सबगुरु न्यूज-सिरोही। अनिवार्य शिक्षा कानून, बाल श्रम कानून और न जाने कितने ऐसे कानून बच्चों के समाज की मुख्य धारा में जोडकर एक सशक्त नागरिक बनाने के लिए बने हुए हैं। लेकिन आज भी देश, राज्य और जिले में स्कूलों की बजाय रोजी-रोटी के जुगाड में ये बच्चे या तो बर्तन मांजते नजर आ जाएंगे या फिर भट्टियों के इर्द-गिर्द काम करते।
कुछ ज्यादा समझदार दिखेंगे तो मालिक उन्हें होटलों में खाना परोसने के लिए भी रख लेते हैं। लेकिन कभी इन बच्चों को शिक्षा से जोडने या शिक्षा से भागने के कारण जानने के सार्थक प्रयास नहीं हुए।
-श्रम कानून में बदलाव फिर भी बाल-श्रम यथावत
जुलाई, 2016 में मोदी सरकार ने बाल श्रम अधिनियम 1986 में एक और महत्वपूर्ण बदलाव किया। इसके अनुसार कोई भी बच्चा अपने परिवार के व्यवसाय को छोडकर किसी अन्य व्यक्ति के व्यावसायिक स्थल पर काम के लिए नहीं लगाया जाएगा। परिवार वाले भी अपने परिवार के बच्चे को किसी हानिकारक उद्योग में नहीं लगा सकते हैं।
यही नहीं पारिवारिक व्यवसाय में भी मां-बाप के लिए यह बाध्यता है कि वह अपने बच्चे को विद्यालय समय में अपने काम पर नहीं लाएंगे। कला के क्षेत्र में बच्चों के काम को लेकर यह पाबंदिया नहीं थी। इसके बावजूद जिले में बच्चे होटलों ढाबों के व अन्य हानिकारक कार्यस्थलों पर नियोजित हैं।
-नेताओं के भी यही हाल
दो साल पहले सिरोही में ही नेताओं के रिश्तेदारों के यहां भी इसी तरह से बाल श्रम कानून का उल्लंघन होता दिखा। इसे लेकर कार्रवाई भी की गई। पुलिस पर तमाम राजनीतिक दबाव भी डाले गए, लेकिन पुलिस टस से मस नहीं हुई और कार्रवाई करके बच्चे को उसे परिवार वालों के सुपुर्द किया।
-गणपतसिंह मांडोली