नई दिल्ली। रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांता दास ने शनिवार को कहा कि केंद्रीय बैंक द्वारा पिछले साल नीतिगत ब्याज दरों में की गयी कटौती का ज्यादा लाभ बैंक धीरे-धीरे ग्राहकों को दे रहे हैं तथा भविष्य में वाणिज्यक बैंकों की ब्याज दरों में और गिरावट की उम्मीद है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर की मौजूदगी में दास ने कहा कि नीतिगत दरों में कटौती का लाभ ग्राहकों को देने के मामले में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। बैंकों की ओर से ऋण दरों में कटौती बढ़ी है। आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की दिसंबर में हुुई बैठक तक उन्होंने ब्याज दरों में औसतन 0.49 प्रतिशत की कटौती की थी जबकि फरवरी की बैठक तक यह कटौती बढ़कर 0.69 प्रतिशत पर पहुँच गयी। उन्होंने कहा कि भविष्य में ब्याज दरों में कटौती का यह क्रम जारी रहने की संभावना है।
इससे पहले सीतारमण ने यहाँ केंद्रीय बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय में आरबीआई बोर्ड को संबोधित किया। हर साल बजट के बाद वित्त मंत्री केंद्रीय बैंक के बोर्ड को संबोधित करते हैं और विभिन्न वित्तीय मसलों पर चर्चा होती है।
दास ने कहा कि आरबीआई द्वारा पिछले साल ब्याज दरों की गयी कटौती तथा बाजार में तरलता बढ़ने के कारण बैंक कर्ज सस्ता कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मौद्रिक नीति समिति ने महँगाई बढ़ने की आशंका के मद्देनजर फरवरी में नीतिगत ब्याज दरें न घटाने का निर्णय किया था और जनवरी के महँगाई के आँकड़े कमोबेश उसके अनुमान के करीब हैं।
यह पूछे जाने पर महँगाई को लेकर क्या रिजर्व बैंक की सरकार से कोई चर्चा हुई है, आरबीआई गवर्नर ने कहा कि फिलहाल रिजर्व बैंक आंतरिक तौर पर इस पर नजर बनाये हुये है तथा उचित समय पर सरकार के साथ इस संबंध में चर्चा की जायेगी। मौद्रिक नीति संचालन के तहत खुदरा महँगाई दर दो प्रतिशत से छह प्रतिशत के दायरे में रखने की जिम्मेदारी केंद्रीय बैंक को दी गयी है। यदि महँगाई लगातार इस लक्ष्य से ऊपर रहती है तो आरबीआई को सरकार को लिखित जवाब देना होगा।
पिछले साल सितंबर के बाद से ऋण उठाव में सुधार हुआ है। अक्टूबर 2019 से अब तक ऋण उठाव का आँकड़ा छह लाख करोड़ रुपये बढ़कर 7.5 लाख करोड़ रुपये पर पहुँच गया है। उन्होंने बताया कि इसमें निरंतर सुधार देखा जा रहा है। सिर्फ बैंकों से ही नहीं गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों तथा अन्य माध्यमों से भी ऋण उठाव बेहतर हुआ है। बैंकों के ऋण उठाव जहाँ तक प्रश्न है यह पिछले साल सितंबर तक इसमें 1.3 लाख करोड़ की कमी आयी थी जबकि यह अब बढ़कर 2.7 लाख करोड़ की वृद्धि में पहुँच गया है।