लखनऊ। उत्तर प्रदेश की गोरखपुर और फूलपुर संसदीय सीट के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को समर्थन देने की अटकलों को बहुजन समाज पार्टी ने सिरे से खारिज कर दिया है।
बसपा में मीडिया का काम देखने वाले परेश मिश्रा ने कहा कि अभी ऐसा कोई निर्णय नहीं लिया गया है। यह सही है कि पार्टी की बैेठकें हुई हैं, लेकिन उसमें इस तरह का निर्णय नहीं लिया गया है। बसपा में कार्यकर्ताआें से मशविरा कर पार्टी अध्यक्ष मायावती ही निर्णय लेती हैं। कयास लगाये जा रहे थे कि बसपा ने गोरखपुर और फूलपुर में सपा उम्मीदवारों को समर्थन दे दिया है। बसपा उपचुनाव नहीं लड़ती है, इसलिए इस कयास को ज्यादा बल मिला।
हालांकि, राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि दोनों दलों के एक साथ आने पर पिछड़े, दलित और मुसलमानों का बेहतरीन ‘काम्बिनेशन’ बनेगा। इन तीनों की आबादी राज्य में करीब 70 फीसदी है। तीनों एक मंच पर आ जाएंगे तो भाजपा के लिए मुश्किल हो सकती है।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा को एक भी सीट नहीं हासिल हुई थी, जबकि सपा मात्र पांच सीट जीत सकी थी। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा केवल 47 सीटों पर जीती थी जबकि बसपा 19 सीटों पर ही सिमट गई थी। उत्तर प्रदेश विधानसभा में कुल 403 और लोकसभा की 80 सीट हैं।
30 अक्टूबर और दो नवम्बर 1990 को अयोध्या में हुए गोलीकांड के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की काफी किरकिरी हुई थी। उसके कुछ महीने बाद 1991 में हुए विधानसभा के चुनाव में यादव को करारी शिकस्त मिली थी। भारतीय जनता पार्टी ने राज्य में पहली बार सरकार बनाई थी। कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया था।
छह दिसम्बर 1992 को कारसेवकों ने विवादित ढांचा ढहा दिया था। कल्याण सिंह सरकार बर्खास्त कर दी गयी थी। वर्ष 1993 में बसपा के तत्कालीन अध्यक्ष कांशीराम और मुलायम सिंह यादव की पार्टी सपा ने मिलकर चुनाव लड़ा। इसका नतीजा रहा कि 1993 में सपा-बसपा गठबंधन ने सरकार बनायी और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री चुने गए।
सरकार करीब डेढ़ साल चली कि इसी बीच दो जून 1995 को लखनऊ में स्टेट गेस्ट हाऊस कांड हो गया। बसपा अध्यक्ष मायावती के साथ समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं ने दुर्व्यवहार किया था। गठबंधन टूट गया और भाजपा के सहयोग से मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बन गई। तभी से सपा और बसपा के सम्बन्ध पीछे बने रहे।
लोकसभा की दो सीटों पर हो रहे उपचुनाव में यदि बसपा समर्थन देती है तो राज्य की राजनीति में इसके दूरगामी परिणाम होने की सम्भावना है। राजनीतिक मामलों के जानकारों का कहना है कि बसपा उपचुनाव में अपने उम्मीदवार नहीं खड़ा करती है, इसलिए उपचुनाव में यदि बसपा सपा को समर्थन देती है तो अभी से इसका यह मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि 2019 में दोनों दल एक साथ रह सकते हैं।
उधर, कह रहीम कैसे निभे, केर-बेर को संग। कहकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी सपा-बसपा के नजदीक आने की सम्भावनाओं को नकारा। उनका कहना था कि दोनों दलों की रीति-नीति अलग अलग है। दोनों के स्वभाव भिन्न हैं। ऐसे में सपा-बसपा मिलकर चुनाव लड़ने की सम्भावना नहीं के बराबर है।
उन्होंने कहा कि स्टेट गेस्ट हाऊस कांड और लखनऊ में बने स्मारकों को ध्वस्त करने की चेतावनी को एक दल कैसे भूल सकता है।