 22,23 दिसम्बर को राम, सीता व लक्ष्मण की मूर्तियां रख दी गईं।
29 दिसम्बर 1949 को यह सम्पत्ति कुर्क कर ली गई और वहां रिसीवर बैठा दिया गया। 1950 को इस जमीन के लिए अदालती लड़ाई का एक नया दौर शुरू होता है। इस मुकदमे में जमीन के सभी दावेदार 1950 के हैं। 16 जनवरी 1950 को गोपाल दास विशारद अदालत गए और कहा कि मूर्तियां वहां से न हटें और पूजा बेरोकटोक हो।
अदालत ने कहा कि मूर्तियां नहीं हटेंगी लेकिन ताला बंद रहेगा और पूजा सिर्फ पुजारी करेगा, जनता बाहर से दर्शन करेगी। 1949 को सुन्नी मेमोरियल अदालत में गया और वहां अपना दावा पेश किया। 1961 में सुन्नी सेंट्रल बोर्ड मस्जिद का दावा पेश करते हुए अदालत पहुंच गया। एक फरवरी 1986 को फैजाबाद के जिला जज ने जन्मभूमि का ताला खुलवाके पूजा की इजाजत दे दी और 1986 में कोर्ट के इस फैसले के बाद बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी बनाने का फैसला हुआ।
वर्ष 1989 में बीएचपी के नेता देवकीनन्दन अग्रवाल ने रामलला के तरफ से मंदिर के दावे का मुकदमा किया और नवम्बर 1989 में मस्जिद से थोड़ी दूर पर राम मंदिर का शिलान्यास किया गया। 25 सितम्बर 1990 को भारतीय जनता पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने एक रथ यात्रा शुरू की। इस यात्रा को अयोध्या तक जाना था और इस यात्रा से पूरे मुल्क में जुनून पैदा किया गया।
इसके नतीजे में गुजरात, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश में दंगे भड़क गए। ढेरों इलाके कर्फ्यू की चपेट में आ गए। आडवाणी को बिहार में लालू यादव की सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन के लिए पहली कारसेवा हुई थी, जिसमें कारसेवकों ने मस्जिद पर चढ़कर झण्डा फहराया था जिससे दंगे भड़क गए थे।
जून 1991 में चुनाव हुए और यूपी में बीजेपी की सरकार बन गई। 30 व 31 अक्टूबर 1992 में धर्म संसद में कारसेवा की घोषणा हुई। 1992 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अदालत में मस्जिद की हिफाजत करने का हल्फनामा दिया। उसके बावजूद छह दिसम्बर 1992 को लाखों कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद गिरा दी। कारसेवक 11 बजकर 40 मिनट पर मस्जिद के गुम्बद पर चढ़े और शाम साढे चार बजे मस्जिद का तीसरा गुम्बद भी गिर गया जिसकी वजह से देश भर में हिंदू व मुसलमानों के बीच साम्प्रदायिक दंगे भड़क उठे।
नौ साल बाद 2001 में बाबरी मस्जिद की बरसी पर तनाव बढ़ गया और विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण करने का अपना संकल्प दोहराया। जनवरी 2002 में अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अयोध्या समिति का गठन किया जिसमें वरिष्ठ अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को हिन्दू व मुसलमान नेताओं से बातचीत के लिए नियुक्त किया गया।
भाजपा ने उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए अपने घोषणा पत्र में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को शामिल करने से इंकार कर दिया। विश्व हिन्दू परिषद ने 15 मार्च से राम मंदिर निर्माण कार्य शुरू करने की घोषणा कर दी। 2003 में हाईकोर्ट ने झगड़े वाली जगह पर खुदाई करवाई ताकि पता चल सके कि क्या वहां पर कोई राम मंदिर था।
जून महीने तक खुदाई चलने के बाद आई रिपोर्ट में कहा गया कि उसमें मंदिर से मिलते-जुलते अवशेष मिले हैं। मई 2003 में सीबीआई ने 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराये जाने के मामले में लालकृष्ण आडवाणी सहित आठ लोगों के खिलाफ पूरक आरोप पत्र दाखिल किए। अप्रैल 2004 में आडवाणी ने अयोध्या में अस्थायी राम मंदिर में पूजा की और कहा कि मंदिर निर्माण जरूर किया जाएगा।
जनवरी 2005 में लालकृष्ण आडवाणी को अयोध्या में छह दिसम्बर 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस में उनकी कथित भूमिका के मामले में अदालत में तलब किया गया। इसी साल अयोध्या के रामजन्मभूमि परिसर में आतंकी हमले हुए जिनमें पांचों आतंकी समेत छह लोग मारे गए।
20 अप्रैल 2006 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने लिब्राहन आयोग के समक्ष लिखित बयान में आरोप लगाया कि बाबरी मस्जिद को ढहाया जाना सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा था और इसमें भाजपा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, बजरंग दल और शिवसेना की मिलीभगत थी।
सरकार ने अयोध्या में विवादित स्थल पर बने राम मंदिर की सुरक्षा के लिए बुलेट प्रूफ कांच का घेरा बनाए जाने का प्रस्ताव किया। इस प्रस्ताव का मुस्लिम समुदाय ने विरोध किया और कहा कि यह अदालत के उस आदेश के खिलाफ है जिसमें यथास्थिति बनाए जाने के निर्देश दिए गए थे।
19 मार्च 2007 को कांग्रेस के राहुल गांधी ने चुनावी दौरे के बीच कहा कि अगर नेहरू, गांधी परिवार का कोई सदस्य प्रधानमंत्री होता तो बाबरी मस्जिद ना गिरी होती। इस बयान से देश में तीखी प्रतिक्रियायें भी हुई थी। 30 जून 2009 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले की जांच के लिए गठित लिब्राहन आयोग ने 17 वर्षों के बाद अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी।
24 नवम्बर 2009 में लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में पेश किया गया। आयोग ने अटल बिहारी वाजपेयी और मीडिया को दोषी ठहराया और नरसिम्हा राव को क्लीन चिट दे दी।
30 दिसम्बर 2010 में इलाहाबाद की लखनऊ खंडपीठ ने आदेश पारित कर अयोध्या में विवादित जमीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर बांटने का फैसला किया जिसे सबने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया। 26 जुलाई 2010 को रामजन्मभूमि/बाबरी मस्जिद विवाद पर सुनाई पूरी हुई।
इसी साल आठ सितम्बर को हाईकोर्ट की तीन जजों की बेंच ने फैसला सुनाया जिसमें मंदिर के लिए हिंदुओं को जमीन देने के साथ ही विवादित स्थल का एक तिहाई हिस्सा मुसलमानों को मस्जिद बनाए जाने के लिए दिए जाने की बात कही गई। मगर यह निर्णय दोनों को स्वीकार नहीं हुआ।
नौ मई 2011 में उच्चतम न्यायालय ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ 14 अपील दाखिल हुई। 27 सितम्बर 2018 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश देशदीपक की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने दो-एक के बहुमत से 1994 में किए गए फैसले की टिप्पणी पांच न्यायाधीशों की पीठ के पास नए सिरे से विचार के लिए भेजने से इंकार कर दिया था।
छह अगस्त 2019 को अयोध्या में रामजन्मभूमि/बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में मध्यस्थता से कोई नतीजा नहीं निकल सका जिसके बाद छह अगस्त से सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई शुरू हुई।
नौ नवम्बर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की पांच सदस्यीय बेंच ने लम्बे समय से चले आ रहे विवाद पर अपना निर्णय मंदिर के पक्ष में सुनाकर इस गंभीर मामले का पटाक्षेप कर दिया।
इसके बाद संसद में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वशासित श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की और मंदिर निर्माण का अधिकार प्रदान कर दिया। अब इसी सिलसिले में मंदिर निर्माण हेतु पांच अगस्त को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी श्रीरामजन्मभूमि पर विराजमान रामलला के भव्य मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन करने आ रहे हैं।