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Commander Abhilasha Tommy told Race is out of the way, but do not lose heart - रेस से बाहर होने का मलाल है, लेकिन हिम्मत नहीं हारे: कमांडर अभिलाष टॉमी - Sabguru News
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रेस से बाहर होने का मलाल है, लेकिन हिम्मत नहीं हारे: कमांडर अभिलाष टॉमी

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रेस से बाहर होने का मलाल है, लेकिन हिम्मत नहीं हारे: कमांडर अभिलाष टॉमी
Commander Abhilasha Tommy told Race is out of the way, but do not lose heart
Commander Abhilasha Tommy told Race is out of the way, but do not lose heart
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नयी दिल्ली । समुद्र के रास्ते दुनिया का चक्कर लगाते हुए गोल्डन ग्लोब रेस के दौरान समुद्री तूफान की चपेट में आने से बुरी तरह घायल हुए नौसेना के कमांडर अभिलाष टॉमी ने कहा है कि उन्हें रेस से बाहर होने का मलाल है लेकिन वह हिम्मत नहीं हारे हैं और अगले मौके का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।

कमांडर अभिलाष गत वर्ष जून में हुई इस प्रतिष्ठित रेस में समूचे एशिया से केवल अकेले प्रतिभागी थे लेकिन सितम्बर में तूफान के कारण नौका पलटने और रीढ की हड्डी में गंभीर चोट के कारण उन्हें दौड़ से बाहर होना पड़ा। क्षतिग्रस्त नौका में चार दिन तक भूखे-प्यासे रहे कमांडर को इस बात की संतुष्टि है कि वह जीवन की रेस जीत गये ओर अब उन्हें अगली दौड़ का बेसब्री से इंतजार है। तूफान के कारण उठी 15 फुट से भी ऊंची लहरों ने उनकी नौका को दाे बार उलटा और सीधा पटका जिससे उनकी रीढ की हड्डी में गंभीर चोट लगी और वह चार दिन तक सीधे पड़े रहे तथा हिल डुल नहीं सके।

नौसेना के जांबाज अधिकारी कमांडर अभिलाष ने आज यहां यूनीवार्ता के साथ बातचीत में कहा कि उन चार दिनों में एक बार भी उन्हें ऐसा नहीं लगा कि वह बच नहीं पायेंगे। उन्होंने कहा, “सेलर होने के नाते उनमें दृढ इच्छाशक्ति थी और उन्हें पूरा विश्वास था कि कोई न कोई उन्हें बचाने जरूर आयेगा। वह सोचते थे कि उन्हें आगे भी इस तरह की रेस में हिस्सा लेने के लिए जीवित रहना है।”

रेस से बाहर होने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इसका मलाल जरूर है लेकिन वह हिम्मत नहीं हारे हैं और जैसे ही फिट होंगे वह फिर से अपने अभियान के लिए तैयारी शुरू कर देंगे। उन्होंने कहा कि जिस समय वह रेस से बाहर हुए उस समय उनकी स्थिति काफी अच्छी थी और वह आगे चल रहे दो लोगों से ज्यादा पीछे नहीं थे। अगली गोल्डन ग्लोब रेस 2022 में होनी है और कमांडर के मन में उस रेस को लेकर काफी उत्साह है।

गोल्डन ग्लोब रेस में शामिल होने के मानदंड वर्ष 1968 के अनुसार तय किये जाते हैं क्योंकि उस समय समुद्र के रास्ते दुनिया का चक्कर लगाने वाली पहली रेस का आयोजन किया गया था। उस समय जो संचार के उपकरण उपलब्ध थे प्रतिभागियों को वही उपकरण दिये जाते हैं और अत्याधुनिक संचार उपकरणों के बिना ही उन्हें रेस पूरी करनी होती है। उनके पास दिशा सूचक, हेम रेडियो सेट और ऐसा सेटेलाइट फोन होता है जिससे रेस के आयोजकों को केवल लिखकर संदेश भेजा जा सकता है। अगर आपको किसी अन्य व्यक्ति से बात करनी हो तो केवल हेम रेडियो के माध्यम से ही की जा सकती है।