Sarojini Naidu (13 February 1894 – 2 March 1979)
भारत कोकिला | के नाम से प्रसिद्ध है श्रीमती सरोजनी नायडू। वे एक जन्मजात कवियित्री थीं और अंग्रेजी भाषा पर उनका इतना अधिकार था कि उनकी 12 वर्ष की आयु में लिखी गई कविताओं की भी लोगों ने बड़ी प्रशंसा की है। वे भारतीय संस्कृति को ही सर्वश्रेष्ठ मानती थी । उसके लिए उन्हें बड़ा गौरव था। वे कहती थी ज्ञान की कोई सीमा नहीं है और संकुचितता को त्याग कर संसार का सब तरह का जितना अधिक ज्ञान प्राप्त किया जा सके, करना अच्छा ही है। कोई विदेशी सभ्य संस्कृति की धुन में अपनी सभ्यता को भूल जाए तो ,वह एक अपराध होगा।
एक संपन्न घराने की सुकमार और सुसंस्कृत महिला होते हुए भी उन्होंने देश सेवा के उस मार्ग को चुना जिसमें त्याग और तपस्या की अनिवार्य आवश्यकता होती है। राजनीति के क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले श्रीमती सरोजिनी ने इसके उतार-चढ़ाव पर अच्छी तरह से विचार कर लिया था ।वे जानती थी कि इस प्रकार का परिवर्तन हो जाने पर आज जो अंग्रेज उनके प्रशंसक और पुरस्कर्ता रहे हैं वे उनके विरोधी बन जाएंगे।
राजनीति के क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति के लिए संभव नहीं होता कि अन्याय के विरुद्ध शास्त्र लेकर खड़ा हो जाए और उसे उचित दंड दे । पर उससे संपर्क न रखना,उसकी नीति का खुले रूप में विरोध करना एक सच्चे मनुष्य के लिए संभव नहीं है। श्रीमती नायडू ने उसी मार्ग का अवलंबन किया और भारत सरकार की अन्यायपूर्ण नीति के प्रति अपनी विरोधी भावना उसकी प्रदान की हुई उपाधि को लौटाकर स्पष्ट कर दी। भारत के राजनीतिक संघर्ष में भाग लेकर और बड़े-बड़े महत्वपूर्ण कार्य में सफलता प्राप्त करके श्रीमती सरोजिनी ने यह सिद्ध कर दिया है कि यदि अवसर मिले तो भारतीय स्त्रियां भी प्रत्येक क्षेत्र में अपनी योग्यता प्रदर्शित कर सकती हैं।
श्रीमती सरोजिनी की सेवाओं को देखते हुए ही सन् 1925 में जयपुर में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन का अध्यक्ष इन्हीं को चुना गया था। भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में श्रीमती नायडू की सबसे बड़ी सेवा सांप्रदायिक एकता की स्थापना थी। हम तो जानते हैं कि श्रीमती सरोजिनी एक कवयित्री हैं। उनकी तीन कविताओं की पुस्तकें इंग्लैंड में प्रकाशित हुई है–
1. गोल्डन थ्रेशोल्ड( सुनहरी देहरी )
2.बर्ड ऑफ टाइम ( कालपखेरू)
3. ब्रोकन विंग ( भगन पंख)
ये तीनों पुस्तकें 1905 से 1917 तक रची गई हैं।
एक ऐसी सुकुमार और भावुक कवियत्री का, जिसको लोग प्रायः ” स्वप्न देश की रानी” कहा करते थे, सक्रिय राजनीतिक संघर्ष के मैदान में उतर आना एक विशेष घटना है। 2 मार्च सन 1949 को 70 वर्ष की आयु में सरोजिनी जी का देहावसान हो गया।