अजमेर। देशभर में खासकर बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश में छठ पूजा की धूम मची हुई है। अजमेर भी इससे अछूता नहीं रहा। आजाद पार्क में बने अस्थाई कुड में शनिवार को दिनभर व्रतियों का तांता लगा रहा तथा शाम को सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया गया। बर्वतपुरा स्थित शिवमंदिर में भी बडी संख्या में छठ व्रती सूर्य भगवान को अर्घ्य प्रदान करने को जुटे। रविवार सुबह लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ उदयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न हो जाएगा। दिवाली पर्व के ठीक छठवें दिन सूर्य उपासना का महापर्व छठ पूजा का त्योहार मनाया जाता है।
लोक आस्था के महापर्व ‘छठ’ का हिंदू धर्म में अलग महत्व है। यह एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें ना केवल उदयाचल सूर्य की पूजा की जाती है बल्कि अस्ताचलगामी सूर्य को भी पूजा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि छठ महापर्व में नहाए-खाए से पारण तक व्रतियों पर षष्ठी माता की कृपा बरसती है। सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्य की प्राप्ति, सौभाग्य व संतान के लिए रखा जाता है।
स्कंद पुराण के अनुसार राजा प्रियव्रत ने भी यह व्रत रखा था। उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। भगवान भास्कर से इस रोग की मुक्ति के लिए उन्होंने छठ व्रत किया था। स्कंद पुराण में प्रतिहार षष्ठी के तौर पर इस व्रत की चर्चा है। वर्षकृत्यम में भी छठ की चर्चा है। दिवाली पर्व के ठीक छठवें दिन सूर्य उपासना का महापर्व छठ पूजा का त्योहार मनाया जाता है।
महाभारत में भी छठ पूजा का उल्लेख किया गया है। पांडवों की मां कुंती को विवाह से पूर्व सूर्य देव की उपासना कर आशीर्वाद स्वरुप पुत्र की प्राप्ति हुई जिनका नाम था कर्ण। पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी उनके कष्ट दूर करने हेतु छठ पूजा की थी। यह पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से आरंभ होकर सप्तमी तक चलता है।
प्रथम दिन यानि चतुर्थी तिथि ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। आगामी दिन पंचमी को खरना व्रत किया जाता है और इस दिन संध्याकाल में उपासक प्रसाद के रूप में गुड-खीर, रोटी और फल आदि का सेवन करते हैं और अगले 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखते हैं। मान्यता है कि खरन पूजन से ही छठ देवी प्रसन्न होती है और घर में वास करती है। छठ पूजा की अहम तिथि षष्ठी में नदी या जलाशय के तट पर भारी तादाद में श्रद्धालु एकत्रित होते हैं और उदीयमान सूर्य को अर्ध्य समर्पित कर पर्व का समापन करते हैं।
अर्घ्य देने की भी एक विधि होती है। एक बांस के सूप में केला एवं अन्य फल, अलोना प्रसाद, ईख आदि रखकर उसे पीले वस्त्र से ढंक दिया जाता है। तत्पश्चात दीप जलाकर उसे सूप में रखा जाता है और सूप को दोनों हाथों में लेकर नीचे दिए गए मंत्र का उच्चारण करते हुए तीन बार अस्त होते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है।
ॐ एहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पया मां भक्त्या गृहाणार्घ्य दिवाकर:॥