आज से आस्था का महापर्व छठ की शुरुआत हो गई है। चार दिन तक चलने वाला यह त्याेहार बिहार में पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। हालांकि छठ की बिहार के साथ पूरे देश भर में भी पूजा की जाती है। इन 4 दिनों में महिलाएं कठिन साधना और व्रत रखती हैं। व्रत रखने में महिलाओं को बहुत ही नियमों का पालन करना पड़ता है। तभी छठ को महापर्व कहा जाता है।
आइए जान लेते हैं आस्था के महापर्व में पहले दिन और चौथे दिन क्या-क्या होता है। पहले दिन नहाए खाए का व्रत है। आज के दिन व्रति नहाने के बाद भगवान सूर्य की उपासना करते हैं और जल देने के बाद खाना खाते हैं। आज के खान में साधारण नमक का प्रयोग नहीं किया जाता है। दूसरे दिन खरना का त्योहार होता है ।इस दिन शाम में गुड़ वाली खीर का प्रसाद बनाकर सूर्य देव को भोग लगाया जाता है।
भोग के बाद प्रसाद को लोगों के बीच बांट दिया जाता है। इसके अगले दिन महिलाएं शाम के समय नदी, तलाब या जल में खड़े होकर सूर्य भगवान को अर्घ्य देती हैं। इस दिन ढ़लते सूरज को अर्ध्य दिया जाता है। अगले दिन सुबह का अर्घ्य के साथ ही पूजा का समापन हो जाता है। अंतिम दिन सूर्योदय से पहले ही नदी या तालाब में खड़ा होकर अर्ध्य दिया जाता है। सूर्य की उपासना के लिए पानी खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
इसके बाद व्रती कुछ खाकर अपना व्रत तोड़ते हैं। बिहार और पूर्वांचल के लोग देश के कोने-कोने में रहते हैं वह वहां अपना छठ पर्व पूरी श्रद्धा के साथ मनाते हैं। यह 4 दिन पूरे बिहार में भक्ति और श्रद्धा के रूप में देखा जा सकता है। छठ पर्व के लिए बिहार का शासन और प्रशासन कई दिनों पहले तैयारी में जुट जाता है। गंगा घाटों की सफाई भी की जाती है। मुंबई में भी बिहार के लोग समुद्र के किनारे पूजा करते हैं और पूरे भक्ति और आस्था के साथ छठ का महापर्व मनाते हैं।
छठी मइया की होती है पूजा-अर्चना
कार्तिक मास की षष्टी को छठ मनाई जाती है। छठे दिन पूजी जाने वाली षष्ठी मइया को बिहार में आसान भाषा में छठी मइया कहकर पुकारते हैं। मान्यता है कि छठ पूजा के दौरान पूजी जाने वाली यह माता सूर्य भगवान की बहन हैं। इसीलिए लोग सूर्य को अर्घ्य देकर छठ मैया को प्रसन्न करते हैं। वहीं, पुराणों में मां दुर्गा के छठे रूप कात्यायनी देवी को भी छठ माता का ही रूप माना जाता है। छठ मइया को संतान देने वाली माता के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि जिन छठ पर्व संतान के लिए मनाया जाता है। खासकर वो जोड़े जिन्हें संतान का प्राप्ति नहीं हुई। वो छठ का व्रत रखते हैं, बाकि सभी अपने बच्चों की सुख और शांति के लिए छठ मनाते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार