अजमेर। पूज्य झूलेलाल जयन्ती समारोह समिति व भारतीय सिन्धु सभा के संयोजन में हो रहे चेटीचण्ड महोत्सव के तीसरे दिन आनलाइन संगोष्ठी में चेटीचण्ड व नवसम्वतसर का प्राकृतिक, वैज्ञानिक व ऐतिहासिक महत्व पर चर्चा की गई।
मुख्य वक्ता नवसम्वतसर समारोह समिति के संरक्षक सुनील दत्त जैन ने कहा कि भारतीय सांस्कृतिक गौरव की स्मृतियां समेटे हुए अपना नववर्ष (संवत्सर) युगाब्द 5123, विक्रम संवत् 2078 की चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, तद्नुसार 13 अप्रेल 2021 को प्रारंभ हो रहा है।
सर्वस्पर्शी एवं सर्वग्राह्य भारतीय संस्कृति के दृष्टा मनीषियों और प्राचीन भारतीय खगोल-शास्त्रियों के सूक्ष्म चिन्तन-मनन के आधार पर की गई कालगणना से अपना यह नव-संवत्सर पूर्णत वैज्ञानिक एवं प्रकृति-सम्मत तो है ही, हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान एवं सांस्कृतिक ऐतिहासिक धरोहर को पुष्ट करने का पुण्य दिवस भी है।
ऐतिहासिक महत्व ब्रह्मपुराण के अनुसार पूर्णतरूजलमग्न पृथ्वी में से सर्वप्रथम बाहर निकले इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की। मर्यादा-पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के लंका विजय के बाद अयोध्या आने के पश्चात् यही मंगल-दिन उनके राज्याभिषेक के लिए चुना गया।
शक्ति एवं भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। समाज को श्रेष्ठ (आर्य) मार्ग पर ले जाने हेतु स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन को आर्य समाज स्थापना दिवस के रूप में चुना। सामाजिक समरसता के अग्रदूत डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म भी आज ही के दिन हुआ।
आज से 2078 वर्ष पूर्व राष्ट्रनायक सम्राट विक्रमादित्य ने विदेशी हमलावर शकों को भारत की धरती से खदेड़ा। अभूतपूर्व विजय के कीर्ति स्तंभ के रूप में कृतज्ञ राष्ट्र ने कालगणना को विक्रमी संवत् कहकर पुकारा।अधर्म पर धर्म का वर्चस्व स्थापित करने वाले सम्राट् युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ।
अपने राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाकर भारत माता को पुनरू जगद्गुरू के सिंहासन पर आसीन करने के ध्येय को लेकर चल रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक पूजनीय डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म भी वर्ष प्रतिपदा के मंगल-दिन ही हुआ।
मंत्र दृष्टा एवं न्यायदर्शन के आदि प्रवर्तक ऋषि गौतम का जन्म भी वर्ष-प्रतिपदा को ही हुआ महाराजा अजयपाल ने आज ही के दिन राजस्थान की हृदयस्थली अजयमेरु की स्थापना की।
वैज्ञानिक महत्त्व भारतीय कालगणना के अनुसार सृष्टि का निर्माण हुए आज विश्व के वैज्ञानिक इस तथ्य को स्वीकार करने लगे हैं। भारतीय कालगणना विशुद्ध वैज्ञानिक प्रणाली है, इसमें सृष्टि के प्रारंभ से लेकर आज तक सैकण्ड के सौवें भाग का भी अंतर नहीं आया है। भारतीय कालगणना के समय की सबसे छोटी इकाई का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है।
भारतीय सिन्धु सभा के प्रदेश भाषा ऐं साहित्य मंत्री डाॅ. प्रदीप गेहाणी (जोधपुर) ने कहा कि सनातन धर्म की रक्षा के लिए वरुणावतार झूलेलाल जी आज ही के दिन अवतरित हुए। इस तरह करें नववर्ष का स्वागत नववर्ष की पूर्व संध्या पर घरों के बाहर दीपक जलाकर नववर्ष का स्वागत करना चाहिए।
नववर्ष के नवप्रभात का स्वागत शंख ध्वनि व शहनाई वादन करके किया जाना चाहिए।घरों, मंदिरों पर ओम अंकित पताकाएं लगानी चाहिए तथा प्रमुख चौराहों, घरों को सजाना चाहिए। यज्ञ-हवन, संकीर्तन, सहभोज आदि का आयोजन कर उत्साह प्रकट करना चाहिए। अपने मित्रों व संबंधियों को नववर्ष बधाई संदेश भेजने चाहिए। भारतीय कालगणना एवं इसके महत्त्व को उजागर करने वाले लेखों का प्रकाशन एवं गोष्ठियों का आयोजन करना चाहिए।
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष देवीलाल लालवाणी (दिल्ली) ने कहा कि भारतीय कालगणना, संवत्सर किसी विचार या पंथ पर आश्रित नहीं है। अतरू किसी जाति या संप्रदाय विशेष की नहीं है। हमारी गौरवशाली परम्परा विशुद्ध अर्थों में प्रकृति के खगोल-शास्त्रीय सिद्धांतों पर आधारित है।
अतरूविक्रमी संवत् का वैचारिक आधार हमारे गणतंत्र में मान्य वर्तमान पंथ-निरपेक्ष स्वरूप को भी पुष्ट करता है। वर्ष प्रतिपदा के आस-पास ही पडने वाले अंग्रेजी वर्ष के मार्च-अप्रेल से ही दुनिया भर के पुराने कामकाज समेट कर नए कामकाज की रूपरेखा तय की जाती है।
राष्ट्रीय मंत्री महेन्द्र कुमार तीर्थाणी ने कहा कि भारतीय सिन्धु सभा की ओर से देश भर की ईकाईयों द्वारा पूज्य सिंधी पंचायतों, धार्मिक व सामाजिक संगठनों के सहयोग से सांस्कृतिक व धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है एवं विद्यार्थियों के साथ संगोष्ठियों का आयोजन कर इसका महत्व समझाया जा रहा है।
संयोजक भवानी शंकर थदाणी ने बताया कि चेटीचण्ड के उपलक्ष में काॅराना की गाइडलाइन पालना करते हुए आनलाइन संगोष्ठियां व कार्यक्रम आयोजित किए जा रहा हैं। संगोष्ठी का संचालन झूलेलाल जयन्ती समारोह समिति के अध्यक्ष कंवलप्रकाश किशनानी ने किया।