नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के गैंगस्टर विकास दुबे और उसके पांच गुर्गों की पुलिस मुठभेड़ का जिक्र कमोबेश अदालती सुनवाई के दौरान होने लगा है। उच्चतम न्यायालय में मंगलवार को दो मामलों में ऐसा ही कुछ हुआ।
दरअसल दो इतर मामलों की सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विकास दुबे एवं उसके साथियों की मुठभेड़ का रोचक अंदाज में जिक्र किया और याचिकाकर्ताओं को राहत देने से इनकार कर दिया।
एक मामले में याचिकाकर्ता ने जमानत मिलने के बावजूद एस्कॉर्ट लगाए रखने की शिकायत की थी और उसे हटाने का अनुरोध न्यायालय से किया था। याचिकाकर्ता के वकील ने न्यायमूर्ति बोबडे की बेंच के समक्ष कहा कि माई लार्ड, कोर्ट ने जमानत दे रखी है। छह महीने से जमानत पर हूं, लेकिन जमानत की शर्त के मुताबिक पुलिस वाले हमेशा एस्कॉर्ट करते हैं। माई लार्ड, इसकी जरूरत नहीं है। और इस कोरोना माहमारी के समय तो बिल्कुल ही नहीं।
उसकी उस गुहार पर मुख्य न्यायधीश ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि आजकल बहुत मुठभेड़ हो रही है। पुलिस एस्कॉर्ट तो अच्छा है, इसे मत हटाइए।
दूसरा मामला, आठ आपराधिक मामलों के आरोपी से जुड़ा है। उस आरोपी ने जमानत याचिका दायर की थी, जिसकी सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बोबडे ने दुबे मुठभेड़ के परिप्रेक्ष्य में कहा कि हम आपके मुवक्किल को जमानत नहीं दे सकते। वह खतरनाक अपराधी है। आपने देखा नहीं, उस मामले में क्या हुआ! एक अपराधी जिसपर 64 मामले लंबित थे, उसे जमानत देने का क्या नतीजा हुआ? पूरे उत्तर प्रदेश को उसका खामियाजा भुगतना पड़ा। इसके साथ ही न्यायालय ने जमानत की अर्जी खारिज कर दी।