भारतीय सिनेमा दिलीप कुमार के बिना पूरा नहीं होता है। एक्टिंग की हर विधा को दिलीप कुमार ने काफी पीछे छोड़ दिया। फिल्म इंडस्ट्रीज के कई कलाकार तो दिलीप कुमार की नकल करते हैं। सिनेमा के पर्दे पर कई रंग बिखरे हुए हैं, इन रंगों में एक रंग दिलीप कुमार भी भरते हैं। हिंदी सिनेमा हो या अन्य भाषा, कोई कलाकार दिलीप कुमार से अभिनय में आगे नहीं जा सका है। आज अभिनय सम्राट दिलीप कुमार का जन्मदिन है।
दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसंबर 1922 को पेशावर पाकिस्तान में हुआ था। आज दिलीप कुमार 97 साल के पूरे हो गए हैं। उन्होंने हिंदी सिनेमा में अभिनय कला को नई परिभाषा दी। महज 25 वर्ष की उम्र में दिलीप कुमार देश के नंबर वन अभिनेता के रूप में स्थापित हो गए थे।राजकपूर और देव आनंद के आने के बाद ‘दिलीप-राज-देव’ की प्रसिद्ध त्रिमूर्ति बन गई थी।
यह तीनों ही देश के विभाजन के बाद पकिस्तान से भारत आए थे। अभिनय सम्राट दिलीप कुमार ने अभिनय की कोई बुनियादी ट्रेनिंग कभी नहीं ली, वे एक स्वाभाविक अभिनेता रहे हैं। उम्र के इस पड़ाव पर अल्जाइमर और अन्य बीमारियों से लड़ रहे दिलीप साहब की सायरा तीमारदारी में लगी हैं और वही उनकी आवाज़ भी हैं और धड़कन भी। आइए जानते हैं दिलीप कुमार के फिल्मी सफर के बारे में।
दिलीप कुमार का जन्म पाकिस्तान के पेशावर में हुआ था
दिलीप कुमार का जन्म पेशावर (अब पाकिस्तान में) 11 दिसंबर, 1922 को हुआ था। उनके 12 भाई-बहन थे और वे तीसरे नंबर के थे। उनके पिता 1930 के दशक में मुंबई आ गए थे, यहां उन्होंने अपना फलों का कारोबार स्थापित कर लिया। वहीं युसूफ खालसा कॉलेस से आर्ट्स में ग्रेजुएशन कर रहे थे। पढ़ाई के बाद युसूफ नौकरी करने निकले तो उन्होंने आर्मी कैंटीन में असिस्टेंट मैनेजर की नौकरी की। दिलचस्प यह कि उनके परिवार में फिल्म या संगीत से किसी का दूर-दूर तक कोई नाता नहीं रहा था।
देविका रानी से मुलाकात के बाद दिलीप कुमार की बदली किस्मत
यह बात सन 1944 की है। उन दिनों बॉम्बे टॉकीज स्टूडियो का अपना जलवा हुआ करता था। बॉम्बे टॉकीज को एक नए हीरो की तलाश थी। स्टूडियो की मालकिन देविका रानी एक दिन वे बाजार में खरीदारी के लिए गईं। उनका इरादा खरीदारी का ही था लेकिन दिमाग में अपने नए हीरो की तलाश थी। खरीदारी के दौरान वे एक फलों की दुकान पर गईं।
उस दुकान पर मौजूद युवा उनकी पारखी नजरों को भा गया। इसे किस्मत कहें या इत्तेफाक वह युवा सिर्फ इसलिए दुकान में था कि उसके पिता बीमार थे। देविका को उसका चेहरा ऐक्टिंग के माकूल लगा और आंखों में कशिश दिखी जो किसी सुपरस्टार के लिए जरूरी चीजें थीं। देविका ने उन्हें अपना विजिटिंग कार्ड दिया और कहा कि कभी स्टूडियो में आकर मिलना।
युसूफ खान से अपना नाम दिलीप कुमार रख लिया
युसूफ सरवर खान दूसरे दिन देविका रानी से मिलने के लिए स्टूडियो पहुंच गए। युसूफ काे कुछ टेस्ट के बाद अप्रेंटिस पोस्ट के लिए रख लिया गया। इसके बाद देविका ने अपने इस हीरो पर फोकस किया। अब वे उन्हें ऐसा टच देना चाहती थीं कि वे सिल्वर स्क्रीन पर छा जाए। इस तरह युसूफ खान बॉम्बे टॉकीज का हिस्सा बन चुके थे। युसूफ का दिलीप कुमार बनने तक का सफर बड़ा रोचक था।
लेखक अशोक राज ने अपनी किताब में ‘हीरो’ में लिखा है कि हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार भगवती चरण वर्मा ने उन्होंने दिलीप नाम दिया था जबकि माना जाता है कि कुमार उन्हें उस समय के उभरते सितारे अशोक कुमार से मिला था। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि दिलीप कुमार नाम देविका रानी ने दिया था।
दिलीप कुमार की पहली फिल्म ‘ज्वार भाटा’ वर्ष 1944 में आई थी
देविका रानी ने 1944 में ‘ज्वार भाटा’ फिल्म से दिलीप कुमार को लॉन्च किया था। फिल्म की हीरोइन भी नई थी ।इसमें दिलीप कुमार ने एक नौटंकी कलाकार का रोल निभाया था। लेकिन फिल्म चल नहीं सकी और सबको लगा कि इस हीरो में दम नहीं है। लेकिन तीन साल की मेहनत के बाद वह समय भी आया जब पहली फिल्म ने क्लिक किया। 1947 की फिल्म ‘जुगनू’ ने उनकी किस्मत बदल दी और फिर उसके बाद उन्हें कभी पीछे मुड़कर देखने का मौका नहीं मिला।
50 के दशक में दिलीप कुमार ने कई हिट फिल्में दी
वर्ष 1950 में हिंदी सिनेमा में दिलीप कुमार का जबरदस्त नाम चल गया। ‘मेला’, ‘शहीद’, ‘अंदाज़’, ‘आन’, ‘देवदास’, ‘नया दौर’, ‘मधुमती’, ‘यहूदी’, ‘पैगाम’, ‘मुगल-ए-आजम’, ‘गंगा-जमना’, ‘लीडर’ और ‘राम और श्याम’ जैसी फ़िल्मों के नायक दिलीप कुमार लाखों युवा दर्शकों के दिलों की धड़कन बन गए थे। एक नाकाम प्रेमी के रूप में उन्होंने विशेष ख्याति पाई, लेकिन यह भी सिद्ध किया कि हास्य भूमिकाओं में भी वे किसी से कम नहीं हैं। वो ‘ट्रेजेडी किंग’ कहलाए लेकिन, वो एक हरफनमौला अभिनेता थे। दिलीप कुमार ने अपने करियर में मात्र 60 फ़िल्में की हैं लेकिन सभी में अपने अभिनय का लोहा मनवाया।
80 के दशक में दूसरी पारी शुरू की
दिलीप कुमार ने 80 के दशक में कई फिल्में सुपरहिट दी और उनकी भूमिका भी जबरदस्त रही। जिसमें 1981 में आई क्रांति, 1982 में विधाता, कर्मा, इज्जतदार, सौदागर, जैसी फिल्में शामिल है। आखिरी फिल्म दिलीप कुमार की 1998 में किला रिलीज हुई थी ।शक्ति फिल्म में दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन की अदाकारी दर्शकों ने खूब सराही थी। ऐसे ही 1991 में आई सौदागर में राजकुमार और दिलीप कुमार के संवाद को दर्शक अभी तक नहीं भूले हैं। दिलीप कुमार ने भारतीय सिनेमा के 6 दशक तक काम किया। इन्हें सबसे पहला फिल्म फेयर अवार्ड मिला था।
दादा साहब फाल्के से लेकर तमाम पुरस्काराें से दिलीप कुमार नवाजे गए
1954 से लेकर 1983 तक दिलीप कुमार को 8 फिल्म फेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। जो दाग, आजाद, देवदास, नया दौर, कोहिनूर, लीडर, राम और श्याम, शक्ति फिल्मों के लिए मिला। इसके आवा दिलीप कुमार को 1995 में दादा साहेब फाल्के अवार्ड 1998 में पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज से सम्मानित किया गया है। 2014 में अभिनय के क्षेत्र में दिलीप कुमार को किशोर कुमार सम्मान से भी नवाजा गया है। इसके अलावा दिलीप कुमार 2000 में संसद सदस्य भी बने थे।
दिलीप कुमार सायरा बानो की लव स्टोरी कम दिलचस्प नहीं रही
दिलीप कुमार और सायरा बानो की शादी की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। सायरा बानो स्वयं लोकप्रिय नायिका रही हैं और अपनी जंगली, अप्रैल फूल, पड़ोसन, झुक गया आसमान, पूरब और पश्चिम, विक्टोरिया नंबर 203, आदमी और इंसान तथा जमीर जैसी बहुत सी फिल्मों के लिए जानी जाती रही हैं। तब, सायरा का दिल राजेंद्र कुमार पर फिदा था, वे तीन बच्चों वाले शादीशुदा व्यक्ति थे।
सायरा की मां नसीम को जब यह भनक लगी, तो उन्हें अपनी बेटी की नादानी पर बेहद गुस्सा आया। नसीम ने अपने पड़ोसी दिलीप कुमार की मदद ली और उनसे कहा कि सायरा को वो समझाएं कि वो राजेंद्र कुमार से अपना मोह भंग करे। दिलीप कुमार ने बड़े ही बेमन से यह काम किया क्योंकि वे सायरा के बारे में ज्यादा जानते भी नहीं थे। लेकिन, समय को कुछ और ही मंजूर था।
वर्ष 1966 में दिलीप कुमार और सायरा बानो ने कर ली थी शादी
11 अक्टूबर 1966 को 25 साल की उम्र में सायरा ने 44 साल के दिलीप कुमार से शादी कर ली। दूल्हा बने दिलीप कुमार की घोड़ी की लगाम पृथ्वीराज कपूर ने थामी थी और अगल-बगल राज कपूर और देव आनंद डांस कर रहे थे।दिलीप कुमार पिछले काफी समय से फिल्मों से दूर हैं और बीमार भी। ऐसे में उनकी पत्नी सायरा ही उनका पूरा ख्याल रखती हैं।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार