सबगुरु न्यूज। भारत और चीन के टकराव के बाद देश में चाइनीज कंपनियों और उनके उत्पादों का देश से बहिष्कार करना प्रशंसनीय पहल कहा जा सकता है। यह सही है कि स्वदेशी वस्तुओं को बढ़ावा देने से किसी भी राष्ट्र की आर्थिक व्यवस्था मजबूत तो होती ही है साथ ही हमें आत्मनिर्भर भी बनाती है, इसके साथ ही हमें किसी दूसरे देश पर निर्भर भी नहीं रहना पड़ता है। बात करते हैं चीन की। इन दिनों भारत में चीन के बने सामानों का बहिष्कार करने का अभियान चलाया जा रहा है। आपको बता दें कि इससे पहले भी ऐसे कई बार अभियान चलाए गए थे।
इस बार भारत चीन के बने उत्पादों का कितना बहिष्कार कर पाएगा इसी का आकलन करते हैं। ग्लोबलाइजेशन के दौर में चीन ने व्यापारिक दृष्टि से भारत को पिछले एक दशक से अपना सबसे बड़ा व्यापार केंद्र बना डाला है। चीनी कंपनियों और उनके बने उत्पादों ने भारतीय बाजार ही नहीं बल्कि घर-घर अपनी इतनी गहरी जड़ें जमा ली हैं कि अब भारत के लिए इनका बहिष्कार करना इतना आसान नहीं होगा। यही नहीं चीनी कंपनियों में लाखों भारतीयों को रोजगार भी मिला हुआ है। टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में आज ड्रैगन का लगभग 70 प्रतिशत भारतीय बाजारों में कब्जा कर रखा है, चाहे मोबाइल, लैपटॉप या टीवी आदि।
आज स्मार्टफोन की बात करें तो देश के तमाम छोटे-बड़े शहरों के शोरूम में चीनी कंपनियों के मोबाइल फोन देखे जा सकते हैं। लाखों भारतीयों ने तो इन मोबाइल कंपनियों के डिस्ट्रीब्यूटर, डीलर, एजेंसी भी ले रखी है। यही नहीं हमारे आपके पास भी चाइनीज के बने हैं मोबाइल फोन जैसे रेडमी, वीवो, ओपो, श्यावमी, जिओनी, हुवावे आदि मिल जाएंगे। अगर इस समय मौजूदा समय में आपसे यह कहा जाए कि आप इन मोबाइल फोन का बहिष्कार कर दीजिए तो यह शायद आपके लिए मुश्किल होगा ? ऐसे ही उन दुकानदारों के लिए जो इन्हीं के बल पर रोजी-रोटी और घर चला रहे हैं, उनके लिए भी यही बात लागू होती है। इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र में ही नहीं है चीन ने बल्कि पूरे भारतीय बाजार को अपने कब्जे में ले रखा है। सस्ते उत्पादों के चक्कर में आज भारत चीनी कंपनियों के जाल में खुद ही फंस गया है।
चीन के सस्ते उत्पादों के चक्कर में देशवासी फंस चुका है
चीन ने भारतीय बाजार में जब अपने उत्पादों को बेचना शुरू किया था तब उसके दिमाग में देश के कस्टमर को लुभाना था। इसी को ध्यान में रखते हुए चीन भारत में अपने काफी सस्ते उत्पाद भी उतारता चला गया। सस्ते और बड़े के चक्कर में भारतीय धीरे-धीरे चाइनीज सामानों का कद्रदान हो चुका है। सबसे बड़ा कारण यह है कि भारत में जो वस्तु 10 रुपए में मिलती है वही चाइनीज कंपनी उसे 5 में ही उपलब्ध हो जाती है। चीन से भारतीय आयात कई तरह का है। हम अगर अपने त्योहारों की बात करें उस पर भी चीन का कब्जा है।
होली, दीपावली, रक्षाबंधन पर भी प्रत्येक भारतीय चीनी कंपनियों का बना सामान खरीदने का उतावला रहता है, इसके साथ ही इंफ्रास्ट्रक्चर और मेडिकल क्षेत्र में भी चीन का अच्छा खासा दबदबा है। चीन की कंपनियों के सस्ते उत्पाद भारत में अपनी जड़ें इस कदर जमा चुके हैं कि उनको उखाड़ पाना बेहद मुश्किल है। यही नहीं चीनी कंपनियां भारत में निवेश भी कर रही हैं। यह जनता के ऊपर है, चाहे तो सभी प्रोडक्ट का उपयोग बंद कर दे। आधिकारिक तौर पर इस तरह की कोई पाबंदी नहीं लगाई जा सकती। यह डब्ल्यूटीओ के नियमों का उल्लंघन भी होगा। बहिष्कार या बॉयकॉट का पूरा मामला इंडस्ट्री और जनता पर है।
भारत में इन क्षेत्रों में चीनी कंपनियों ने अपनी कर ली है घुसपैठ
चीन के लिए भारत एक बहुत बड़े बाजार के रूप में उभरा है। दोनों देशों में विशाल आबादी के कारण एक बहुत बड़ा कंज्यूमर बेस है। स्मार्टफोन के अलावा भारत में टेलीकॉम इक्विपमेंट पर भी चीन का भारतीय बाजार में दबदबा कायम हो गया है। होम अप्लायंसेस, ऑटो कंपोनेंट, सोलर पावर, इंटरनेट एप, स्टील, फार्मा एपीआई इसके अलावा खिलौने, बिजली उत्पाद, कार और मोटरसाइकिल के कलपुर्जे, दूध उत्पाद, उर्वरक ,कम्प्यूटर,एंटीबायोटिक्स दवाई, दूरसंचार और उर्जा क्षेत्र से भारतीय बाजार चीन के कब्जे में आता चला गया। वर्तमान में चीन से भारत द्वारा आयात सालाना लगभग 5.25 लाख करोड़ रुपये का है।
पिछले दिनों लेह लद्दाख के गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के हिंसक झड़प के बाद दोनों देश के तनावपूर्ण माहौल में भारत ने चीन के बने उत्पादों का बहिष्कार करने का अभियान चलाया है। यह कोई पहला मौका नहीं है जब भारत में चाइनीज सामान का बहिष्कार करने का विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। इससे पहले भी कई बार ऐसे अभियान चलाए गए थे लेकिन बाद में वह धीरे-धीरे शांत होते चले गए। चीन के बने उत्पादों का बहिष्कार करना अच्छी बात है लेकिन उससे पहले भारत सरकार को उसके विकल्प भी तलाशने होंगे। अभी तक देश में चीन की तरह टेक्नोलॉजी नहीं है। यही कारण है अधिकांश भारतीय बाजार चीन की टेक्नोलॉजी को पसंद भी करता आ रहा है।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार