महाराष्ट्र। आज यानी 26 नवंबर को भारतीय जनता पार्टी के लिए इतिहास में सबसे खराब दिन माना जा रहा है। सबसे पहले सुबह सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में आनन-फानन में बनाई गई सरकार और देवेंद्र फडणवीस को बुधवार शाम 5 बजे फ्लोर टेस्ट कराने के आदेश दिए थे। उसके बाद फडणवीस और भाजपा के लिए महाराष्ट्र सरकार बनाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे एनसीपी के नेता अजीत पवार भी इस्तीफा देकर अपने चाचा शरद पवार के पास लौट गए।
यही नहीं शाम 4 बजे होते-होते फ्लोर टेस्ट कराने से पहले ही मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले देवेंद्र फडणवीस ने इस्तीफा दे दिया है। आज की यह तीन महत्वपूर्ण घटनाएं भाजपा के लिए राजनीति में बड़ी हार मानी जा रही है। फडणवीस ने इस्तीफे का एलान प्रेस कॉन्फ्रेंस में किया और फिर राज्यपाल से मिलकर उन्हें अपना इस्तीफा सौंप दिया है। देवेंद्र फडणवीस इस्तीफे का एलान करते हुए कहा कि हम मजबूत विपक्ष का काम करेंगे। तीन पहियों वाली सरकार नहीं चलेगी।
संविधान-नैतिकता को दरकिनार कर ली गई शपथ फडणवीस काे पड़ी भारी
संविधान और नैतिकता को दरकिनार कर ली गई शपथ भाजपा को भारी पड़ गई। देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार दोनों नेताओं को 23 नवंबर की सुबह करीब साढ़े सात बजे राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने शपथ दिलाई थी। राज्यपाल के फैसले को शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। जिसके बाद आज सुबह करीब साढ़े 10 बजे सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कल शाम पांच बजे तक विधायकों को शपथ दिलाई जाए और इसके ठीक बाद फ्लोर टेस्ट हो। अब बहुमत साबित किए जाने से पहले ही अजित पवार ने इस्तीफा दे दिया। इसके ठीक बाद देवेंद्र फडणवीस ने अपने इस्तीफा का एलान किया।
महाराष्ट्र में सत्ता के लालच में अमित शाह जल्दबाजी कर बैठे
महाराष्ट्र में सत्ता पाने के लिए जिस प्रकार भाजपा आलाकमान और पार्टी के चाणक्य यानी अमित शाह की जल्दबाजी भारी पड़ गई। अब तक अमित शाह कई राज्यों में यह फार्मूला अपनाते रहे हैं उसमें उनको सफलता भी मिल गई थी। लेकिन इस बार अमित शाह का पाला महाराष्ट्र और शिवसेना से था। अमित शाह को महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए ‘वेट एंड वॉच’ की नीति अपनानी चाहिए थी। फ्लोर टेस्ट करवाने से पहले जैसे देवेंद्र फडणवीस ने इस्तीफा दिया है उससे तो अमित शाह की जबरदस्त हार मानी जा रही है। फर्निश को आनन-फानन में शपथ दिलाने में अमित शाह की सबसे बड़ी भूमिका रही है उन्होंने न नीति देखी न नैतिकता देखी। पूरे मामले में महाराष्ट्र और देश भर में शिवसेना पार्टी के लिए लहर बन गई थी।
शरद पवार की ‘पावरफुल राजनीति’
अपने भतीजे अजीत पवार के देवेंद्र फडणवीस से मिलकर उप मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने आक्रामक नीति अपनाई और उसमें सफल भी हुए। अपने 50 साल से ज्यादा लंबे राजनीतिक अनुभव के जरिए सिर्फ 24 घंटे के भीतर एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने अपने विधायकों को एकजुट कर लिया और जो विधायक लापता थे न सिर्फ उन्हें ढूंढ निकाला बल्कि उन्हें एक बार फिर अपने पाले में भी करने में कामयाब नजर आए।
जब एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना ने बीजेपी के सरकार गठन के खिलाफ मोर्चा खोला तो शरद पवार के नेतृत्व में एनसीपी कार्यकर्ताओं ने एक-एक विधायकों को दिल्ली से सटे गुरुग्राम से लेकर महाराष्ट्र तक में ढूंढ निकाला। माना जा रहा है कि विपक्ष को एकजुट रखने के लिए शरद पवार के आदेश पर एनसीपी कार्यकर्ताओं ने ऐसे विधायकों के लिए सर्च ऐंड रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू कर दिया था।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार