नयी दिल्ली | भारत में पिछले दो दशक में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों के खिलाफ दुष्कर्म के मामलों में पांच गुना बढोतरी हुयी है।
भारत में बच्चों की स्थिति पर बुधवार को यहां जारी रिपोर्ट ‘चाइल्ड राइट्स – एन अनफिनिश्ड एजेंडा’ में यह खुलासा किया गया है। इसमें राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों का हवाला देते हुये कहा गया है कि वर्ष 1994 से 2016 के दौरान बच्चों से दुष्कर्म की घटनाएं करीब पांच गुना बढ़ी जो देश में बच्चों के अधिकारों की रक्षा की दिशा में चिंता का बड़ा कारण हैं। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि लिंग, समुदाय और धर्म के आधार पर होने वाले सामाजिक भेदभाव से बच्चे और उनके अधिकारों की रक्षा पर संकट और गहरा जाता है। ऐसे में दिव्यांगता और आपदाएं स्थिति को और भयावह बना देती हैं।
बाल अधिकार संरक्षण की दिशा में कार्यरत छह संगठनों के समूह जॉइनिंग फोर्सेज फॉर चिल्ड्रेन इंडिया ने यह रिपोर्ट तैयार की है। इसमें देखभाल में कमी के कारण 5 साल से कम उम्र में होने वाली मौतों से निपटने की दिशा में भारत में हुई उल्लेखनीय प्रगति का भी जिक्र किया गया है। भारत पर यह रिपोर्ट वैश्विक स्तर पर इसी संबंध में जारी अन्य रिपोर्ट – ए सेकेंड रेवोल्यूशन : 30 ईयर्स ऑफ चाइल्ड राइट्स, एंड द अनफिनिश्ड एजेंडा’ के अनुरूप ही है। इसे हाल में जॉइनिंग फोर्सेज अलायंस ने न्यूयॉर्क में जारी किया था।
नीति आयोग के विशेष सचिव (नॉलेज इनोवेशन हब) यदुवेन्द्र माथुर ने रिपोर्ट को जारी करते हुये कहा कि वह जॉइनिंग फोर्सेज को नीति आयोग के आकांक्षी जिला इंटरवेंशन के तहत बच्चों पर केंद्रित सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल करन के उद्देश्य के साथ बाल अधिकारों की दिशा में आयोग के साथ मिलकर काम करने के लिए आमंत्रित करते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कुपोषण को कम करने की दिशा में प्रगति हुई, लेकिन इसमें कमी की दर उतनी नहीं है, जितनी होनी चाहिए। भारत में एनएफएचएस-4 के वर्ष 2015-16 के आंकड़े के मुताबिक 38.4 प्रतिशत बच्चे अभी भी कुपोषित है। इसमें बाल अधिकारों से जुड़े प्रजनन स्वास्थ्य, खेलने की सुविधा, मनोरंजन एवं अवकाश की सुविधा, परिवार एवं समुदाय आधारित सुरक्षा का ढांचा तथा परिवार एवं समुदाय के स्तर पर फैसले लेने की प्रक्रिया में बच्चों की भागीदारी का उल्लेख किया गया है