सबगुरु न्यूज। पिछले कुछ दिनों से चीन भारत को लेकर नाराज चल रहा है। चीन की नाराजगी की सबसे बड़ी वजह यह है कि जब से कोरोना महामारी फैली है उसके यहां से कई विदेशी कंपनियों का पलायन जारी है। इन कंपनियों ने भारत और ताइवान में अपने नए कारोबार शुरू करने की योजना जब से बनाई है, चीनी समझ रहा है कि यह सारा खेल भारत का किया हुआ है, यही नहीं इस महामारी फैलाने को लेकर अमेरिका समेत कई देश चीन से जबरदस्त नाराज चल रहे हैं। नेपाल में अचानक से भारत विरोध की आंच तेज हो गई है। लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद और गहराता जा रहा है। यही नहीं नेपाल इन भारतीय इलाकों में अपनी हथियार बंद उपस्थिति भी बढ़ा रहा है।
नेपाल के इस कदम से चीन खूब गदगद है। चीन के सामने इस समय नेपाल को साधने की जबरदस्त मजबूरी भी है, क्योंकि कोरोना वायरस फैलने के बाद चीन के प्रति एशिया, यूरोप और अमेरिका समेत कई देशों का गुस्सा बना हुआ है।यही नहीं भारत अब चीनी सामानों का बहिष्कार करने के लिए भी जागरूक हो चुका है पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब देशवासियों से स्वदेशी अपनाने के लिए आह्वान किया था तब से ही चीन इस पर नजर लगाए हुए हैं।
चीन नेपाल की कई वर्षों से आर्थिक मदद करता आ रहा है
आपको बता दें कि चीन का तानाशाह रवैया अब कई विदेश की कंपनियों को रास नहीं आ रहा है इसलिए वह वहां से निकलना शुरू हो गई हैं। यही नहीं पिछले कुछ दिनों से नेपाल और भारत का जारी सीमा विवाद में चीन अब बहुत ज्यादा हस्तक्षेप करने लगा है। चीन ने तो सीधे तौर पर नेपाल को भारत के प्रति भड़का दिया है। आपको जानकारी दे दें कि पिछले कुछ दिनों से नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने भारत से जिस लहजे में बात की है वह साफ संकेत देता है कि वे चीनी भाषा बोल रहे थे। नेपाल दुनिया के गरीब देशों में आता है, नेपाल भारत, चीन भूटान, म्यामार की सीमाओं से घिरा हुआ है। पिछले कुछ वर्षों से चीन नेपाल पर ज्यादा ही मेहरबानी दिखा रहा है। कारण यह है कि चीन नेपाल के रास्ते भारत में घुसते का प्रयास करता रहा है। इसके बदले चीन नेपाल की आर्थिक मदद भी करता है।
लिपुलेख-कालापनी और लिंपियाधूरा को लेकर भारत-नेपाल चली की आ रही है खटास
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने बुधवार को एक बार फिर से भारत से सटे कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधूरा के मामले को लेकर सख्त लहजे धमकी दी। हालांकि पीएम होली ने भारत का नाम नहीं लिया लेकिन उनका इशारा समझा जा रहा है कि इसी ओर था। प्रधानमंत्री ओली ने कहा कि हम अपने इलाकों को हर हाल में लेकर रहेंगे, इसमें अगर कोई नाराज होता है तो नाराज हो जाए हमें कोई फर्क नहीं पड़ता है। यही नहीं दोनों देशों के बीच नए नक्शे के विवाद को लेकर कई दिनों से वैचारिक मतभेद बने हुए हैं।
अभी पिछले दिनों भारतीय थल सेना अध्यक्ष एमएम नरवणे ने कहा था भारत के प्रति नेपाल को भड़काने का किसी दूसरे देश का हाथ है इस पर इस पर नेपाल केे प्रधानमंत्री केपी ओली ने कहा था कि हम जो भी करते स्वयं करते हैं। ओली ने इस आरोप को भी नकारा कि जब उन्हें पार्टी में ही विद्रोह का सामना करना पड़ा था, तब चीनी राजदूत होउ यान्की ने उनकी कुर्सी बचाने में मदद की थी। ओली ने कहा, कुछ लोग कहते हैं कि एक विदेशी राजदूत ने सत्ता में उनकी कुर्सी बचाई है। यह सरकार नेपाल के लोगों ने चुनी है और कोई भी मुझे नहीं हटा सकता।
भारत ने पिछले साल जारी किया था नया नक्शा इसी पर नेपाल चल रहा है नाराज
भारत ने अपना नया राजनीतिक नक्शा 2 नवंबर 2019 को जारी किया था। इसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने सर्वेक्षण विभाग के साथ मिलकर तैयार किया है। इसमें कालापानी, लिंपियधुरा और लिपुलेख इलाके को भारतीय क्षेत्र में बताया गया है। नेपाल ने उस समय भी इस पर ऐतराज जताया था। विदेश मंत्रालय ने कहा था कि नए नक्शे में नेपाल से सटी सीमा में बदलाव नहीं है। नक्शा भारत के संप्रभु क्षेत्र को दर्शाता है। यहां आपको जानकारी दे दें कि नेपाल और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच 1816 में एंग्लो-नेपाल युद्ध के बाद सुगौली समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे।
इसमें काली नदी को भारत और नेपाल की पश्चिमी सीमा के तौर पर दर्शाया गया है। इसी के आधार पर नेपाल लिपुलेख और अन्य तीन क्षेत्र अपने अधिकार क्षेत्र में होने का दावा करता है। हालांकि, दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। दोनों देशों के विवादित इलाकों को अपने अधिकार क्षेत्र में दिखाते हैं। गौरतलब है कि दुनिया के एकमात्र नेपाल ही ऐसा देश है जो कि हिंदू राष्ट्र घोषित है। भारत और उसके संबंध काफी अच्छे रहे हैं।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार