नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने गुजरात के बिलकिस बानो बलात्कार मामले में पीड़िता की मुआवजे की रकम बढ़ाए जाने संबंधी याचिका पर गुजरात सरकार से छह हफ्ते में जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायाधीश एएम खानविलकर और न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने सोमवार को याचिकाकर्ता बिलकिस बानो और गुजरात सरकार के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह मुआवजे की राशि बढ़ाए जाने के संबंध में छह सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करे।
न्यायालय ने गुजरात सरकार से उस अनुरोध पर भी जल्द जवाब दाखिल करने को कहा है कि इस मामले में दोषी पुलिसवालों एवं चिकित्सकों के खिलाफ अब तक क्या कार्रवाई हुई है? पिछली सुनवाई में न्यायालय ने गुजरात सरकार को नोटिस जारी करने से इन्कार कर दिया था। न्यायालय ने याचिकाकर्ता को याचिका की कॉपी गुजरात सरकार को देने का भी निर्देश दिया।
वर्ष 2002 के गुजरात दंगों में बिलकिस बानो उपद्रवियों की सामूहिक हवस की शिकार बनी थी और उसके परिवार के तीन सदस्य मारे गए थे। वह उस वक्त प्रेगनेंट थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार तीन मार्च 2002 को अहमदाबाद के निकट रंधिकपुर गांव में बिलकिस बानो के परिवार पर एक भीड़ ने हमला किया था और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी।
अहमदाबाद में मामले की सुनवाई शुरू हुई थी। हालांकि बिलकिस बानो के गवाहों को नुकसान पहुंचाये जाने और सबूतों से छेड़छाड़ किये जाने की आशंकाएं जताये जाने के बाद उच्चतम न्यायालय ने मामले को अगस्त 2004 में मुम्बई स्थानांतरित कर दिया था।
एक विशेष अदालत ने 21 जनवरी, 2008 को मामले में 11 लोगों को दोषी ठहराया था और आजीवन कारावास की सजा दी थी। इसके बाद इन लोगों ने खुद को दोषी ठहराए जाने को चुनौती देते हुए बम्बई उच्च न्यायालय का रुख किया और निचली अदालत के फैसले को खारिज करने का आग्रह किया।
सीबीआई ने भी उच्च न्यायालय में एक अपील दायर करके इस आधार पर तीन दोषियों को मौत की सजा दिए जाने का आग्रह किया था कि वे इस मामले में मुख्य अपराधी हैं।
बम्बई उच्च न्यायालय ने सामूहिक बलात्कार मामले में 12 लोगों की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा था, जबकि पुलिसकर्मियों और डॉक्टरों समेत सात लोगों को बरी किये जाने के फैसले को खारिज कर दिया था।
पीठ ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 218 के तहत अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं करने और सबूतों से छेड़छाड़ (धारा 201) पर पांच पुलिसकर्मियों और दो डॉक्टरों समेत सात लोगों को दोषी ठहराया था।
दोषी पुलिसकर्मियों और डॉक्टरों में नरपत सिंह, इदरिस अब्दुल सैयद, बीकाभाई पटेल, रामसिंह भाभोर, सोमभाई गोरी, अरूण कुमार प्रसाद (डॉक्टर) और संगीता कुमार प्रसाद (डॉक्टर) शामिल हैं।