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बिहार में नीतीश कुमार की है धाक, चुनौती देना आसान नहीं - Sabguru News
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बिहार में नीतीश कुमार की है धाक, चुनौती देना आसान नहीं

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बिहार में नीतीश कुमार की है धाक, चुनौती देना आसान नहीं

पटना। बिहार की राजनीति में पिछले पंद्रह वर्षों से निष्कंटक ‘सिरमौर’ बने हुए इंजीनियर नीतीश कुमार ने सोशल इंजीनियरिंग से विकास की राह बनाकर ऐसी धाक जमाई है कि उन्हें चुनौती देना किसी के लिए भी आसान नहीं होगा।

नीतीश कुमार ने 90 के दशक में बिहार की राजनीति पर हावी रहे जात-पात के कुचक्र को अपने विकास के मॉडल से ऐसा तोड़ा कि उनकी स्वीकार्यता सभी वर्गों, तबकों और क्षेत्रों में बढ़ी, जिसका प्रमाण वर्ष 2000 से 2015 के बीच हुए विधानसभा चुनावों में जदयू के जनाधार में हुई अप्रत्याशित वृद्धि है। कुमार के नेतृत्व में बिहार ने लालू-राबड़ी सरकार के समय के अगड़े-पिछड़े के ‘खुले वैमनस्य’ को नकार दिया है।

यह कुमार का प्रभाव ही था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालयों में काम कर उन्होंने ऐसी छवि बनाई कि वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में जब राजग सबसे बड़े घटक के रूप में सत्ता का दावेदार बना तो अटल-आडवाणी की जोड़ी ने उस समय बिहार में बड़े भाई की भूमिका में रही अपनी पार्टी के नेताओं के ऊपर नीतीश कुमार को तरजीह दी और उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में काम करने के लिए केंद्र से बिहार में भेज दिया था। हालांकि पहली बार मुख्यमंत्री बनेे कुमार बहुमत नहीं जुटा पाने के कारण 7 दिन में ही पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

इस चुनाव के बाद नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही राजग वर्ष 2005 के फरवरी में चुनाव लड़ी और सरकार बनाने के बेहद करीब भी पहुंच गया था लेकिन ऐन वक्त पर राज्यपाल ने विधानसभा भंग कर दी। इसके बाद नवंबर में जब दोबारा चुनाव हुए तो स्पष्ट जनादेश के साथ बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजग की सरकार बनी राज्य की सरकार बनी। बिहार में पांच साल काम करने के मिले मौके को इंजीनियर नीतीश कुमार ने सोशल इंजीनियरिंग से विकास की राह ऐसी बनाई कि वर्ष 2010 का विधानसभा चुनाव हो या वर्ष 2015 का उसी गठबंधन को प्रचंड जनादेश मिला जिसका नेतृत्व नीतीश कुमार कर रहे थे।

यह अलग बात है कि वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के घटक लोजपा ने जनता दल यूनाइटेड को नकार कर 143 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा ही नहीं की है बल्कि चुनाव बाद भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाने का भी दावा किया है और जिसे राजनीतिक विश्लेषक जदयू को कमजोर करने के रूप में देख रहे हैं।

लेकिन, पिछले पंद्रह साल में विधानसभा के चार बार हो चुके चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि इन चुनावों में प्राप्त मतों के आधार पर राज्य में नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जदयू न केवल बड़े जानाधार वाली पार्टी बनी बल्कि राजग के अन्य घटक के मुकाबले सबसे अधिक विधायक भी इसी के पास रहे हैं।

बिहार में राजग के प्लेटफॉर्म पर वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश को नरसंहारों, घोटालों, भ्रष्टाचार और अपराध से मुक्त कर विकास के पथ पर बढ़ाने के वादे के साथ जदयू और भाजपा ने साथ चुनाव लड़ा। जदयू ने 87 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 24.14 प्रतिशत यानी 21 सीटें जीतकर तथा कुल वैध मतों में से 2396677 वोट अपने नाम कर भविष्य की राजनीति की दहलीज पर जबरदस्त दस्तक दी।

हालांकि, इसके बाद जदयू ने राज्य में फरवरी 2005, नवंबर 2005, 2010 और 2015 में विधानसभा के चुनावी रण में जो जौहर दिखाया उसे अकल्पनीय कहा जा सकता है। वर्ष 2000 के चुनाव में भाजपा ने 168 सीट पर प्रत्याशी खड़े किए और 67 सीटें जीती थी।

इसके बाद फरवरी 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में बिहार की जनता ने जदयू पर भरोसा जताया और उसे प्राप्त मतों की संख्या पिछले चुनाव के मुकाबले लगभग आठ प्रतिशत बढ़कर 35 लाख 64 हजार 930 हो गई। इस चुनाव में राजग में सीटों के तालमेल के तहत जदयू ने 138 सीटों पर उम्मीदवार उतार कर 55 सीट पर जीत दर्ज की वहीं भाजपा के प्रत्याशी 103 सीट पर चुनाव लड़कर 37 सीट पर विजयी हुए।

इस बार भाजपा के पक्ष में कुल 2686290 वोट पड़े। पूर्ण बहुमत नहीं होने के कारण इस बार किसी दल या गठबंधन की सरकार नहीं बन पाई और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। बिहार में राष्ट्रपति शासन में ही पुन: नवंबर 2005 में चुनाव कराया गया। इस बार जदयू ने जो किया उससे प्रदेश में नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजग की मजबूत सरकार बनी, जो अबतक कायम है।

जदयू के उम्मीदवारों ने 139 सीटों पर ताल ठोकी और 88 सीट अपने नाम कर ली। उसके पक्ष में कुल 48 लाख 19 हजार 758 वोट पड़े। वहीं, भाजपा ने 102 सीट पर चुनाव लड़कर 55 सीट पर विजय हासिल की और उसे कुल 3686720 मत प्राप्त हुए। इस बार के चुनाव में रामविलास पासवान की लोजपा ने 203 विधान सभा क्षेत्र में उम्मीदवार उतारे लेकिन उसे महज 10 सीट से संतोष करना पड़ा।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाली राजग सरकार ने बिहार की जनता से किए गए वादों में से सबसे पहले विधि-व्यवस्था ठीक करने को प्राथमिकता दी। अपराधी प्रवृत्ति के नेताओं को सलाखों के पीछे पहुंचाया, जिनमें दो बड़े नाम राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के शाहबुद्दीन और तत्कालीन बिहार पीपुल्स पार्टी के आनंद मोहन शामिल हैं। वहीं, पुलिस मैनुअल में बदलाव कर राज्य की पुलिसिंग को चुस्त-दुरुस्त किया।

इनके अलावा हर क्षेत्र में विकास के कार्य शुरू कर दिए गए। इसका लाभ वर्ष 2010 में हुए विधानसभा चुनाव में राजग को मिले प्रचंड जनादेश के रूप में फलीभूत हुआ। इस बार जदयू ने 141 सीट पर चुनाव लड़कर 115 पर जीत दर्ज की और उसने कुल 65 लाख 61 हजार 906 वोट अपने नाम किया। वहीं, भाजपा ने 102 सीट में से 91 जीती और उसे कुल 4790436 मत हासिल हुए। लोजपा को 75 में से महज तीन और राजद को 168 में से 22 सीटों पर ही रोक दिया। वर्ष 2013 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने की घोषणा के बाद नीतीश कुमार राजग से अलग हो गए और राष्ट्रीय जनता दल तथा कांग्रेस के समर्थन से सरकार चलाने लगे।

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू के खराब प्रदर्शन की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए कुमार ने पद से इस्तीफा दे दिया और जीतन राम मांझी का मुख्यमंत्री बना दिया लेकिन बाद में उनकी कार्यशैली से नाराज होकर उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा दिया और वह फिर से मुख्यमंत्री बन गए। वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू ने राजद, कांग्रेस एवं अन्य दलों के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया और चुनाव लड़ा।

नीतीश कुमार ने राज्य के प्रत्येक घर में बिजली और महिलाओं की मांग पर शराबबंदी का वादा कर वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में गए। अपने वादों को पूरा करने की कुमार की जिद और प्रयास पर प्रदेश की जनता ने फिर भरोसा किया और इस बार जदयू को 101 में से 71 सीटों पर जीत दिलाई।

राजग से अलग होकर चुनाव लड़ने के बावजूद जदयू के जनाधार पर कोई फर्क नहीं पड़ा और जनता ने उसे कुल 64 लाख 17 हजार 41 वोट दिए। साथ ही राजद को 80 और लगातार कमजोर होती गई कांग्रेस भी 27 सीटों पर जीत का स्वाद चख पाई। वहीं, भाजपा को 157 में 53 सीट पर जीत मिली, लोजपा 42 में से मात्र दो सीट ही बचा पाई। तमाम राजनीति उठापटक के बावजूद नवंबर 2015 में फिर श्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही सरकार बनी।

कुमार ने अप्रैल 2016 में राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू कर अपना वादा पूरा कर दिया। राज्य के प्रत्येक घर को बिजली मिल गई। हालांकि अपनी शर्तों पर काम करने के लिए जाने जाने वाले कुमार ने वर्ष 2017 में महागठबंधन से नाता तोड़ पुन: राजग में शामिल हो गए।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी सात निश्चय योजना के तहत किए गए लगभग वादों को पूरा कर सात निश्चय पार्ट-2 के तहत भविष्य की विकास योजना की लकीर खींच कर वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में है और जदयू को पूर्ण विश्वास है कि जनता इस बार कुमार में अपना भरोसा बरकरार रखेगी। इस बिहार में जदयू के निरंतर बढ़े जनाधार और सीटों की संख्या बताते हैं कि इस बार के चुनाव में भी नीतीश कुमार को चुनौती दे पाना किसी के लिए भी आसान नहीं होगा।