नई दिल्ली। तीन मानद संस्कृत विश्वविद्यालयों को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिये जाने से संबंधित केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय विधेयक 2019 को सोमवार को राज्यसभा की मंजूरी मिलने के साथ ही इस पर संसद की मुहर लग गयी।
राज्यसभा ने इस लगभग ढाई घंटे की चर्चा के बाद इसे ध्वनिमत से पारित कर दिया। लोकसभा ने इसे संसद के पिछले सत्र के दाैरान दिसंबर में मंजूरी दी थी।
इससे पहले मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने संस्कृत भाषा में चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि इस विधेयक में राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली और राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, तिरूपति को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि इन विश्वविद्यालयों का उद्देश्य छात्रों को संस्कृत भाषा में उपलब्ध ज्ञान विज्ञान की शिक्षा देना है, ताकि वे देश के विकास में सहायक बन सके। संस्कृत को देश की आत्मा बताते हुए उन्होंने कहा कि अतीत में भारत को विश्वगुरु बनाने में इस भाषा का योगदान रहा है।
उन्होंने कहा कि जर्मनी के 14 विश्वविद्यालयों समेत 100 देशों के 250 विश्वविद्यालयों में संस्कृत भाषा की पढ़ाई होती है। दुनियाभर में करोडों छात्र संस्कृत पढ़ रहे हैं। सरकार संस्कृत के साथ ही तमिल, तेलुगू, बंगला, मलयालम, गुजराती, कन्नड़ आदि सभी भारतीय भाषाओं को सशक्त करने की पक्षधर है और सभी को मजबूत बनाना चाहती है।
निशंक ने कहा कि राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, श्री लाल बहादुर शास्त्री विद्यापीठ और राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ तिरुपति तीनों महत्वपूर्ण संस्थान हैं। ये न केवल संस्कृत भाषा का प्रसार प्रचार करते हैं बल्कि इसमें उपलब्ध ज्ञान विज्ञान को भी दुनिया के सामने रखते हैं। इन विश्वविद्यालयों को केंद्रीय स्तर प्रदान करना भाषा का प्रचार प्रसार करना नहीं बल्कि भाषा में मौजूद ज्ञान विज्ञान को सामने लाना है।
संस्कृत में उपलब्ध विज्ञान को नवाचार से जोड़ने पर बल देेते हुए उन्होेंने कहा कि हमें संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि पिछली सरकारों ने संस्कृत भाषा की उपेक्षा की जिससे भारत अपने प्राचीन ज्ञान से वंचित रहा।
इससे पहले विधेयक की चर्चा में हिस्सा लेते कांग्रेस के जयराम रमेश ने इसका विधेयक का समर्थन किया और इस तीन प्रस्तावित केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में से एक का नाम पाणिनि और एक का अमरसिम्हा के नाम पर रखे जाने की मांग करते हुये कहा कि पतजंलि का भी संस्कृत में बहुत योगदान है लेकिन अभी उनके नाम पर किसी संस्थान का नाम रखने पर गलत संदेश जायेगा।
उन्होंने कहा कि संस्कृत पर अभी सिर्फ कुछ लोगोें का वर्चस्व रह गया है लेकिन इसे आम लोगों की भाषा बनाने की जरूरत है क्योंकि देश में अभी मात्र 1.5 लाख लोग ही संस्कृत बोलते हैं। उन्होंने कहा कि छह ऐसी भाषायें हैं जिसे प्राचीन भाषा का दर्जा प्राप्त है जिसमें संस्कृत, तमिल, कन्नड, तेलुगु, मलयाली और उड़िया शामिल है लेकिन सरकार सिर्फ संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार पर ही अधिक ध्यान दिया जा रहा है।
संस्कृत के प्रचार प्रसार पर करीब 650 करोड़ रुपये व्यय किये जाने की बात सरकार ने सदन में कही है जबकि उड़िया और मलयाली पर कोई व्यय नहीं किया गया है। तमिल, कन्नड़ और तेलुगु पर मात्र तीन तीन करोड़ रुपये व्यय किये गये हैं। कांग्रेस सदस्य ने केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपति के तौर पर मानव संसाधन विकास मंत्री को पदेन माने जाने पर आपत्ति जताते हुये कहा कि इससे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थिति खराब हुयी है।
समाजवादी पार्टी के प्रो. रामगोपाल यादव ने इस विधेयक का समर्थन करते हुये कहा कि भारतीय संस्कृति और संस्कृत अभिन्न हिस्सा है। संस्कृत भाषा को बढ़ावा दिया जाना चाहिए और बनारस स्थित संस्कृत विश्वविद्यालय को भी केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया जाना चाहिए। उन्होंने इस विधेयक में छात्र परिषद बनाये जाने का विरोध करते हुये कहा कि इसका नाम छात्र संघ रखा जाना चाहिए और इस प्रमुख सदस्यों में से निर्वाचित होना चाहिए न कि किसी को नामित किया जाना चाहिए।
जनता दल यू की कहकंशा परवीन ने दरभंगा स्थित संस्कृत विश्वविद्यालय और पटना स्थित अरबी फारसी विश्वविद्यालय को भी केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिये जाने की मांग करते हुये इसका विधेयक का समर्थन किया और कहा कि इससे सभ्यता और संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा। वाईएसआर कांग्रेस के वी विजयसांय रेड्डी ने विधेयक का समर्थन किया और कहा कि इन तीनों केन्द्रीय विश्वविद्यालय को देश में 10-10 गांवों को गोद लेकर संस्कृत गांव बनाना चाहिए। इसके साथ ही सभी सांसदों को एक एक गांव गोद लेकर संस्कृत के प्रचार प्रसार पर जोर देना चाहिए।
तृणमूल कांग्रेस के सुखेन्दु शेखर राय ने भी इस विधेयक का समर्थन किया और कहा कि संस्कृत प्राचीन भाषा है और इसको बढ़ावा दिये जाने की जरूरत है। बीजू जनता दल के प्रशांत नंदा ने भी इसका समर्थन किया और इन दोनों सदस्यों ने अपना भाषण संस्कृत में दिया।
राष्ट्रीय जनता दल के मनोज कुमार झा ने बिहार के कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने की मांग की। उन्होंने कहा कि केन्द्रीय विश्वविद्यालय जड़ता का शिकार हो रहे हैं।
आम आदमी पार्टी के नारायण दास गुप्ता ने कहा कि संस्कृत सबसे प्राचीन भाषा है जिसे सभी जाति के लोगों को बोलना चाहिये। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये।
भारतीय जनता पार्टी के अशोक वाजपेयी ने कहा कि दुनिया की सबसे समृद्ध साहित्य संस्कृत में हैं जिनमें वेद और पुराण भी शामिल हैं। इनमें हजारों साल पहले की कल्पना की गयी थी और वे आज सम सामयिक हैं। उन्ळोंने कहा कि संस्कृत सिर्फ भाषा नहीं बल्कि वैदिक संस्कृति है। उन्होंने स्कूल स्तर पर संस्कृत की पढाई किये जाने और इसमें शोध किये जाने पर जोर दिया।
कांग्रेस के पी एल पुनिया ने संस्कृत शिक्षा को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि संस्कृत का पठन पाठन एक वर्ग तक ही सीमित है। उन्होंने कहा कि संविधान निर्माता बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर संस्कृत पढना चाहते थे लेकिन उन्हें पढने नहीं दिया गया । उन्होंने केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की नियुक्ति में आरक्षण के पालन की मांग की।
अन्नाद्रमुक के ए नवनीत कृष्णन ने विधेयक का स्वागत करते हुए तमिलनाडु में एक तमिल विश्वविद्यालय स्थापित करने की मांग की। कांग्रेस के एल हनुमंतैया ने सभी भाषाओं के विकास पर जोर देते हुए कहा कि अनेक विश्वविद्यालय में छात्रों के अभाव में संस्कृत विभाग को बंद किया गया है।
भाजपा के सुब्रहमण्यम स्वामी ने कहा कि केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में संस्कृत शिक्षा का विकल्प होना चाहिए। उन्होंने कहा कि संस्कृत और तमिल के 40 प्रतिशत शब्द एक समान हैं। कांग्रेस की छाया वर्मा ने 12 वीं तक की शिक्षा में संस्कृत को अनिवार्य बनाने की मांग की। इस भाषा की पढाई प्राथमिक विद्यालय से होनर चाहिए।