नयी दिल्ली । भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने वायु सेना द्वारा एमआई-17-IV हेलिकॉप्टरों की मरम्मत और ओवरहॉलिंग पर तीन गुना ज्यादा राशि खर्च किये जाने पर सवाल उठाये हैं।
कैग ने संसद में पेश रिपोर्ट में कहा है कि यदि इन हेलिकॉप्टरों के मरम्मत की ढांचागत सुविधा समय से देश में स्थापित कर ली जाती तो यह काम केवल 196 करोड़ रूपये में पूरा हो जाता और इससे रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण को भी बढावा मिलता। वायु सेना ने जरूरी उपकरणों की खरीद के टेंडर और अन्य प्रक्रियाओं में देरी की जिससे हेलिकॉप्टरों की मरम्मत विदेश में करानी पड़ी जिस पर 600 करोड रूपये से अधिक का खर्च आया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एम आई 17 हेलिकॉप्टरों का इस्तेमाल सैनिकों तथा रक्षा साजो सामान को लाने ले जाने में किया जाता है। एमआई-17-IV हेलिकॉप्टर एमआई -17 हेलिकॉप्टरों का उन्नत संस्करण है। ये हेलिकॉप्टर वर्ष 2000 से 2003 के बीच खरीदे गये थे और 2011 में इनकी मरम्मत तथा ओवरहाॅलिंग निर्धारित थी। एमआई-17 की मरम्मत और आेवरहालिंग सुविधा देश में है लेकिन एमआई-17-IV के लिए अतिरिक्त उपकरणों की ढांचागत सुविधा नहीं थी। इस ढांचागत सुविधा को बनाने के लिए नवम्बर 2007 में रक्षा खरीद परिषद से मंजूरी ली गयी। इस पर 196 करोड रूपये की लागत आने का अनुमान था।
यूक्रेन और रूस की जिन कंपनियों से इसके लिए बात की गयी उन्होंने इसमें देरी की जिसे देखते हुए वायु सेना ने उसके साथ अनुबंध तोड दिया। इस बीच मरम्मत नहीं होने के कारण कुछ हेलिकॉप्टरों को खड़ा करना पडा। इसे देखते हुए बाद में फिर पहली कंपनी के साथ ही दोबारा समझौता किया गया जिसके तहत विमानों को मरम्मत के लिए विदेशों में भेजने का निर्णय लिया गया। इस समझौते के तहत वर्ष 2011, 12 और 2013 में दस- दस हेलिकॉप्टरों को विदेश भेजने की व्यवस्था की गयी। यह समझौता 600 करोड रूपये में किया गया।
कैग का कहना है कि इन हेलिकॉप्टरों की मरम्मत का 85 प्रतिशत काम तो देश में मौजूद मरम्मत केन्द्र पर हो ही सकता था और केवल 15 प्रतिशत के लिए 196 करोड रूपये की लागत से मरम्मत केन्द्र बनाया जाना था लेकिन ऐसा नहीं किया गया। इस काम पर तीन गुना अधिक यानि 600 करोड रूपये खर्च किये गये और रूसी कंपनी को बेवजह फायदा पहुंचाया गया। यही नहीं बाकी हेलिकॉप्टरों को भी मरम्मत के लिए विदेश भेजा जायेगा जिस पर और राशि खर्च होगी।