Warning: Constant WP_MEMORY_LIMIT already defined in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/18-22/wp-config.php on line 46
बिहार में 32 साल सत्ता में रही कांग्रेस क्यों होती गई कमजोर - Sabguru News
होम Bihar बिहार में 32 साल सत्ता में रही कांग्रेस क्यों होती गई कमजोर

बिहार में 32 साल सत्ता में रही कांग्रेस क्यों होती गई कमजोर

0
बिहार में 32 साल सत्ता में रही कांग्रेस क्यों होती गई कमजोर

पटना। बिहार में लगभग 32 वर्ष तक मजबूती के साथ सत्ता में रही कांग्रेस संपूर्ण क्रांति, क्षेत्रीय दलों का उभार, वामपंथ का प्रभाव और कथित खेमाबंदी के कारण धीरे-धीरे कमजोर होती चली गई।

आजादी के बाद बिहार में वर्ष 1952 में 276 सीटों के लिए हुए पहले विधानसभा चुनाव में 239 यानी 86.55 प्रतिशत सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस महज 38 साल बाद 1990 में 324 सीटों के लिए हुए विधानसभा चुनाव में 71 यानी लगभग 22 प्रतिशत सीटों के आंकड़े पर ही सिमट कर रह गई।

इतना ही नहीं, आने वाले वर्षों में इसके कमजोर पड़ते जनाधार को पूरे देश ने देखा। 1995 के चुनाव में तो इसकी सीट का गणित 29 सीट यानी लगभग नौ प्रतिशत सीट पर रुक गया। 2010 में 243 सीटों पर हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को महज चार सीटें यानी 1.65 प्रतिशत सीट ही मिल पाई।

दरअसल, कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार के विरोध में वर्ष 1975 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में बिहार की धरती से शुरू हुई ‘संपूर्ण क्रांति’ को दबाने के लिए वर्ष 1977 में लागू राष्ट्रपति शासन में बिहार में सातवीं विधानसभा का चुनाव कराया गया।

318 सीटों पर हुए इस चुनाव में 214 सीटें जीतने वाली जनता पार्टी ने पहली बार कांग्रेस के वर्चस्व को चुनौती दी। जनता पार्टी ने कांग्रेस के विजय रथ को महज 57 सीटों पर ही रोक दिया। इस चुनाव में निर्दलीय को 25 और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) को 21 सीटें मिली थीं।

ऐसा नहीं है कि इतने खराब प्रदर्शन के बाद कांग्रेस हमेशा के लिए धराशायी हो गई। पार्टी में विभाजन के बावजूद कांग्रेस के एक गुट कांग्रेस (आई) के बैनतर तले डॉ. जगन्नाथ मिश्रा के नेतृत्व में वह वर्ष 1980 के विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत से फिर से उठ खड़ी हुई।

324 सीटों के लिए हुए इस चुनाव में कांग्रेस (आई) को 169 सीटें मिलीं जबकि जनता दल (एस) चरण ग्रुप को 42 और भाकपा को 23 सीटें मिलीं। कांग्रेस का कारवां यहीं नहीं रुका 1985 के चुनाव में उसने और बेहतर प्रदर्शन किया और 196 सीटों पर जीत दर्ज की वहीं लोक दल को 46 और आईएनडी को 29 सीटें मिलीं। लेकिन, इसके बाद के चुनावों में जो हुआ उसने कांग्रेस को पूरी तरह से कमजोर कर दिया और वह फिर उठ नहीं पाई।

क्षेत्रीय दलों की अबतक की छोटी-मोटी चुनौतियों ने वर्ष 1990 के चुनाव में वह कर दिखाया, जिसकी कल्पना शायद कांग्रेस ने नहीं की होगी। इस चुनाव में जनता दल ने 122 सीटें जीतकर कांग्रेस (71) को न केवल दूसरे नंबर पर बल्कि आने वाले सालों में शायद हमेशा के लिए हाशिये पर धकेल दिया।

लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में सरकार का गठन हुआ। इस चुनाव के जरिये बिहार की राजनीति में पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने भी दस्तक दी और वह 39 सीटें जीतने में कामयाब रही। वर्ष 1995 के विधानसभा चुनाव में जहां जनता दल ने 167 सीटें जीतकर फिर से सरकार बनाई वहीं महज 29 सीटें हासिल कर कांग्रेस तीसरे नंबर पर पहुंच गई। भाजपा को 41 सीटें मिलीं।

इससे पूर्व लालू प्रसाद यादव पर चारा घोटाले में शामिल होने का आरोप लगा तो जनता दल टूट गया और 05 जुलाई 1997 को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) गठन किया गया। सरकार बचाने के लिए यादव की पत्नी राबड़ी देवी के नेतृत्व में 25 जुलाई 1997 को राजद की सरकार बनी। बिहार में साल 2000 को कई मायने में याद रखा जाएगा।

बिहार से टूटकर अलग राज्य झारखंड का गठन हुआ। इससे बिहार विधानसभा में सीटों की संख्या 324 से घटकर 243 हो गई। इस चुनाव में राजद ने 103 सीटें हासिल की और भाजपा ने 39 सीटें जीतीं। वहीं, वर्ष 1994 में जनता दल से टूटकर जॉर्ज फर्नांडिस एवं नीतीश कुमार के नेतृत्व में बनी समता पार्टी ने वर्ष 2000 के चुनाव में 28 सीटें जीतकर बिहार की राजनीति में दस्तक दे दी।

बिहार में फरवरी 2005 में हुई 13वीं विधानसभा के चुनाव में क्षेत्रीय स्तर पर गठबंधन की राजनीति का प्रयोग शुरू हुआ। एक तरफ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और दूसरी तरफ राजद और कांग्रेस। वर्ष 2003 में समता पार्टी के विलय से बने जनता दल यूनाइटेड और भाजपा के राजग ने इस चुनाव में कुल 92 सीटें जीती, जिनमें जदयू की 55 और भाजपा की 37 सीटें शामिल हैं। वहीं, राजद ने 75 और कांग्रेस ने केवल 10 सीटें जीती। हालांकि बहुमत नहीं होने के कारण इस बार किसी भी गठबंधन की सरकार नहीं बन सकी और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया।

इसके बाद पुन: नवंबर 2005 में हुए चुनाव में राजग ने 143 सीटें जीतकर श्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनाई। इनमें जदयू की 88 और भाजपा की 55 सीटें शामिल हैं। वहीं, राजद को 54, कांग्रेस को 10 और रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) को 10 सीटें मिलीं।

बिहार में 2010 का विधानसभा चुनाव राजग के लिए स्वर्णिम काल कहा जा सकता है जब जदयू की 115 और भाजपा की 91 सीटें मिलाकर उसके खाते में जीत की कुल 206 सीटें गईं। वहीं, राजद ने 22 और लोजपा ने तीन सीटें जीती। इस बार कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ा तो उसे महज चार सीटें ही मिल पाईं।

बिहार में वर्ष 2015 में राजनीतिक समीकरण बदला और इस बार जदयू ने राजग से अलग होकर राजद एवं कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाया और चुनाव लड़ा। इस चुनाव में जदयू को 71, राजद को 80 और कांग्रेस को 27 सीटें मिली जबकि भाजपा को 53 सीटों से संतोष करना पड़ा।

नीतीश कुमार की अगुवाई में बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी। हालांकि 2017 में जदयू महागठबंधन से नाता तोड़ फिर से राजग में शामिल हो गया और फिर से नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजग की सरकार का गठन हुआ। इस तरह कभी उगते भारत का सूरज समझी जाने वाली कांग्रेस आज बिहार की राजनीति में दूर हाशिये पर टिमटिमाता हुआ दिख रहा है।

जानकार मानते हैं कि कांग्रेस में आंतरिक उठा-पटक और कलह ने उसे बहुत हद तक कमजोर बनाया है। संभवत: कांग्रेस की अंदरुनी गुटबंदी का ही नतीजा रहा है कि बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह के निधन के बाद वर्ष 1961 से 1990 के पहले तक के 29 साल में पार्टी को 21 बार मुख्यमंत्री बदलना पड़ा।