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Circular from DLB ginate raw in Sirohi congress - Sabguru News
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एक परिपत्र के कारण सिरोही जिला कांग्रेस में भी सिर फुटव्वल

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एक परिपत्र के कारण सिरोही जिला कांग्रेस में भी सिर फुटव्वल
सिरोही के आबूरोड नगर पालिका में नेता प्रतिपक्ष के निर्वाचन के दौरान हुई हाथापाई।
सिरोही के आबूरोड नगर पालिका में नेता प्रतिपक्ष के निर्वाचन के दौरान हुई हाथापाई।
सिरोही के आबूरोड नगर पालिका में नेता प्रतिपक्ष के निर्वाचन के दौरान हुई हाथापाई।

सबगुरु न्यूज-सिरोही। अगले साल विधानसभा चुनाव की दस्तक के साथ ही सिरोही जिले में भाजपा के साथ कांग्रेस में भी गुटबाजी फिर तेज हो गई है।

अंतर सिर्फ इतना है कि भाजपा में राज्य स्तरीय गुटबाजियों का हिस्सा बनने और नहीं बनने को लेकर स्थानीय नेताओं में डर का माहौल है तो कांग्रेस में राज्य स्तरीय गुटबाजी से बेपरवाह जिला स्तरीय क्षत्रपों में संघर्ष तेज हो गया है। कांग्रेस में हाल में आबूरोड और पिंडवाड़ा नगर परिषद के नेता प्रतिपक्ष के पद को लेकर रजनीतिक उठापटक आबूरोड में तो हाथापाई तक पहुंच गई।
– नहीं किये थे नेता प्रतिपक्ष नियुक्त
अशोक गहलोत सरकार की राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर लापरवाही कांग्रेस में फिर से दिखाई दी। बड़ी नियुक्तियों के अलावा कांग्रेस ने नेता प्रतिपक्ष की नियुक्तियां तक नहीं कि थी। ऐसे में डीएलबी ने सभी नगर निकायों में नेता प्रतिपक्ष के चुनाव करवाने के आदेश दे दिए।

आबूरोड और पिंडवाड़ा नगर पालिकाओं में भी नगर पालिका चुनाव के कई महीनों बाद नेता प्रतिपक्ष का मनोनयन नहीं करने से अधिशासी अधिकारियों ने मार्च के प्रथम सप्ताह में ही नेता प्रतिपक्ष का चुनाव करवाने की अधिसूचना जारी कर दी। अधिसूचना के अनुसार दूसरे सप्ताह में नेता प्रतिपक्ष के चुनाव की तिथि निर्धारित थी।
– परिपत्र के बाद भी नहीं जागे कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष
जब नेता प्रतिपक्ष के चुनाव का परिपत्र जारी हो गया तो स्थानीय क्षत्रप जगे। उन्होंने प्रदेशाध्यक्ष से अपने समर्थकों को नेता प्रतिपक्ष मनोनीत करवा दिया। लेकिन, परिपत्र जारी होने के बाद संवैधानिक रूप से ये मनोनयन किसी तरह से कानून सम्मत नहीं था। अब यदि प्रदेश कांग्रेस को अपने द्वारा मनोनीत व्यक्ति को भी नेता प्रतिपक्ष बनवाना था तो माध्यम तो चुनाव ही था, वो सभी पार्षदों में आम सहमति बनाकर चुनाव के लिए अधिसूचित तिथि पर उनके नाम की सहमति नगर परिषद आयुक्त को दिलवा देती तो वहीं व्यक्ति फिर से नेता प्रतिपक्ष बन जाता।

लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके पीछे की वजह ये तो कतई नहीं रही होगी कि प्रदेश कांग्रेस के नेताओं और स्थानीय क्षत्रपों को इस नियम की जानकारी नहीं होगी कि परिपत्र निकलने के बाद मनोनयन नहीं होता है। किसी भी पार्टी के प्रतिनिधि का आदेश सरकारी अधिसूचना के आगे निष्प्रभावी होता है। ऐसे में अधिसूचना के बाद भी मनोनयन करवाना स्थानीय क्षत्रपों द्वारा अपने करीबियों को भ्रमित करने से ज्यादा कुछ नहीं था।
-चुनाव में बदल गए नेता प्रतिपक्ष
अधिसूचना निकलने के बाद आबूरोड में कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष ने भवनीष बारोट के नेता प्रतिपक्ष मनोनीत किया और पिंडवाड़ा में अचलसिंह बालिया को नेता प्रतिपक्ष मनोनीत किया। लेकिन दोनो जगह नेता प्रतिपक्ष के निर्वाचन की तिथि अधिसूचित हो चुकी थी। आबूरोड में 9 मार्च को और पिंडवाड़ा में 11 मार्च को नेता प्रतिपक्ष के चुनाव होने थे।

लेकिन, इस तिथि तक भी कांग्रेस आबूरोड में अपने पार्षदों में  बारोट को और पिंडवाड़ा में बालिया के पक्ष में सर्वसम्मति नहीं बनवा पाई। 9 मार्च को आबूरोड नगर पालिका में नेता प्रतिपक्ष का चुनाव  हुआ तो वहां मनोनीत किये गए बारोट की जगह बहुमत के आधार पर कांतिलाल परिहार नेता प्रतिपक्ष निर्वाचित हुए।

वहीं 11 मार्च को पिंडवाड़ा नगर परिषद के अधिशासी अधिकारी के आदेशनुसार बालिया की जगह वहाँ पर सुरेश मेवाड़ा बहुमत के आधार पर नेता प्रतिपक्ष निर्वाचित किये गए। निर्वाचित दोनों ही नेता प्रतिपक्ष सिरोही में कांग्रेस के दूसरे धड़े के नेता के वरदहस्त बताए जाते हैं। इन निर्वाचन के दौरान बायकॉट, विरोध, नारेबाजी और हाथापाई की नौबत तक आई।

राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष के चयन को लेकर डीएलबी द्वारा जारी किया गया परिपत्र।
राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष के चयन को लेकर डीएलबी द्वारा जारी किया गया परिपत्र।

-सितंबर में डीएलबी से आ चुका था परिपत्र
डीएलबी ने 9 सितंबर 2021 को प्रदेश के सभी निकाय अधिकारियों के नाम के परिपत्र जारी किया था। इसके अनुसार प्रदेश के निकायों में विपक्ष के सबसे बड़े दल के प्रांतीय या जिलाध्यक्ष के द्वारा मनोनीत व्यक्ति को नेता प्रतिपक्ष नियुक्त कर दिया जाए। इसके दूसरे बिंदु में लिखा था कि परिपत्र के 30 दिन के भीतर यदि कोई राजनीतिक सन्गठन इस पद पर मनोनयन नहीं करता तो इसके लिए अधिशासी अधिकारी द्वारा आहूत बैठक में बहुमत के आधार पर नेता प्रतिपक्ष नियुक्त करने के निर्देश रहे।

जिलाध्यक्ष ने अधिसूचना ने 30 दिन नहीं बल्कि 90 दिन निकलने पर भी प्रदेशाध्यक्ष के माध्यम से ये मनोनयन नहीं किया। नियत समय निकलने के बाद मनोनीत व्यक्ति को ही नेता प्रतिपक्ष बनवाना था तो या तो उकसे नाम की सर्वसम्मति बनवाते या फिर डीएलबी से नया परिपत्र जारी करवाते। क्योंकि डीएलबी और निकाय के अधिशासी अधिकारी सरकार के प्रति जवाबदेह हैं न कि उस राजनीतिक दल के प्रदेशाध्यक्ष और जिलाध्यक्ष के जिसकी सरकार प्रदेश में है।