नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस खारिज करने के राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू के फैसले को असंवैधानिक एवं गलत करार देते हुए कांग्रेस ने सोमवार को कहा कि पार्टी इसके विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करेगी।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल, विवेक तन्खा और ऐमी याज्ञनिक ने यहां पार्टी मुख्यालय में एक विशेष संवाददाता सम्मेलन में कहा कि 71 सांसदों के हस्ताक्षर वाले नोटिस से शुरू हुई महाभियोग प्रस्ताव की प्रक्रिया को सभापति ने प्रारंभिक चरण में ही खारिज कर दिया है जो उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
कांग्रेस नेताओं ने कहा कि महाभियोग प्रस्ताव की प्रक्रिया के प्रारंभिक चरण में सभापति की भूमिका सीमित है और इस दाैरान प्रशासनिक प्रक्रिया तथा हस्ताक्षर करने वाले सांसदों की संख्या, उनके हस्ताक्षर की जांच तथा आरोपों की प्रकृति देखी जाती है।
आरोपों की जांच के लिए एक समूह का गठन होता है। जांच करने के बाद अपनी रिपोर्ट सभापति काे देता है लेकिन सभापति ने बिना जांच के ही आरोपों को नकारते हुए नोटिस खारिज किया है जो गैर कानूनी, असंवैधानिक और गलत है। कांग्रेस इसके खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करेगी।
सिब्बल ने कहा कि सभापति ने महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस में लगाए गए आरोपों को बिना किसी जांच के खारिज कर दिया है। उन्होेंने आरोप लगाया कि सरकार पूरे मामले को दबाना चाहती है। नोटिस में लगाए गए सभी आरोपों के सबूत तथा अन्य दस्तावेज केंद्रीय जांच ब्यूरो आैर अन्य जांच एजेंसियों के पास हैं।
अगर सभापति नोटिस स्वीकार करने के बाद जांच समूह का गठन करते तो इन आरोपों पर सुनवाई होती और सबूत तथा गवाह पेश किए जाते लेकिन उन्होंने नोटिस को प्रारंभिक अवस्था में ही खारिज कर दिया है। उन्होंने सभापति पर जल्दबाजी में फैसला करने का आरोप लगाते हुए कहा कि इससे चिंता पैदा होती है।
सिब्बल ने कहा कि नोटिस खारिज करने के सभापति के फैसले के खिलाफ कांग्रेस उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाएगी और इस मामले में उसका कोई फैसला स्वीकार करेगी। उन्होंने कहा कि वह चाहेंगे कि फैसले के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई के मामले में मुख्य न्यायाधीश की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए। उन्होेंने हालांकि यह भी कहा कि वह अदालती प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहते।
एक सवाल के जवाब में कांग्रेस नेता ने कहा कि वह मुख्य न्यायाधीश के अदालत में पेश नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि नोटिस पर हस्ताक्षर करने वाले सभी सांसदों ने मुख्य न्यायाधीश पर शक जाहिर किया है।
इससे पहले कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ट्विटर पर जारी संदेशों में कहा कि संविधान के प्रावधानों के अनुसार 50 सांसदों द्वारा नोटिस देने के साथ महाभियोग प्रस्ताव की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। राज्यसभा के सभापति नोटिस पर निर्णय नहीं दे सकते क्योंकि यह उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं है। उन्हें नोटिस के गुण दोष तय करने की शक्ति नहीं है।
उन्होंने न्यायाधीश वी रामस्वामी के खिलाफ महाभियोग के मामले का हवाला देते हुए कहा कि सभापति के पास न्यायिक या प्रशासनिक शक्तियां नहीं हैं, इसलिए वह नोटिस पर गुण दोष के आधार पर फैसला नहीं दे सकते। सुरजेवाला ने कहा कि यह वास्तव में ‘लोकतंत्र खारिज करने वालों’ और ‘लोकतंत्र बचाने वालों’ के बीच संघर्ष है।
उन्होंने केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली का नाम लिए बगैर कहा कि 64 सदस्यों द्वारा महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस देने के कुछ घंटों के भीतर ही राज्यसभा के नेता और वित्त मंत्री ने अपना पूर्वाग्रह जाहिर करते हुए नोटिस को बदले की ‘याचिका करार’ दिया था। कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि वह (जेटली) वास्तव में राज्यसभा के सभापति को फैसला लिखवा रहे थे।
उन्होेंने कहा कि अगर सभी आराेप जांच से पहले सिद्ध हो जाएं तो संविधान और न्यायाधीश जांच अधिनियम की कोई प्रासंगिकता नहीं रह जाएगी।
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