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सिरोही : चुनावों के बाद तीन गुटों में बंटी नजर आने लगी भाजपा

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सिरोही : चुनावों के बाद तीन गुटों में बंटी नजर आने लगी भाजपा
Bjp rally at Rafael's district centers
Bjp rally at Rafael's district centers
Bjp sirohi

परीक्षित मिश्रा
सबगुरु न्यूज-सिरोही। राफेल के लिए ज्ञापन देने के भाजपा के अभियान में राहुल गांधी का कुछ होगा या नहीं यह तो नहीं पता, लेकिन इस प्रकरण में एक सप्ताह पहले ही विपक्ष में आई भाजपा की तस्वीर को उजागर कर दिया। इस दौरान भाजपा के सिरोही में तीन धड़े स्पष्ट नजर आए।

एक धड़ा ओटाराम देवासी का, दूसरा भाजपा जिलाध्यक्ष लुम्बाराम चौधरी का और तीसरा धड़ा भाजपा की मूल विचारधारा को कुचलता हुए देखकर मन मसोस रहे पुराने भाजपाइयों का। वैसे सत्ता में रहते हुए भी यह गुटबाजी थी, लेकिन इसकी स्पष्टता नजर नहीं आती थी।

राष्ट्रीय नेतृत्व के निर्देश पर सिरोही में ज्ञापन देने के आयोजन का नेतृत्व ओटाराम देवासी ने किया। वह सारणेश्वर में ही इस बात की ओर इशारा कर चुके हैं कि किस वे इस बार लोकसभा चुनावों में अपनी दावेदारी कर सकते हैं। ऐसे में हार के बाद भी सिरोही में इस आयोजन का हिस्सा बनना इस बात की ओर स्पष्ट इशारा कर रहा है कि वह आगामी लोकसभा चुनावों में जालोर लोकसभा सीट और पांच साल बाद विधानसभा में भी सिरोही विधानसभा से अपनी दावेदारी ठोकने के मूड में हैं।

वैसे सारणेश्वर की बैठक में अपने भाषण में उन्होंने सिरोही के नेताओं को मीठी ललकार देते हुए यह बता दिया था कि उन्हें राज्य से सिरोही में काम करने के निर्देश मिले हैं और यहां जो भी होगा उसमें उनकी भूमिका होगी। ओटाराम देवासी के नेतृत्व में बुधवार को ज्ञापन देने के लिए बनाए गए कार्यक्रम में की गई बचकाना हरकत इस बात की द्योतक है कि इस हार के बाद भी उन्होंने अपने चारों तरफ चापलूसों और अपरिपक्व लोगों को राग दरबारी और सलाहकार बनाया हुआ है।

इन्हीं के मशविरे पर अमल करने के बाद सत्ता में रहते हुए मंत्री के रूप में और विधानसभा चुनावों में भाजपा प्रत्याशी के रूप में विफलता उनके हाथ लगी और बुधवार को इन्ही अपरिपक्व सलाहकारों के कारण उन्हें विपक्ष के नेता के रूप में पहले ही कार्यक्रम में फजीहत का सामना करना पड़ा।

इस ज्ञापन कार्यक्रम में जिलाध्यक्ष लुम्बाराम चौधरी की गैरमौजूदगी लोगों की चुभी, संभवतः शादियों के सीजन और लोकसभा चुनावों की तैयारियों के सिलसिले में वे बाहर भी गए हों। लेकिन, उनकी गैरमौजूदगी में उनके करीबियों का भी इस ज्ञापन कार्यक्रम से गैरमौजूद रहना लोगों के बीच चर्चा का विषय तो रहा है।

वैसे भी सारणेश्वर में हुई बैठक में जिस तरह से ओटाराम देवासी ने अपने लोगों के बीच घेरकर भाजपाइयों को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की थी, उससे लुम्बाराम चौधरी और दूसरे लोगों का नाराज होना जायज भी है। वैसे यह बात दीगर है कि लुम्बाराम चौधरी के नेतृत्व में दो दिन बाद विजयपताका मंदिर में हुई बैठक में सभी पदाधिकारियों ने कार्यकर्ताओं और भाजपाइयों की मेहनत की सराहना करते हुए देवासी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया था। इसके बाद भी सारणेश्वर बैठक में अपने समर्थकों से घिरवाकर अपराधबोध करवाने का दर्द पदाधिकारियों के लिए भुला पाना मुश्किल भी है।

पांच साल सत्ता में रहने पर जिला संगठन और खुद देवासी के द्वारा नजरअंदाज किए गए भाजपा के मौलिक सिद्धांतों से जुड़े पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को तीसरा गुट है। यह अभी भी पार्टी की रीति-नीति के विरूद्ध सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए बुधवार को ओटाराम देवासी के नेतृत्व में कलक्टरी में दिखाई गई अपरिपक्वता से फिर आहत नजर आए। सत्ता में जिस तरह से भाजपा की फजीहत करवाई गई उसका परिणाम देवासी की हार के रूप में सामने आया।

इसका दर्द पार्टी की मूल विचारधारा से जुड़े भाजपाइयों को अभी भी साल रहा है, लेकिन इनकी मेहनत से बनाई हुई विरासत का बिना किसी संघर्ष सत्ता सुख भोगने वाले विपक्ष में आने पर भी सुधरने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में इन लोगों ने अपने को फिलहाल भी दोनों गुटों से दूर रखा हुआ है।

यही कारण था कि जब बुधवार को धरने में ओटाराम देवासी ने जिला कलक्टर को बाहर बुलवाकर ज्ञापन लेने की जिद पकड़ी तो इनमें से अधिकांश भाजपाई इस निर्णय को राजनीतिक अपरिपक्वता की निशानी मानते हुए खुद को अलग कर ले गए। बाद में हुआ वही जिसकी उन्हें आशंका थी। जिस फजीहत से ओटाराम देवासी को अपने समर्थकों के साथ रुखसत होना पड़ा वैसा दशकों से सिरोही के राजनीतिक इतिहास में शायद किसी को होना पड़ा हो।