फतेहगढ़ । पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने आज कहा कि उनकी सरकार विभिन्न समुदायों के बीच दरार पैदा करने की किसी कोशिश को बर्दाश्त नहीं करेगी और राज्य के सांप्रदायिक सद्भाव के माहौल को बिगाड़ने की कोशिश करने वालों से सख्ती से निबटेगी।
शहीदी सभा के दूसरे दिन यहां संवाददाताओं से बातचीत में मुख्यमंत्री ने कहा कि सिक्ख पंथ सांप्रदायिक सद्भाव का संदेश देता है और किसी को इसे बिगाड़ने की अनुमति नहीं दी जायेगी।
गुरू गोबिंद सिंह के पुत्रों जोरावर सिंह और फतेह सिंह के बलिदान का जिक्र करते हुए कैप्टन अमरिंदर ने कहा कि जिस शांति के लिए उन्होंने अपना जीवन कुर्बान कर दिया उसे किसी भी कीमत पर बचाये रखा जायेगा।
वह हाल में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की प्रतिमा की अवमानना के संबंध में पूछे गये सवालों के जवाब में बोल रहे थे। उन्होंने अकालियों को भविष्य में ऐसी घटनाओं को दोहराने से बाज आने की चेतावनी देते दी। उन्होंने कहा कि राज्य के विभिन्न हिस्सों में कई वरिष्ठ अकाली नेताओं की भी प्रतिमाएं हैं। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार इन प्रतिमाओं की भी रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
कैप्टन अमरिंदर ने कहा कि 1984 के दंगों और प्रकरण में गांधी परिवार को घसीटकर अकाली सांप्रदायिक नफरत फैलाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि हिंसा जब शुरू हुई राजीव गांधी यहां थे भी नहीं। मुख्यमंत्री ने कहा कि सुखबीर सिंह बादल अमेरिका में पढ़ रहे थे और बिक्रम सिंह मजीठिया भी पंजाब में पढ़ाई कर रहे थे। उन्हें पता नहीं क्या हुआ पर वह राजनीतिक लाभ के लिए धर्म के नाम पर उन घटनाओं का इस्तेमाल करना चाहते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गुरदासपुर में तीन जनवरी की रैली के संदर्भ में एक सवाल के जवाब में कैप्टन अमरिंदर ने कहा कि श्री मोदी आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर ऐसी रैलियां कर रहे हैं और दावा किया कि कांग्रेस एक बार फिर पंजाब में शिरोमणि अकाली दल-भारतीय जनता पार्टी गठजोड़ का सूपड़ा साफ करने के लिए तैयार है।
उन्होंने फतेहगढ़ साहिब शहर में सिक्ख योद्धा बाबा बंदा सिंह बहादुर की स्मृति में चौक का जल्द ही निर्माण करने की घोषणा की। उन्होंने शहीदी सभा के दौरान कोई राजनीतिक सम्मेलन न होने पर प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि शहीदी जोर मेला राजनीतिक सभाओं के लिए नहीं होता तथा लोग यहां राजनीतिक भाषण सुनने नहीं आते, गुरू गोबिंद सिंह के पुत्रों को श्रद्धांजलि देने आते हैं।
फतेहपुर साहिब गुरद्वारा सरहिंद, जहां 26 दिसंबर 1705 को साहिबजादे शहीद हुए थे, के उत्तर में पांच किलोमीटर दूर बना हुआ है। यहां हर साल तीन दिवसीय शहीदी मेला कई सालों से होता रहा है।