नई दिल्ली। कांग्रेस समेत सात विपक्षी दलों के सदस्यों ने राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडु को शुक्रवार को सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक कुमार मिश्रा के खिलाफ महाभियाेग प्रस्ताव का नोटिस दिया।
नोटिस सौंपने के बाद राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम बनी आजाद तथा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि कुछ मामलों में मुख्य न्यायाधीश ने मर्यादा भंग की है।
उन्होंने कहा कि महाभियोग प्रस्ताव पर कांग्रेस समेत सात विपक्षी दलों के कुल 71 सांसदों के हस्ताक्षर हैं जिनमें सात सेवानिवृत्त हो चुके हैं जबकि 64 अभी संसद के सदस्य हैं। मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस के लिए कम से कम 50 सांसदों के समर्थन की जरुरत होती है।
सिब्बल ने कहा कि न्यायपालिका कमजोर हो रही है और इससे लोकतंत्र खतरे में पड़ा है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास किये जाएगें। उन्होंने कहा कि विपक्षी दलों के पास मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा है।
सिब्बल ने बताया कि मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ आरोप प्रसाद एडूकेशन न्यास मामले तथा कुछ अन्य मामलों की गलत तरीके से सुनवाई,जमीन की खरीद को लेकर गलत हलफनामा दाखिल करने तथा अपने पद का दुरूपयोग करके कुछ संवेदनशील मामलों की सुनवाई खास पीठों को सौंपने से जुड़ा हुआ है।
कांग्रेस नेता ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों ने 12 जनवरी को जनता के समक्ष आकर मुख्य न्यायाधीश की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और स्वायत्तता के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है और मुख्य न्यायाधीश का यह रवैया जारी रहा तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा।
कांग्रेस नेता ने कहा कि हम उस समय चुप रहे क्योंकि हमारा मानना था कि मुख्य न्यायाधीश न्यायाधीशों की बात पर गौर करेंगे और समाधान निकल जाएगा लेकिन आज तक कोई हल नहीं निकला। ’यह चिंता की बात है यदि उच्चतम न्यायालय की स्वायत्तता खतरे में पड़ी तो देश का लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा।
उन्होंने कहा कि देश मे संविधान सर्वोच्च है और सभी पद उसके अधीन हैं। उन्होंने कहा कि हमारे सामने यह भी विकल्प था कि हम अब भी चुप रहते लेकिन हमने संविधान की शपथ ली है और संविधान के हर ढांचे की रक्षा करना हमारा संवैधानिक कर्तव्य है।
आजाद ने कहा कि उन्होंने महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने वाले सात राजनीतिक दलों तथा हस्ताक्षर न करने वाले दलों की ओर से भी नोटिस नायडू को सौंपा है। उन्होंने कहा कि हमने संविधान के अनुच्छेद 124(4) के साथ सहपठित अनुच्छेद 217 के तहत मुख्य न्यायाधीश को हटाने की मांग की है।