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भाजपा ने जीता उपचुनाव, गोपालन मंत्री देवासी के लिए इसलिए मायने रखती है ये जीत
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भाजपा ने जीता उपचुनाव, गोपालन मंत्री देवासी के लिए इसलिए मायने रखती है ये जीत

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भाजपा ने जीता उपचुनाव, गोपालन मंत्री देवासी के लिए इसलिए मायने रखती है ये जीत
gopalan rajyamntri otaram dewasi with bjp district prez lumbaram chaudhary and bjymsirohi district prez hemant purohit after win in bypol
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सबगुरु न्यूज-सिरोही। सिरोही पंचायत समिति के वार्ड सात के उपचुनाव  में भाजपा ने कांग्रेस के अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को भारी मतों से हराया। इस सीट को जीतने के बाद विशेषकर गोपालन मंत्री ओटाराम देवासी को आॅक्सीजन मिली है।

वैसे जिलाध्यक्ष लुम्बाराम चौधरी की भी 2018 में टिकिट की दावेदारी इस सीट के जीतने और हारने पर निर्भर थी। अब वो भी ओटाराम देवासी के समक्ष अपनी दावेदारी ठोकने की स्थिति में आ चुके हैं। यही कारण है कि गोपालन मंत्री ओटाराम देवासी ने इस जीत का जुलूस सिरोही जिला मुख्यालय पर रखने का निर्णय किया ताकि इस जीत से लगने वाले कयासों का पूरे जिले और प्रदेश में संदेश पहुंचाया जा सके।

उपचुनाव की मतगणना गुरुवार सवेरे आठ बजे शुरू हुई। छह बूथों की मतगणना छह राउण्ड में हुई। 11 जून को हुए मतदान में तीन हजार 445 मत पडे थे। भाजपा प्रत्याशी योगेश्वरी देवाी को 2116 तथा कांग्रेस प्रत्याशी मालूदेवी देवासी को 1260 मत मिले। वहीं 145 वोट नोट में गिरे। इस परिणाम ने सिरोही विधानसभा में गोपालन मंत्री ओटाराम देवासी और जिलाध्यक्ष लुम्बाराम चैधरी को आॅक्सीजन दी है। लेकिन इस जीत के पीछे भाजयुमो और महिला मोर्चा की मेहनत को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

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मीडिया रिपोर्ट्स में यहां टिकिट भाजयुमो जिलाध्यक्ष हेमंत पुरोहित के कहने पर दी गई। योगश्वरी देवी उन्हीं के गांव की थी। वहीं कुछ लोग भाजपा महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष रक्षा भंडारी की साख से भी इसे जोड कर देख रहे थे, लेकिन हकीकत यह है कि उनका इस सीट से प्रत्यक्ष कोई लेना-देना नहीं था। पिता की साख से जुड़ा होने के कारण जिला उपप्रमुख कानाराम चौधरी फिर भी इस सीट को जिताने के लिए भाजपा की सामूहिक मेहनत काम आई।

अब इसका प्रत्यक्ष फायदा और जीत का सेहरा गोपालन मंत्री और जिलाध्यक्ष के सिर भले ही बंधे लेकिन, इन सिपाहियों के जमीनी काम को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

हारते तो देवासी पर होता सबसे ज्यादा असर

यह सीट भाजपा को जीतनी कितनी महत्वपूर्ण थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां हारने के बाद जिले में पार्टी में ही विरोध झेल रहे ओटाराम देवासी को भी टिकिट लाने में पसीने आ जाते। वहीं जिलाध्यक्ष लुम्बाराम चौधरी भी 2018 की दौड में बाहर हो जाते।

इसका प्रमुख कारण यह है कि जिस जातीय समीकरण पर ओटाराम देवासी को टिकिट मिल रहा है और जिस जातीय समीकरण के कारण जिलाध्यक्ष लुम्बाराम चौधरी भी टिकिट की दावेदारी पेश करने की स्थिति में है। इस पंचायत समिति में ओटाराम देवासी की रेबारी और लुम्बाराम चौधरी की कलबी समाज के साठ प्रतिशत मत थे।

इस सीट पर भाजपा के हारने का मतलब यह होता कि हाईकमान के सामने इनके प्रतिद्वंद्वियों को इनकी जाति में इनका प्रभाव क्षीण होने का संदेश देने का मौका मिल जाता। इस परिणाम ने दोनों को विधानसभा चुनावों में दावेदारी मजबूती से रखने का मौका दे दिया है। यही नहीं सांसद देवजी पटेल भी कलबी जाति से होने के कारण उनके लिए भी यह चुनाव जीतना महत्वपूर्ण था। इसी कारण पूरी भाजपा ने यहां अपनी ताकत झोंक दी।

ओटाराम देवासी के लिए इस सीट की अहमियत इसी बात से लगाई जा सकती है कि कथित रूप से एक आॅडियो सीडी को कांग्रेस प्रत्याशी के पति का बताकर उन्होंने सरतरा हनुमान मंदिर में जातीय पंचायत में भी हिस्सा लिया था। वहां पंचों ने चुनाव के बाद इस आॅडियो का निर्णय करने को कहा था।

भाजपा प्रत्याशी की जीत ने रेबारी समाज में स्थानीय रेबारी समाज के व्यक्ति को तरजीह नहीं दिए जाने को लेकर नाराजगी की अफवाह को भी विराम दे दिया है। रेबारी समाज के स्थानीय महत्वाकांक्षी नेता इस बात को लेकर भी देवासी को विरोध करते नजर आते थे कि वह बाहरी हैं और स्थानीय रेबारी जाति के हक को मार रहे हैं।

कांग्रेस ने चुनाव से पहले एक तरह से इसी ट्रेंड की वास्तविकता का पता लगाने के लिए स्थानीय रेबारी जाति बहुल इस पंचायत समिति वार्ड में एक लिटमस परिक्षण करने की कोशिश की जो फेल हो गया। रेबारी जाति के स्थानीय उम्मीदवार की हार इस बात की हरी झंडी है कि ओटाराम देवासी के बाहरी होने के बाद भी स्थानीय रेबारी समाज को उनका नेतृत्व स्वीकार्य है।

सामाजिक सूत्रों के अनुसार सरतरा बैठक में भी स्थानीय रेबारी के आगे आने के मुद्दे को लेकर चुटकी ली गई थी। लेकिन इस बात पर रार अब भी बरकरार है कि इस जीत को अपनी जातिय समीकरणों के आधार पर 2018 के टिकिट के रूप में ओटाराम देवासी बदल सकते हैं या लुम्बाराम चौधरी।

यदि यह सीट भाजपा हारती तो तय था कि इसकी हार का ठीकरा सबसे ज्यादा ओटाराम देवासी की कार्यप्रणाली पर फूटता, लेकिन त्वरित नुकसान लुम्बाराम चौधरी को होता और उनके विरोधियों को उनके नेतृत्व पर सवाल उठाने का मौका मिल जाता। अपने ही आंतरिक सर्वे में विधानसभा चुनावों में भाजपा की बुरी स्थिति की रिपोर्ट आने के बाद भाजपा नेतृत्व के लिए सिरोही से आॅक्सीजन मिली है। इन हालातों में यह जीत पर बड़ा जश्न तो बनता है।