नई दिल्ली। तीन डीम्ड संस्कृत विश्वविद्यालयों को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिये जाने से संबंधित केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय विधेयक भारी हंगामे के बीच सोमवार को राज्यसभा में पेश किया गया।
दिल्ली हिंसा पर कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, वामपंथी दलों, द्रमुक और तृणमूल कांग्रेस सहित लगभग सभी विपक्षी दलों के भारी हंगामे के बीच मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने इस विधेयक को सदन में पेश किया। यह विधेयक लोकसभा से गत दिसंबर में पारित हुआ था। भारी हंगामे के कारण कुछ स्पष्ट सुना नहीं जा रहा था लेकिन इस विधेयक में राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली और राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, तिरूपति को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया जाना है।
निशंक ने कहा कि इन विश्वविद्यालयों का उद्देश्य छात्रों को संस्कृत की शिक्षा देना है, ताकि उनको संस्कृत भाषा-साहित्य में समाहित ज्ञान प्राप्त हो और वे देश के विकास में सहायक बन सके। संस्कृत को देश की आत्मा बताते हुए मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा कि अतीत में भारत को विश्वगुरु बनाने में इस भाषा का योगदान रहा है।
उन्होंने कहा कि जर्मनी के 14 विश्वविद्यालयों समेत 100 देशों के 250 विश्वविद्यालयों में संस्कृत भाषा की पढ़ाई होती है। सरकार संस्कृत के साथ ही तमिल, तेलुगू, बंगला , मलयालम, गुजराती, कन्नड़ आदि सभी भारतीय भाषाओं को सशक्त करने की पक्षधर है और सभी को मजबूत बनाना चाहती है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, श्री लाल बहादुर शास्त्री विद्यापीठ और राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ तिरुपति तीनों महत्वपूर्ण संस्थान हैं जिन्हें केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान करने का प्रस्ताव लाया गया है।
इसके बाद भाजपा के सत्य नारायण जटिया ने इस विधेयक पर अपने विचार रखे और चर्चा में भाग लिया लेकिन हंगामे के कारण कुछ सुना नहीं जा रहा था। जटिया के भाषण के बाद उप सभापति हरिवंश ने सदन की कार्यवाही कल तक के लिए स्थगित कर दी।