बिहार। आइए आज आपको बिहार लिए चलते हैं, जानते हैं वहां के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनाें कर क्या रहे हैं। चलिए हम ही आपको बता दें कि सीएम नीतीश कहां व्यस्त हैं, जी हां बिहार में इसी वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे हुए हैं नितीश बाबू। यही नहीं पिछले कुछ दिनों से बिहार विधानसभा में कई प्रस्ताव पारित किए गए हैं। गुरुवार को नीतीश कुमार ने विधानसभा में जातिगत जनगणना आधारित एक प्रस्ताव पास कराया है, (इसका सीधा अर्थ है कि अब राज्य में जातियाें की जनगणना भी की जाएगी) दाे दिन पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि बिहार में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) लागू नहीं होगा।
इसके अलावा राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) को भी 2010 के पुराने प्रारूप के अनुरूप ही लागू किया जाएगा। बिहार विधानसभा में मंगलवार को यह प्रस्ताव पारित किया गया। नीतीश पहले ही इस संबंध में सरकार का पक्ष स्पष्ट कर चुके थे। नीतीश कुमार ने कहा कि प्रदेश सरकार ने केंद्र को एनपीआर के फॉर्म में विवादित खंड को हटाने का निवेदन किया है। वहीं नीतीश कुमार ने राज्य में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर अभी रुख साफ नहीं किया है।
राज्य में पिछड़ा वर्ग को एक साथ लाने की मुख्यमंत्री की बड़ी चाल
बिहार में नीतीश ने पिछड़े वर्ग को साथ लाने के लिए एक बड़ी चाल चली है। राजनीतिक जानकार यह मानते हैं कि नीतीश खुद को पिछड़ों के एक ऐसे नेता के रूप में प्रशस्त करने का प्रयास कर रहे हैं, जिसकी ताकत आगामी विधानसभा चुनाव के दौरान विपक्ष समेत सभी दलों पर दबाव बनाया जा सके। बिहार में गुरुवार को जाति आधारित जनगणना को लेकर विधानसभा में एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पास कराया गया है।
प्रदेश विधानसभा के सभी दलों ने राज्य में साल 2021 में जातीय आधार पर जनगणना कराने को मंजूरी दी है। सरकार के इस फैसले को सत्तापत्र के साथ-साथ विपक्ष के नेताओं का भी पूरा समर्थन मिला है। हालांकि राजनीतिक जानकार यह मानते हैं कि नीतीश पिछड़े वोटरों के बीच कमजोर नहीं हुए हैं, लेकिन तेजस्वी यादव के बढ़ते प्रभाव के बीच ही नीतीश को जातियों का विश्वासपात्र बनना जरूरी लगा है। इसी बड़ी वजह के आधार में जातिगत जनगणना की पटकथा लिखी गई है।
जेडीयू और आरजेडी इस मामले में आ गए हैं एक साथ
नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और लालू प्रसाद यादव की पार्टी जेडीयू जातिगत जनगणना के मामले पर दोनों ने एक राय बन गई है जो कि भारतीय जनता पार्टी के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। एक दूसरे के खिलाफ रहने वाले आरजेडी और जेडीयू इस बार इस मुद्दे पर एक साथ खड़े दिखे हैं। चुनावी साल में हुए इस फैसले के कई मायने भी हैं, पर सबसे बड़ा अर्थ उस चुनाव से जुड़ता है जिसे इस साल के अंत में कराया जाना है।
माना जा रहा है कि नीतीश इस फैसले से खुद को पिछड़ों के एक ऐसे विश्वासपात्र के रूप में प्रशस्त करना चाहते हैं, जो कि सिर्फ विपक्ष ही नहीं भाजपा को भी चुनावी समर में अपनी ताकत का एहसास करा सके। बिहार में इस साल के अंत तक विधानसभा का चुनाव होना है। सियासत की जैसी स्थितियां हैं, उन स्थितियों में यह माना जा रहा है कि नीतीश इस बार भी एनडीए गठबंधन के साथ अपनी दावेदारी करेंगे।
पिछड़े और अति पिछड़े दल के सबसे बड़ा नेता बनना चाहते हैं नीतीश
बिहार विधानसभा के चुनाव इसी वर्ष अक्टूबर माह में होने हैं उससे पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्य में पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग के सबसे बड़े नेता के रूप में उभरना जा रहे हैं। हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव में नीतीश पिछड़े वर्ग के नेता के रूप में उभर कर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे थे। राज्य में पिछले कुछ समय से लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी ने भी पिछड़े वर्ग के नेता रूप में अपना दावा ठोक रखा है। नीतीश कुमार को लगता है कि तेजस्वी यादव आगे निकलने की कोशिश कर रहे हैं। यहां हम आपको बता दें कि नीतीश 2015 के चुनाव में आरजेडी के साथ महागठबंधन के नेता के रूप में ही सत्ता में आए थे।
इसके बाद परोक्ष रूप से बीजेपी ने जेडीयू को समर्थन दिया तो सत्ता के केंद्र में बैठी आरजेडी विपक्षी बन गई। नीतीश के बीजेपी के साथ जाने पर आरजेडी ने उन पर पिछड़ी और दलित बिरादरी के उन वोटरों के साथ धोखाधड़ी का आरोप लगाया, जिसने महागठबंधन को वोट दिया था। बीजेपी के समर्थन से दोबारा सीएम बनने के बाद से ही नीतीश पिछड़े वोटरों को खुश करने की तमाम कोशिशों में लगे रहे। दूसरी ओर बिहार में लंबे वक्त से पिछड़ी जाति के वोटरों का सत्ता में दखल देखने को मिला है, जातियों के वोट प्रतिशत की बात करें तो बिहार में 40 फीसदी से अधिक ओबीसी या ईबीसी वोटर हैं। यही जातियां नीतीश कुमार की कोर वोटर रहीं हैं जो कि काफी समय से बिहार में जातिगत जनगणना की मांग कर रही है।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार