नई दिल्ली। विपक्ष के तीखे विरोध के बीच गृह मंत्री अमित शाह ने लाेकसभा में आज नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 पेश किया जिसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बंगलादेश से धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत में शरण लेने वाले हिन्दू, सिख, ईसाई, पारसी, बौद्ध और जैन समुदाय के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है।
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, समाजवादी पार्टी, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग आदि विपक्षी दलों ने इस विधेयक को धार्मिक आधार पर नागरिकता तय करके संविधान की मूल भावना को आहत करने का आरोप लगाया और कहा कि इससे संविधान के अनुच्छेद पांच, दस, 14, 15, 25 एवं 26 का उल्लंघन होता है।
गृह मंत्री अमित शाह ने इसका जवाब देते हुए कहा कि इससे संविधान के किसी भी अनुच्छेद का उल्लंघन नहीं हुआ है। इन तीन देशों में इस्लाम राज्य का धर्म है और धार्मिक उत्पीड़न गैर इस्लामिक समुदायों का ही होता आया है। इसलिए ऐसे छह समुदायों को ‘तर्कसंगत वर्गीकरण’ के अंतर्गत नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है जबकि मुस्लिम समुदाय के लोग वर्तमान नियमों के अनुसार ही नागरिकता का आवेदन कर सकेंगे और उन पर उसी के अनुरूप विचार भी किया जाएगा।
गृह मंत्री के जवाब से विपक्ष संतुष्ट नहीं हुआ और उसने विधेयक पेश करने के प्रस्ताव पर मतविभाजन की मांग की जिसे 82 के मुकाबले 293 मतों से मंजूर कर लिया गया और शाह ने विधेयक पेश किया।
शाह ने संविधान के उन अनुच्छेदों को पढ़ कर सुनाया जिनके आधार पर विपक्ष ने आपत्ति व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि विधेयक में समानता के अधिकार का कहीं से उल्लंघन नहीं हुआ है। अनुच्छेद 14 में तर्कसंगत वर्गीकरण के प्रावधान के मुताबिक 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बंगलादेश से आये लोगों को नागरिकता का अधिकार दिया था, पर अगर विपक्ष के तर्क को माना जाये तो सवाल उठता है कि उन्होंने पाकिस्तान से आये लोगों को यह अधिकार क्यों नहीं दिया था। युगांडा से आये लोगों को भी तर्कसंगत वर्गीकरण के आधार पर नागरिकता दी गयी तो फिर इंगलैंड से आये लोगों को क्यों नहीं दी गयी। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने असम समझौता भी इसी नियम के आधार पर किया था। समानता के अधिकार के साथ ही अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को मान्यता इसी तर्कसंगत वर्गीकरण के आधार पर मिली है।
गृह मंत्री ने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच 1950 में नेहरू-लियाकत समझौता हुआ था जिसमें दोनों देशों ने अपने यहाँ अल्पसंख्यकों के संरक्षण का आश्वासन दिया था। हमारे यहाँ उसका पालन किया गया लेकिन पाकिस्तान और बाद में पाकिस्तान से बने बंगलादेश में उन पर अत्याचार किया गया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और बंगलादेश में आज भी धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और उनका जनसंहार जारी है। वहां चुन-चुन कर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जाता है। इसलिए ज़मीनी रूप से भारतीय सीमा से लगे इन तीनों देशों के “धार्मिक रूप से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए” यह विधेयक लाया गया है।
अफगानिस्तान की भौगोलिक सीमा के बारे में विपक्ष के सदस्यों ने शाह को आड़े हाथों लेने की काेशिश की तो उन्होंने पलट कर पूछा कि क्या विपक्ष पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानता है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के कब्ज़े वाले हिस्से में भारत की 109 किलोमीटर की सीमा अफगानिस्तान से लगी है। शाह ने सदन को आश्वस्त किया कि इन देशों के मुसलमान भी कानून के आधार पर नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं और उनके आवेदनों पर भी प्रक्रिया के तहत विचार किया जायेगा। इस पर कोई रोक नहीं लगेगी।
गृहमंत्री ने कहा कि वह विपक्षी सदस्यों के विधेयक की विषयवस्तु से जुड़े सभी सवालों का जवाब विधेयक पर चर्चा के दौरान विस्तारपूर्वक देंगे। करीब डेढ़ घंटे तक विपक्षी सदस्यों के तीखे विरोध एवं संविधान की मूल भावना के उल्लंघन के आरोपों के बाद शाह को जवाब देने का मौका मिला। जवाब के बाद जब उन्होंने विधेयक को सदन में पेश करने की अनुमति मांगी तो विपक्ष के कई सदस्यों ने मतविभाजन की मांग की। मतविभाजन में 375 सदस्यों ने भाग लिया जिनमें से 82 ने विरोध में और 293 ने पक्ष में मतदान किया।
विपक्ष के करीब डेढ़ घंटे तक विरोध के दौरान कई बार सत्ता पक्ष एवं विपक्ष के बीच आरोपों एवं प्रत्यारोपों के कारण माहौल बहुत गर्म हो गया। पर अध्यक्ष ओम बिरला ने सभी विपक्षी सदस्यों को बोलने का मौका दिया।