सबगुरु न्यूज(परीक्षित मिश्रा)-सिरोही/माउण्ट आबू। केन्द्रीय इस्पात मंत्री चौधरी विरेन्द्रसिंह ने मंगलवार को इस्पात मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति की दूसरी बैठक में इंपोर्ट सबस्टीट्यूशन एंड इं्रकीजिंग कंजम्पशन आॅफ स्टील(स्टील के लिए आयात विकल्प और उपभोग बढोतरी) विषय पर समिति के सदस्यों से परामर्श किया।
इसमें देश में उत्पादित इस्पात के लिए इस्तेमाल होने वाले ईंधन का विकल्प ढूंढने तथा देश में इस्पात का इस्तेमाल बढाने को लेकर परामर्श किया गया। होटल हिलटाॅन में हुई परामर्श दात्री समिति की इस बैठक में इस्पात राज्यमंत्री विष्णुदेव साही, संसदीय समिति के सदस्य सांसद विद्युतबरन महतो, रामकुमार वर्मा, लक्ष्मण गिलुवा, शेरसिंह गुब्बा, बोधसिंह भगत, जनार्दनसिंह सिगरवाल, स्टील मंत्रालय की ज्वाइट सेकेट्री कंसल, रुचिका चैधरी व श्रीनिवास, स्टील आॅथोरिटी आॅफ इंडिया लिमिटेड के सीएमडी पीकेसिंह समेत सेल, आरआईएनल, एनमएडीसी, वाॅयल, एमएसटीसी संबंधित पीएसयू के अधिकारी मौजूद थे।
-मंत्री ने प्रेस काॅन्फ्रेंस में बताया क्या की चर्चा
-भारत में इस्पात की खपत बढाने के लिए देश में प्रधानमंत्री अवास योजना के तहत इस्पात के मकान और एनएचएआई व हाइवे पर स्टील के पुल बनाने का प्रस्ताव पर इस्पात मंत्रालय काम करेगा। कई राज्यों ने अपनी फंडिंग भी की हैं। इसमें दो कमरों का घर पूरा स्टील का होगा और यह दो लाख रुपये से कुछ ज्यादा होगा। स्टील के घर में पेच कसकर तैयार। इस स्टील को आधे कीमत में सरकार को बेच सकता है।
-ग्रामीण प्रधानमंत्री आवास योजना में 70 हजार आम और हिल स्टैशन पर 75 हजार था। उसे दो लाख पच्चीस हजार तक पहुंचा दिया। 70 से 1 लाख 40 हजार कर दिया है। इसके साथ कोई अच्छा मकान बनाना चाहे तो सत्तर हजार रुपये और दिए जाने का प्रावधान किया है।
-भारत में इस्पात को उपभोग दुनिया के 208 किलोग्राम प्रति व्यक्ति की तुलना में 67 किलोग्राम प्रतिव्यक्ति है। इस खपत को बढाने के लिए रेलवे को सबसे बडा कंज्यूमर बनाने का निर्णय किया है। उन्होंने कहा कि रेलवे को देश में फैली 1.20 लाख किलोमीटर की पटरियां पूरी तरह बदलने का प्रस्ताव है। वह प्रतिवर्ष छह हजार किलोमीटर पटरियां बदलेगा। रेलवे को यह रेलपाथ सप्लाई करने का आश्वासन दिया हैं।
-भिलाई इस्पात कारखाने ने तो दुनिया के सभी देशों को पछाडते हुए 260 मीटर लम्बाई की रेलपाथ बनाया है। दुनिया भर में एक रेलपाथ गर्डर की लम्बाई 35 मीटर होती है।
-इस्पात निर्माण में कुकिंग कोल महत्वपूर्ण घटक है। यह भारत में कम होता है। यहां थर्मल कोल होता है जिसे धोकर कुल आवश्यकता का 12 प्रतिशत कुकिंग कोल बनाया जाता है। इसे आॅस्ट्रेलिया से आयात किया जाता है। इससे काफी विदेशी मुद्रा चली दूसरे देशों में चली जाती है। कुकिंग कोल के आयात से विदेशी मुद्रा के नुकसान को रोकने के लिए इस्पात निर्माण में कुकिंग कोल के अलावा किसी अन्य वैकल्पिक ईंधन का इस्तेमाल को बढावा देने पर भी बैठक में परामर्श लिए गए।
-सस्ता कुकिंग कोल के लिए एक कम्पनी बनाकर अफ्रीकन कंट्री मोजाम्बिक में माइंस ली हैं। इससे हमें करीब 35 प्रतिशत कुकिंग कोल मिलेगा। जिसे भारत लाया जाएगा। इसकी कीमत कम होगी। इससे हमारा इस्पात उद्योग विश्व बाजार में कंपीटीटिव दर पर खडा हो सकेगा।
-फलास्क फर्नेस में सुधार के लिए भी परामर्श लिए। पिछले एक साल में प्रति टन इस्पात बनाने में कुकिंग कोल के इस्तेमाल को 12 प्रतिशत तक घटाया है ताकि विश्व बाजार में भारत में निर्मित इस्पात की दर कम हो और कंम्पीटीटिवनेस बढे।
-राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017 के अलावा एक केबीनेट नोट भी पास करवाया है जिसमें टेंडर्स में भारत में निर्मित स्टील और उसकी लाइफ की शर्त को भी शामिल किया गया है। दो सूरत में इस्पात का आयात किया जा सकेगा या तो उस ग्रेड का इस्पात भारत में बनता नहीं हो या फिर इस मात्रा में इस्पात की सप्लाई भारत नहीं कर सकता हो।
-भारत में इस्पात उद्योग में रोजगार सृजन के लिए 2030 तक इस्पात का निर्माण 300 मिलीयन टन करने का निर्णय किया गया है। इसके अलावा सेकेंड ग्रेड इस्पात उद्योगों को बढावा देने के लिए बीआईएस शर्त पूरी करने पर इसका इस्तेमाल भी सरकारी ठेकों आदि में करने की अनुमति दी है।
-छोटे उद्योग ज्यादा रोजगार उत्पन्न कर पाएंगे। ऐसे में सेकेंडरी इस्पात उद्योगों को बढावा देने की नीति पर सरकार काम कर रही है। भारत में इस्पात के स्क्रेप के आयात को कम करने के लिए शीघ्र ही ऐसी निती लाने जा रहे हैं जिससे भारत में ही प्रतिवर्ष आठ मिलीयन टन इस्पात का स्क्रेप उपलब्ध हो सकेगा।
-स्टील के क्षेत्र में रिसर्च एंड अनालिसिस के लिए एसआरटीएमआई स्टील रिसर्च एंड टेक्नोलाॅजी मिशन इंस्टीट्यूट का गठन किया गया है। इसमें स्टील उत्पादन के यूनिट और इंटीग्रेटेड स्टील उत्पादक प्लांट के लोगों को शामिल किया गया है। भारत में उत्पादित कुल स्टील को 57 प्रतिशल सेकेंडरी स्टील बनत है। इसमें एक संस्था बनाई है। इसमें शोध होगा कि कुकिंग कोल का रिप्लेसमेंट हो सके।
-राष्टी्रय इस्पात नीति में 2030 में कंजम्पशन को 160 किलोग्राम किये जाने का प्रस्ताव है। पिछले चार साल में भारत में इस्पात का उपभोग 59 से 67 लेकर आए है। इसके साथ-साथ 2030 तक तीन सौ मिलीयन टन की केपेसिटी डवलप करके 260 मिलीयन टन तक प्रोडक्शन किया जाएगा।
– इसके लिए 12 साल में दस लाख करोड रुपये की जरूरत पडेगी इसके लिए। इसमें 40 प्रतिशत राशि ऐसी मशीनरी पर खर्च होगी जो हमारे देश में नहीं बनती। इसके लिए दुनिया भर की कम्पनियों को कहा कि अपनी टेक्नोलाॅजी लेकर भारत में आए और यहीं उत्पादन हुए। ऐसा करने में सक्षम हुए तो 4 लाख करोड रुपये की बचत करने में कामयाब होंगे।
-रोजगार डवलपमेंट में उत्पादन कम होने के कारण रोजगार में कमी आई। ज्यों-ज्यों केपेसिटी क्रिएट होगी वैसे-वैसे रोजगार बढेगा। स्टील सेक्टर में 25 लाख लोग काम करते हैं।
-इस्पात का निर्यात पिछले साल के 7.4 से 11 मिलीयन टन से बढकर हो गया है। 102 मीलीयन टन उत्पादन की तुलना में यह कम है।
– अमेरिका द्वारा स्टील आयात पर 25 प्रतिशत ड्यूटी लगाने का भारत पर कम प्रभाव पडेगा। इस संबंध में चर्चाएं चल रही हैं। हमारा अमेरिका के साथ स्टील ट्रेड दो प्रतिशत है।
-रिसेशन के कारण पंजाब, जोधपुर आदि में स्टील इंडस्ट्रीज बंद हुई। डंपिंग होने से यहां पर स्टील की रेट कम हुई थी। पिछले एक साल से इम्पू्रवमेंट है। यह इंडस्ट्री इंडस्टी स्क्रेप बेस हैं। एक लेजिस्लैशन संसद में लाकर ट्रांसपोर्ट मिनीस्ट्री से एक नोट केबीनेट मे ंजाएगा। इससे हमारे देश में स्क्रेप की उपलब्धता आठ मिलीयन टन हो जाएगी। इससे स्क्रेप का इंपोर्ट नहीं होगा। इससे इस इंडस्ट्री को काफी फायदा होगा। -स्टील सेक्टर डी-रेगुलेटर सेक्टर है। सरकार उन्हें सिर्फ गाइडलाइन देने में काम कर सकती है। पहले लाइसेंस आदि की समस्या को कर दिया गया है।