सिरोही। राजस्थान हाइकोर्ट द्वारा माउंट आबू वन्यजीव सेंचुरी में ब्रह्माकुमारी संस्थान द्वारा किए गए अतिक्रमण पर माउंट आबू डीएफओ द्वारा दिए गए निर्णय पर स्टे को वेकेट करने के बाद ब्रह्माकुमारी संस्थान ने ये भूमि इस पर किए गए निर्माण कार्य के साथ ही माउंट आबू अभयारण्य के हैंड ओवर कर दिए हैं।
इसके बाद बिना किसी विवाद के अतिक्रमित भूमि और इस पर किया निर्माण माउंट आबू सेंचुरी की सम्पत्ति हो गई है। सेंच्युरी की जमीन सुपुर्दगी के बाद माउंट आबू वन विभाग ने कब्जा सुपुर्दगी ले ली।
क्या था विकल्प?
माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य में ब्रह्माकुमारी संस्थान द्वारा किए गए 5 बीघा 10 बिस्वा जमीन के कब्जे के निर्णय ओर हाईकोर्ट का स्टे हटने के बाद क्या ब्रह्माकुमारी संस्थान के पास सुपुर्दगी के अलावा कोई विकल्प बचा था। तो जवाब है नहीं। दरअसल, माउंट आबू उपवन संरक्षक हेमंत सिंह ने दिसम्बर 2019 के अपने निर्णय में जो लिखा उसी में ही इसका जवाब है।
ब्रह्माकुमारी के कब्जे पर जो आदेश पारित किया गया था वो वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनुपालना में दिया है। क्योंकि ये आदेश वन्यजीव सेंच्युरी के सम्बंध में सुप्रीम कोर्ट की अनुपालना में दिए हैं। ऐसे में हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट में भी कोई राहत मिलने की उम्मीद नहीं थी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी हाईकोर्ट में इतने दिन तक मामले का लंबित रह जाना भी सरकार की तरफ से की गई न्यायिक पैरवी की विफ़लता के कारण हुआ है। ऐसा नहीं हो सकता फिर भी वन भूमि और कब्जे का नियमितीकरण कहीं नहीं हो सकता था फिर भी ब्रह्माकुमारी संस्थान का लीगल विभाग संस्थान को भ्रमित करके न्यायिक वाद में अटकाए रखा।
आठ बीघा का डायवर्जन पहले ही किया रद्द
वन्यजीव अभयारण्य और सेंच्युरी की भूमि पर कब्जा होने या उसे उपयोग में लेने के बाद उस भूमि का डायवर्जन किया जाता है। लेकिन, इसके भी प्रावधान हैं। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत जनहित के सिर्फ 10 मामलों में ये डायवर्जन हो सकता है। ब्रह्माकुमारी संस्थान ने भी 2019 में 8 बीघा भूमि का डायवर्जन मांगा था।
ब्रह्माकुमारी संस्थान का अतिक्रमण उन दस मापदंडों में नहीं आ सकता ऐसे डायवर्जन के अनुरोध को निरस्त कर दिया गया था। लेकिन, इस डायवर्जन की अर्जी पर सवाल अब एक नया खड़ा हो गया है। वो ये कि ब्रह्माकुमारी संस्थान के खिलाफ 2019 में हुए फैंसले में सिर्फ 5 बीघा 10 बिस्वा जमीन और अतिक्रमण का जिक्र है, फिर संस्थान द्वारा वन विभाग से 8 बीघा का डायवर्जन क्यों मांगा गया।
जिस खसरे में डायवर्जन मांगा जाता है उसका जिक्र आवेदन में किया जाता है तो सवाल ये उठता है कि 5 बीघा जमीन के अलावा 3 बीघा ओर कहीं और भी अतिक्रमण होकर निर्माण हुआ है या नहीं। ये जांच का विषय है।
इनका कहना है…
न्यायालय से स्टे वेकेट होने के बाद संस्थान ने उक्त भूमि और उस पर हुआ निर्माण वन विभाग के सुपुर्द कर दी है। विभाग कहेगा तो इनमे लगे पौधों का संधारण कर सकते हैं।
बीके कोमल
जनसम्पर्क अधिकारी, ब्रह्माकुमारी संस्थान, आबूरोड।
संस्थान ने अतिक्रमित भूमि का कब्जा सुपुर्द कर दिया है। 2019 के आदेश में जो भी लिखा गया है उसकी अनुपालना में आगे कार्रवाई की जाएगी।
विजय शंकर पांडे
एसीएफ, वन्यजीव सेंचुरी, माउंट आबू।