जयपुर/अजमेर। राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को उन जिलों में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है जिन्हें पार्टी का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है।
राज्य में जयपुर, अलवर, अजमेर, कोटा को भाजपा का गढ़ माना जाता है। इन जिलों में पार्टी हमेशा से अच्छा प्रदर्शन करती आई है। वर्ष 2013 में तो पार्टी ने इन जिलों की अधिकतर सीटों पर जीत दर्ज की ही थी।
साल 2008 में जब कांग्रेस ने राज्य में सरकार बनाई थी, उस समय भी भाजपा जयपुर जिले की 19 में से 10, अजमेर की आठ में से तीन, अलवर की 11 में से आठ और कोटा की छह में से तीन सीटें जीती थीं।
इस बार भाजपा इन जिलों में अलग-अलग कारणों से मुश्किल में दिख रही है। बात जयपुर की करें, तो इस जिले 19 सीटें हैं और पार्टी को जयपुर शहर में गायों की मौत, मंदिर हटाए जाने जैसे मुद्दों के कारण जनता की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है।
पार्टी कार्यकर्ता खुद इस बार जयपुर शहर की ज्यादातर सीटों को लेकर बहुत आशान्वित नहीं हैं। पार्टी के मौजूदा विधायकों की आपसी खींचतान भी चर्चा का विषय है। कई मौकों पर तो इनके बीच सार्वजनिक तौर पर विवाद हुए हैं।
अलवर में कठिन होती जा रही जीत
अलवर जिले में 11 सीटे हैं और इस जिले में उन्मादी हिंसा (मॉब लिंचिंग) और गोतस्करी जैसे मामलों के कारण पार्टी मुश्किल में दिख रही है। साथ कुछ विधायकों के बयानों या कार्यकलापों के कारण जनता में पार्टी से नाराज है।
फरवरी में हुए लोकसभा उपचुनाव में अलवर सीट पर भाजपा के जसवंत सिंह यादव कांग्रेस के करण सिंह यादव से हार गए थे और लोकसभा क्षेत्र में आने वाले आठों विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा कांग्रेस से पीछे रही थी।
अजमेर में उपचुनाव जैसे हालात
अजमेर में मौजूदा बीजेपी विधायकों की खींचतान पार्टी के लिए परेशानी का कारण है। लोकसभा उपचुनाव में पार्टी अजमेर सीट भी हार गई थी और सभी विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस से पीछे रही थी। इस सीट पर भाजपा के राम स्वरूप लांबा को कांग्रेस के रघु शर्मा से हार का सामना करना पड़ा था। फ़िल्म पद्मावत का विरोध और आनंदपाल मुठभेड़ के कारण राजपूत समाज में भाजपा से नाराज रहा।
इस बार प्रत्याशी का विरोध दबाने के प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। भीतरघात का खतरा बरकरार है। अजमेर जिले में टिकिट वितरण के दौरान पनपी खटास परिणामों को प्रभावित कर सकती है। अजमेर उत्तर और दक्षिण सीट पर पूर्व मंत्रियों को फिर मौका दिया गया है। जबकि इन दोनों सीटों पर प्रत्याशी बदले जाने की मांग जोरदार तरीके से उठी थी। पार्टी ने वर्तमान विधायकों को ही दोहराकर उम्मीदवार बना दिया इससे भी पार्टी के भीतर बडा खेमा नाराज होकर चुप्पी साधे हुए है। खासकर ऐसे बीजेपी नेता जो टिकट पाने के लिए कतार में थे उनमें से अधिकतर चुनाव प्रचार से दूरी बनाए हुए हैं।
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