नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने आईएनएक्स मीडिया में धनशोधन से जुड़े प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दर्ज मामले में तिहाड़ जेल में बंद पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिंदबरम को जमानत पर रिहा करने का बुधवार को आदेश दिया। इसके साथ ही 106 दिन बाद उनकी रिहाई का रास्ता साफ हो गया।
न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की पीठ ने कुछ शर्तों के साथ श्री चिदंबरम को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। न्यायालय ने दो लाख रुपये की जमानत राशि और इतनी ही राशि के दो मुचलकों पर जमानत मंजूर करने का निर्णय लिया।
न्यायमूर्ति बोपन्ना ने पीठ की ओर से फैसला पढ़ते हुए कहा कि कांग्रेस नेता अदालत की अनुमति के बिना देश नहीं छोड़ेंगे, साथ ही वह न तो किसी गवाह से बात करेंगे, न ही इस मामले में कोई सार्वजनिक टिप्पणी करेंगे और न कोई साक्षात्कार देंगे।
आईएनएक्स मीडिया में विदेशी निवेश में भ्रष्टाचार से जुड़े केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के मामले में उच्चतम न्यायालय से ही चिदंबरम को पहले जमानत मिल चुकी है। पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि उसे मेरिट पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी। उसने कहा कि उच्च न्यायालय की कुछ टिप्पणियों से वह सहमत नहीं है।
पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जमानत याचिका खारिज किये जाने के फैसले के खिलाफ अपील पर गत 28 नवम्बर को सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया था।
ईडी ने चिदंबरम की जमानत याचिका का विरोध करते हुए दावा किया था कि वह जेल में रहते हुए भी मामले के अहम गवाहों को प्रभावित कर रहे हैं। ईडी की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि आर्थिक अपराध गंभीर प्रकृति के होते हैं, क्योंकि वे न सिर्फ देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं, बल्कि व्यवस्था में लोगों के यकीन को भी ठेस पहुंचाते हैं।
उन्होंने कहा था कि जांच के दौरान ईडी को बैंक के 12 ऐसे खातों के बारे में पता चला, जिनमें अपराध से जुटाया गया धन जमा किया गया। एजेंसी के पास अलग-अलग देशों में खरीदी गयी 12 संपत्तियों के ब्यौरे भी हैं। उन्होंने दलील दी थी कि जेल में अभियुक्तों की समयावधि को जमानत मंजूर करने का आधार नहीं बनना चाहिए।
चिदम्बरम की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने बहस की थी। सिब्बल ने अपनी दलील में कहा था कि रिमांड अर्जी में ईडी ने आरोप लगाया है कि श्री चिंदबरम गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे थे, जबकि वह तो ईडी की हिरासत में थे। पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री चिदंबरम की जमानत मंजूर नहीं की गयी मानो वह कुख्यात अपराधी रंगा-बिल्ला हों।
सिब्बल ने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा था कि उच्च न्यायालय ने ईडी की तीनों बड़ी दलीलों (सबूतों के साथ छेड़छाड़ की आशंका, फ्लाइट रिस्क, गवाहों को प्रभावित करने की आशंका) को ठुकरा दिया, लेकिन यह कहते हुए जमानत मंजूर करने से इन्कार कर दिया कि श्री चिंदबरम गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं। उन्हें इस घोटाले का सरगना साबित कर दिया गया, जबकि उनसे जुड़ा कोई दस्तावेज नहीं है।
चिदम्बरम ने दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा 15 नवंबर को जमानत याचिका खारिज किए जाने के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
गौरतलब है कि चिदंबरम को जेल में 100 दिन से ज्यादा हो चुके हैं, इस मामले में पहले उन्हें सीबीआई की हिरासत में रखा गया था और बाद में ईडी की हिरासत में रखा गया। श्री चिदंबरम को 21 अगस्त 2019 को गिरफ्तार किया गया था।
पूर्व केंद्रीय मंत्री को सीबीआई ने गत 21 अगस्त को आईएनएक्स मीडिया भ्रष्टाचार मामले में गिरफ्तार किया था। इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने 22 अक्टूबर को उनकी जमानत मंजूर की थी लेकिन इससे पहले ही सीबीआई की प्राथमिकी के आधार पर दर्ज धन शोधन मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने 16 अक्टूबर को चिदंबरम को गिरफ्तार कर लिया था जिसके कारण उन्हें जमानत मंजूर होने के बावजूद रिहा नहीं किया जा सका।
सीबीआई ने 15 मई 2017 को दर्ज मामले में आरोप लगाया था कि वित्त मंत्री के रूप में चिदंबरम के कार्यकाल के दौरान 2007 में विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड (एफआईपीबी) द्वारा आईएनएक्स मीडिया समूह को विदेश से 305 करोड़ रुपये का धन प्राप्त करने की मंजूरी देने में अनियमितताएं हुईं थीं।
इस प्राथमिकी के आधार पर ही ईडी ने धन शोधन का मामला दर्ज किया था। उच्च न्यायालय ने पूर्व वित्त मंत्री को जमानत देने से इंकार करते हुए कहा था कि आर्थिक अपराध के मामले में उन्हें जमानत दिये जाने से जनता में गलत संदेश जायेगा।