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गहलोत टीका टिप्पणी करने के बजाय अपना घर संभाले : सतीश पूनिया - Sabguru News
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गहलोत टीका टिप्पणी करने के बजाय अपना घर संभाले : सतीश पूनिया

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गहलोत टीका टिप्पणी करने के बजाय अपना घर संभाले : सतीश पूनिया

जयपुर। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष ड़ा. सतीश पूनिया ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचन पर दिए गए बयान की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि गहलोत इस तरह की टीका-टिप्पणी करने से पहले अपनी पार्टी के हालात सुधारने में ध्यान लगाए।

पूनिया ने आज यहां एक बयान में कहा कि गहलोत एक परिपक्व और अनुभवी राजनेता हैं, लेकिन इन दिनों सरकार और पार्टी के भीतर जो घट रहा है, उसके कारण उनके बयानों में बौखलाहट और असुरक्षा साफ देखी जा सकती है।

राजनीति में पुत्र की हार निश्चित रूप में बड़ा सदमा होता है, शायद उससे वह उबर नहीं पा रहे हैं। अपने द्वारा कही गई प्रमाणित बातों से मुकरना जैसा, पाक विस्थापितों के बारे में शायद इस तरह के नेताओं के लिए बड़ा मुश्किल होता होगा। मुख्यमंत्री गहलोत ने शायद किसी मजबूरी के चलते छाती पर पत्थर यह रखकर किया होगा। मीडिया को धमकाया कि विज्ञापन चाहिए तो खबरें दिखानी पडेंगी आदि।

मुझे निराशा हुई जब उन्होंने मेरे बारे में कहा कि नए नए मुल्ला हैं, ज्यादा बांग दे रहे हैं, जबकि मैं राजस्थान के सभी दलों के नेताओं के प्रति सम्मान एवं कृतज्ञता का भाव रखता हूं, लेकिन इस वक्तव्य ने मुझे भी आहत किया। इन दिनों पाक विस्थापितों के मुद्दे पर उनका तुष्टीकरण ताज्जुब की बात है।

उन्होंने कहा कि गहलोत ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के निवार्चन के संबंध में दिए बयान और आचरण उनके व्यक्तित्व से मेल नहीं खाता है। कदाचित उनको लगता होगा कि ऐसा करने से ही दिल्ली दरबार ख़ुश होगा और कुर्सी सलामत रहेगी। इसी कड़ी में उनका कल का बयान बेहद अपरिपक्वता का परिचायक है, जबकि भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्वाचन के बाद उनका यह कहना कि ‘माथुर …..क्या नाम है उनका ….ओमप्रकाश माथुर उनको बनाया जाना चाहिए था।’

उन्होंने कहा कि राज्य में न गहलोत की सरकार ढंग से चल रही है, न उनकी पार्टी ढंग से चल रही है। उनके और उप-मुख्यमंत्री के बीच वाक् युद्ध और सत्ता का शीत युद्ध जग-जाहिर है। राजनीति की सामान्य जानकारी रखने वाला भी बता देगा कि राजस्थान में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है और इस युद्ध से राजस्थान की जनता बदहाल हो रही है। कहीं कर्जे से, कहीं बदहाल अस्पतालों से, कहीं बदमाशों के तमंचों से, कहीं सड़क हादसों से, कहीं बेरोजगारी के भय से। सब तरफ एक असुरक्षा और अराजकता का वातावरण है।

शायद यह मुख्यमंत्री गहलोत के सियासत का एक तरीका है कि बयानों से लोगों का ध्यान उलझाए रखो, परन्तु इस बार ऐसा नहीं होगा। माननीय पाक विस्थापित भी अपना कानूनी हक लेकर रहेंगे और राजस्थान की बाक़ी अवाम को भी उनका हक मिलेगा। बहुजन समाज पार्टी और निर्दलियों की बैशाखी से आपका संख्या का जुगाड़ तो बेशक़ पूरा हो गया होगा, लेकिन इस बार आपने जन मानस के समक्ष नैतिक साहस और समर्थन खो दिया है।

डॉ पूनिया ने कहा कि भाजपा कैडर बेस्ड पार्टी हैं, जिसमें सभी कार्यकर्ताओं को समय-समय पर जिम्मेदारियां मिलती रहती हैं। पार्टी ने लोकतांत्रिक तरीके से संगठनात्मक चुनाव सम्पन्न करवा कर अपने लिए नये अध्यक्ष के रूप में जेपी नड्डा का चयन किया हैं। भाजपा में बूथ स्तर पदाधिकारी से लेकर राष्ट्रीय पदाधिकारी तक सभी कार्यकर्ता भाव से कार्य करते हैं। सभी को सम्मान दिया जाता हैं। यही कारण है कि आज भाजपा विश्व की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी हैं।

भाजपा में साधारण से साधारण कार्यकर्ता भी राष्ट्रीय अध्यक्ष व अनेक महत्वपूर्ण पदों पर पहुंच सकता है, जबकि कांग्रेस में नेहरू-गांधी परिवार के अलावा कोई दूसरा परिवार, व्यक्ति कांग्रेस का नेतृत्व नहीं कर सकता। शायद मुख्यमन्त्री गहलोत कांग्रेस के इस परिवारवाद से ग्रस्त हैं।

पूनिया ने मुख्यमंत्री गहलोत से पूछा कि पिछले 20 वर्षों में कांग्रेस ने कितने नेताओं को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने का मौका दिया हैं, जबकि भाजपा में पिछले 20 वर्षों मे 10 राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं, इसीलिए वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्वाचन को लेकर अपनी हताशा बयान कर रहे हैं, मुख्यमंत्री गहलोत प्रदेश में कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व तो अपने मनमाफिक तय नहीं कर सके और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के बारे में अनर्गल बयान दे रहे हैं।

प्रदेशाध्यक्ष पूनियां ने कहा कि मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा प्रदेश की जनता से किए गए वादो को पूरा करने के बजाय वे प्रदेश की जनता को भ्रमित कर रहे हैं और अपनी सरकार की नाकामियों को छिपाने के लिए केन्द्र सरकार पर बजट उपलब्ध नहीं कराने का बार-बार विलाप कर रहे हैं।

डाॅ. पूनिया ने राहुल गांधी की प्रस्तावित रैली पर तंज कसते हुए कहा कि वे कितनी ही रैलियां कर लें, पहले उन्हें राजनीति की पाठशाला में स्वयं को परिपक्व करना चाहिए। केन्द्र सरकार पर तथ्यहीन आरोप लगाकर वे लोकप्रिय होना चाहते हैं, किन्तु जनता उन्हें वैचारिक रूप से नकार रही हैं।

वे देश की जिन समस्याओं की बात अक्सर किया करते हैं, मेरा उनसे ये सवाल हैं कि जब उनकी पार्टी ने ही 50 वर्षोें तक देश पर शासन किया हैं तो इन समस्याओं का समाधान क्यों नहीं किया गया। कांग्रेस पार्टी के पहले चुनावी घोषणा पत्र से लेकर अंतिम घोषणा पत्र तक ये गरीबी मिटाओं, बेरोजगारी खत्म करो जैसे नारे लगाते रहे, लेकिन वास्तविकता में इन्होंने इस क्षेत्र में कोई कार्य किया ही नहीं।