नई दिल्ली। देश में प्लास्टिक इंजीनियरों की भारी कमी को दूर करने के उद्देश्य से अगले पांच साल में कुल 50 सेन्ट्रल प्लास्टिक इंजीनियरिंग एंड टैक्नोलाजी संस्थान (सीपेट) की स्थापना की जाएगी।
सरकार ने देश में सालाना एक लाख 75 हजार प्लास्टिक इंजीनियर और तकनीशियन तैयार करने की एक योजना तैयार की है और इसी के तहत जगह जगह सीपेट की स्थापना की जा रही है। मोदी सरकार आने के पहले देश में 23 सीपेट थे जिसकी संख्या बढकर 37 हो गई है। सीपेट का दर्जा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के समकक्ष है।
उर्वरक एवं रसायन मंत्री अनंत कुमार के अनुसार देश में आठ लाख प्लासिटक इंजीनियरों और तकनीशियनों की जरुरत है लेकिन उनकी उपलब्धता बहुत कम है। वर्ष 2014 तक प्रति वर्ष 14 हजार प्लास्टिक इंजीनियर तैयार होते थे।
इन संस्थानों से जो छात्र उच्च शिक्षा लेकर निकलते हैं उन्हें विदेश में नौकरी मिल जाती है। खाड़ी तथा अन्य देशों के पेट्रोकेमिकल्स और अन्य रासायनिक कारखानों में प्लास्टिक इंजीनियरों की अधिक मांग है।
कुमार के अनुसार आने वाला समय प्लास्टिक का है और इसके लिए व्यापक तैयारी की जरुरत है। दुनिया में सड़क निर्माण के अलावा भवन निर्माण, कृषि, मेडिकल, पैकेजिंग और यातायात के साधनों में बड़े पैमाने पर प्लास्टिक का उपयोग किया जा रहा है। देश में 2022 तक दो करोड़ टन प्लास्टिक के उपयोग का अनुमान है।
देश में भी अनेक पेट्रो केमिकल संस्थानों की स्थापना की जा रही है तथा प्लास्टिक से सम्बन्धित दूसरे कारखाने भी लगाए जा रहे हैं जिसके लिए बड़ी संख्या में इंजीनियरों की जरुरत है। सरकार ने इसी को ध्यान में रखकर बड़े पैमाने पर सीपेट की स्थापना का प्रयास कर रही है। चीन में प्लास्टिक के उपयोग को बढावा देने के उद्देश्य से कुछ क्षेत्रों में प्लास्टिक उत्पादों कुछ प्रतिशत तक उपयोग अनिवार्य कर दिया गया है।