नर्इ् दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट की एक संविधान पीठ ने देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव नोटिस को राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू द्वारा खारिज किए जाने को चुनौती देने वाली कांग्रेस सांसदों की याचिका आज खारिज कर दी।
कांग्रेस के दो राज्यसभा सदस्यों -प्रताप सिंह बाजवा (पंजाब) एवं यमी याज्ञनिक (गुजरात) की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पांच-सदस्यीय संविधान पीठ के गठन पर सवाल खड़े किए और पूछा कि बगैर संदर्भ आदेश (रिफरेंस ऑर्डर) के संविधान पीठ का गठन कैसे किया गया?
सिब्बल ने संविधान पीठ के गठन को लेकर शासकीय आदेश की प्रति उपलब्ध कराने को कहा, लेकिन न्यायाधीश एके सिकरी की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने उन्हें अपनी याचिका की ‘मेरिट’ पर बहस करने को कहा।
न्यायाधीश सिकरी ने कहा कि आप आदेश की प्रति के लिए बार-बार क्यों कह रहे हैं। आप मामले की मेरिट पर बात करें जिसके लिए इस संविधान पीठ का गठन किया गया है। हम शासकीय आदेश के बारे में बाद में विचार करेंगे।
एटर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सिब्बल की दलीलों का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने कहा कि ऐसे कई मौके आए हैं जब बगैर संदर्भ आदेश के संविधान पीठ का गठन किया जा चुका है। इस मामले में शीर्ष अदालत ने पूर्व में एक फैसला भी दिया हुआ है।
वेणुगोपाल ने इस याचिका की स्वीकार्यता पर ही सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि जब महाभियोग प्रस्ताव पर सात दलों के सांसदों ने हस्ताक्षर किए थे तो नायडू के फैसले को केवल दो कांग्रेसी सांसद क्यों चुनौती दे रहे हैं? उन्होंने कहा कि संभव है नायडू के फैसले से अन्य छह दल के सांसद संतुष्ट हों।
सिब्बल ने बार-बार इस बात को लेकर जोर दिया कि संविधान पीठ के गठन को लेकर जारी प्रशासनिक आदेश उन्हें दिखाया जाना चाहिए, लेकिन सदस्यीय संविधान पीठ ने ऐसा करने से मना कर दिया।
इस पर सिब्बल ने कहा कि यदि उन्हें आदेश की प्रति नहीं मिलती है तो वह याचिका वापस लेते हैं। न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए इसकी अनुमति दे दी। संविधान पीठ ने अपने आदेश में इसे ‘डिस्मिस्ड एज विदड्रॉन’ बताया।
न्यायाधीश सिकरी के अलावा संविधान पीठ में न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायाधीश आरवी रमना, न्यायाधीश अरुण मिश्रा और न्यायाधीश एके गोयल शामिल हैं। ये सभी न्यायाधीश सूची में ये क्रमश: छठे, सातवें, आठवें, नौवें और 10वें नम्बर पर हैं।
इस मामले की सुनवाई के लिए जिन पांच न्यायाधीशों को चुना गया था, उनमें वे चारों न्यायाधीश शामिल नहीं थे, जिन्होंने गत 12 जनवरी को प्रेस कांफ्रेंस करके मुख्य न्यायाधीश की कथित प्रशासनिक खामियों को उजागर करने का प्रयास किया था।
गाैरतलब है कि सिब्बल ने कल सुबह मामले का शीर्ष अदालत के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्ती चेलमेश्वर के समक्ष विशेष उल्लेख किया था। पूर्व कानून मंत्री ने न्यायाधीश चेलमेश्वर से याचिका को तुरंत सुनवाई के लिए स्वीकार करने का आग्रह किया, लेकिन न्यायालय ने इस पर तुरंत कोई व्यवस्था देने से इन्कार कर दिया था।
न्यायाधीश चेलमेश्वर ने कहा था कि चूंकि सीजेआई को मास्टर ऑफ रोस्टर का दर्ज़ा संविधान पीठ से मिला हुआ है, इसलिए यह याचिका भी सीजेआई के पास ही भेजी जानी चाहिए। इस पर सिब्बल ने दलील दी थी कि चूंकि महाभियोग की अर्ज़ी सीजेआई के ख़िलाफ़ थी, इसलिए इस मामले में दायर याचिका पर सुनवाई का आदेश शीर्ष अदालत के अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश जारी कर सकते हैं। वह संबंधित याचिका को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर सकते हैं, लेकिन अदालत ने कोई व्यवस्था देने के बज़ाय उनके अनुरोध पर विचार के लिए याचिकाकर्ताओं को आज साढ़े 10 बजे आने को कहा था।
कल शाम मुख्य न्यायाधीश ने इस मामले के लिए न्यायाधीश सिकरी की अध्यक्षता में संविधान पीठ का गठन किया था और मामले को आज के लिए सूचीबद्ध किया था।
गौरतलब है कि सीजेआई के आचार-व्यवहार पर आपत्ति ज़ताते हुए कांग्रेस की अगुवाई में सात विपक्षी दलों के 64 सांसदों ने राज्यसभा के सभापति को न्यायाधीश मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया था। नायडू ने नोटिस पर प्रथमदृष्टया विचार करते हुए गत 24 अप्रेल को इसे खारिज कर दिया था, जिसे शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई थी।